वैज्ञानिकों ने पता लगाया एक साथ कैसे तैरती हैं मछलियां

By उमाशंकर मिश्र | Mar 04, 2020

नई दिल्ली। (इंडिया साइंस वायर): सूरज ढलने पर झुंड में उड़ते परिंदों को आपने देखा होगा। चीटियों से लेकर भेड़, हिरण, और हाथी जैसे जीव समूह में एक खास तरह का पैटर्न बनाकर चलते हैं। एक ही दिशा में समन्वित तरीके से तैरती हुई मछलियों के झुंड में भी कुछ इसी तरह की सामूहिक समझदारी देखने को मिलती है। जीव समूहों के इस व्यवहार का अध्ययन ट्रैकिंग के आधुनिक तरीकों और छवियों के विश्लेषण से किया जाता है, जबकि शोर या ध्वनि को नजरअंदाज कर दिया जाता है। 

 

समूह में जीवों के व्यवहार का अध्ययन करते समय वैज्ञानिक आमतौर पर ध्वनि या शोर को बाधा के रूप में देखते हैं। लेकिन, सिक्लिड मछलियों पर किए गए भारतीय वैज्ञानिकों के एक नये अध्ययन में इस धारणा के विपरीत तथ्य उभरकर आए हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि मछलियां जब समूह के दूसरे सदस्यों के साथ क्रमबद्ध रूप से नहीं तैर रही होती हैं तो उनके व्यवहार में उतार-चढ़ाव से उत्पन्न शोर अधिक होता है। यह बिखरकर तैरने के बजाय क्रमबद्ध रूप से तैरने का संकेत होता है। 

इसे भी पढ़ें: विज्ञान के क्षेत्र में लैंगिक असमानता दूर करने के लिए तीन नई परियोजनाएं

भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बंगलूरू के शोधकर्ताओं द्वारा किये गए इस अध्ययन से यह भी पता चला है कि समूह में मछलियां जितनी कम होती हैं, शोर उतना ही अधिक होता है। इसीलिए, मछलियों के एक साथ तैरने की संभावना ज्यादा होती है। प्रकृति तथा जीवों के व्यवहार के बारे में इस तरह की जानकारी रोबोटिक समूह और व्यापक जनसमूह के बीच सूचनाओं के प्रसार से जुड़े अध्ययन में उपयोगी हो सकती है। 

 

शोधकर्ताओं का कहना है कि ध्वनियां यह समझने में मददगार हो सकती हैं कि जीव समूहों के जटिल व्यवहार कैसे सामान्य व्यक्तिगत व्यवहारों से उभरते हैं। सिक्लिड मछलियों के समूह द्वारा भोजन की तलाश एवं शिकारियों से बचाव के लिए तालमेल बनाए रखकर समान दिशा में एक साथ तैरने जैसे व्यावहारों का हवाला देते हुए वैज्ञानिकों ने यह बात कही है। 

 

आईआईएससी के सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज के शोधकर्ता प्रोफेसर विश्वेष गुट्टल ने कहा है कि “यह तथ्य सामान्य धारणा के विपरीत है, क्योंकि आमतौर पर यह माना जाता है कि शोर व्यस्थित क्रम को बिगाड़ सकता है।”

 

गुट्टल के पूर्व पीएचडी शोध छात्र एवं प्रमुख शोधकर्ता जीतेश झावर और उनकी टीम इट्रोप्लस सुरैटेन्सिस प्रजाति की सिक्लिड मछलियों का अध्ययन करने के बाद इस नतीजे पर पहुँची है। इट्रोप्लस सुरैटेन्सिस खाड़ी क्षेत्रों में पायी जाने वाली एक खाने योग्य मछली है, जिसे दक्षिण भारत में स्थानीय लोग करीमीन के नाम से जानते हैं। 

 

वैज्ञानिकों ने मछलियों के आवागमन की दिशाओं के साथ-साथ उस डिग्री का अध्ययन किया, जिस पर मछलियां क्रमबद्ध रूप से तैर रही होती हैं। महत्वपूर्ण रूप से, शोधकर्ताओं ने यह भी देखा कि समय के साथ इन व्यवहारों में कैसे उतार-चढ़ाव आता रहता है। 

 

आईआईएससी के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग में इंस्पायर फैकल्टी फेलो और शोध टीम के सदस्य एम. डैनी राज ने बताया कि “मछलियां जब क्रमबद्ध रूप से नहीं तैर रही होती हैं तो उनके व्यवहार में उतार-चढ़ाव अधिक देखा गया है।” जब यह उतार-चढ़ाव अधिक होता, तो समूह के व्यवहार पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ता है और मछलियों के तैरने में अधिक सामंजस्य देखने को मिलता है। 

इसे भी पढ़ें: केले के पौधों से रेशे अलग करने में कारगर हो सकती है यह तकनीक

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि समूह का प्रत्येक सदस्य अपने पड़ोसियों में से किसी एक की दिशा की नकल कर रहा होता है। यह प्रचलित मॉडल के विपरीत है, जो कहता है कि झुंड में तैरने वाली प्रत्येक मछली पूरे समूह के औसत व्यवहार की नकल करती है। 

 

गुट्टल कहते हैं, “क्रमबद्ध करने पर समूह से यादृच्छिक रूप से चुनी गई किसी मछली की दिशा की नकल से समग्र व्यवहार में बहुत बदलाव नहीं देखने को मिलता है। हालाँकि, मछलियां अत्यधिक अस्त-व्यस्त होती हैं, तो उनके नकल करने के पैटर्न पर भी असर पड़ता है।” 

 

यह अध्ययन शोध पत्रिका नेचर फिजिक्स में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं में विश्वेष गुट्टल, जीतेश झावर, तथा एम. डैनी राज के अलावा आईआईएससी के यू.आर. अमित कुमार एवं हरिकृष्णन राजेंद्रन और यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स, सिडनी के रिचर्ड जी. मॉरिस, यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ, इंग्लैंड के टिम रोजर्स शामिल थे। 

 

(इंडिया साइंस वायर)

प्रमुख खबरें

PDP प्रमुख महबूबा मुफ्ती की मांग, अनुच्छेद 370 पर अपना स्टैंड किल्यर करे NC और कांग्रेस

जिन्ना की मुस्लिम लीग जैसा सपा का व्यवहार... अलीगढ़ में अखिलेश यादव पर बरसे CM योगी

Vivek Ramaswamy ने अमेरिका में बड़े पैमाने पर सरकारी नौकरियों में कटौती का संकेत दिया

Ekvira Devi Temple: पांडवों ने एक रात में किया था एकविरा देवी मंदिर का निर्माण, जानिए पौराणिक कथा