By अनन्या मिश्रा | Mar 23, 2025
भारत के वीर सपूतों ने 23 मार्च को देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान किया था। हर देश प्रेमी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का नाम तो हर कोई जानता है। आज ही के दिन यानी की 23 मार्च को भगत सिंह को फांसी दी गई थी। भगत सिंह को लाहौर षड़यंत्र के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई थी। दरअसल, भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर 08 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम फेंककर आजादी के नारे लगाए थे। इस दौरान भगत सिंह वहां से भागे नहीं बल्कि बम फेंकने के बाद उन्होंने खुद को गिरफ्तार करवा दिया और इस दौरान उनको दो साल की सजा हुई थी।
जन्म और परिवार
पाकिस्तान के लायलपुर जिले के बंगा में 27 सितंबर 1907 को भगत सिंह का जन्म हुआ था। उनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था, जिसकी पांच पीढ़ियों में क्रांति की ज्वाला का उद्घोष किया था। भगत सिंह अपने चाचा अजीत सिंह से बहुत प्रभावित थे और उनके चाचा भी भारत की आजादी के आंदोलन में सक्रिय थे।
दो साल की कैद
भगत सिंह जेल में करीब दो साल रहे और इस दौरान वह क्रांतिकारी लेख लिखा करते थे। इन लेखों में वह अपने विचारों को व्यक्त करते थे। भगत सिंह के लेखों में अंग्रेजी के अलावा पूंजीपतियों के नाम भी शामिल थे। पूंजीपतियों को भगत सिंह अपना और अपने देश को दुश्मन मानते थे। अपने एक लेख में भगत सिंह ने लिखा था कि मजदूरों का शोषण करने वाला उनका शत्रु है, फिर चाहे वह कोई भारतीय ही क्यों न हो।
जेल में भी जारी था विरोध
भगत सिंह बहुत बुद्धिमान थे और साथ ही कई भाषाओं के भी जानकार थे। उन्होंने अपना जीवन देश के नाम कुर्बान कर दिया था। भगत सिंह को हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी, बांग्ला और उर्दू आती थी। वह भारतीय समाज में लिपि, जाति और धर्म के कारण आई दूरियों पर अपने लेखों में चिंता और दुख व्यक्त किया करते थे।
मृत्यु
बता दें कि दो साल की कैद के बाद 24 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी दी जानी थी और उन्हीं के साथ सुखदेव और राजगुरु को भी फांसी होनी थी। लेकिन देश में उनकी फांसी को लेकर लोग काफी भड़क गए थे। भारतीयों का आक्रोश और विरोध देखकर अंग्रेज सरकार काफी डर गई थी। ऐसे में ब्रिटिश हुकूमत को लग रहा था कि फांसी वाले दिन भारतीयों का आक्रोश फूट पड़ा तो माहौल बिगड़ सकता है। इसलिए भगत सिंह को तय समय और डेट से 11 घंटे पहले 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई।