नई दिल्ली।(इंडिया साइंस वायर): वैज्ञानिकों के एक समूह ने भारतीय पुरुषों में बांझपन के लिए जिम्मेदार आनुवंशिक कारकों का पता लगाया है जो पुरुष बांझपन से जुड़ी परीक्षण विधि विकसित करने में मददगार हो सकते हैं।
पुरुषों में पाए जाने वाले वाई क्रोमोसोम (गुणसूत्र) में कई जीन होते हैं जो शुक्राणुओं के उत्पादन और उनकी गुणवत्ता में भूमिका निभाते हैं। वाई गुणसूत्रों में ये जीन्स किसी वजह से विलुप्त या नष्ट होने लगते हैं तो वृषण संबंधी रोगों का खतरा बढ़ जाता हैं। ऐसे में शुक्राणु उत्पादन में कमी होने लगती है जो अंततः पुरुषों में बांझपन को जन्म दे सकती है।
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यूरोप और अन्य देशों के जनसंख्या समूहों में वाई गुणसूत्रों पर जीन्स विलुप्ति के सटीक स्थानों की जानकारी पहले से है। अब, हैदराबाद स्थित कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों ने भारतीय आबादी में वाई गुणसूत्रों में जीन्स के विलुप्ति से जुड़े क्षेत्रों का पता लगाया है जो भारतीय पुरुषों में बांझपन का कारण है।
शोधकर्ताओं ने वाई गुणसूत्र पर तीन आनुवंशिक स्थानों युक्त एजोस्पर्मिया फैक्टर (एजेडएफ) क्षेत्र की खोज की है। इन स्थानों में शुक्राणु उत्पादन के लिए आवश्यक जीन्स उपस्थित होते हैं। एजेडएफ क्षेत्रों की विलुप्ति के अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने 587 स्वस्थ पुरुषों और बांझपन के शिकार 973 पुरुषों में सामान्य शुक्राणुओं की संख्या और गतिशीलता की जांच की है।
जीन गुणसूत्रों पर डीएनए की बनी सूक्ष्म संरचनाएं होती हैं जो अनुवांशिक लक्षणों को धारण करके एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित करती हैं। किसी कारणवश अचानक गुणसूत्र में डीएनए के छोटे या बड़े खंडों के विलुप्त होने की घटना को गुणसूत्रीय विलोपन कहते हैं। शुक्राणु के कम उत्पादन, निम्न गतिशीलता, असामान्य आकार या पूर्ण रूप से शुक्राणु की अनुपस्थिति जैसे कारणों से पुरुषों में बांझपन संबंधी समस्याएं आती हैं जो निःसंतानता का कारण बनती हैं।
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प्रमुख शोधकर्ता डॉ. कुमारसामी थंगराज ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “भारत में पुरुषों में बांझपन बड़ी समस्या है। इस अध्ययन में बांझपन के शिकार भारतीय पुरुषों के वाई गुणसूत्रों में विलोपनों का अनूठा संयोजन और उच्च आवृत्ति देखने को मिली है जो अन्य देशों में पाए जाने वाले पुरुषों के बांझपन के मामलों से काफी अलग है।'' यह अध्ययन शोध पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है।
डॉ. थंगराज का कहना है कि "जिन समुदायों में सजातीय विवाह होते हैं उनमें अनुवांशिक गड़बड़ियों की आशंका होती है क्योंकि वे एक अनुवांशिक रूप से एक ही पूर्वज की संतानें होती हैं। ऐसे समुदाय विशेष के पुरुषों के वाई गुणसूत्र समान होते हैं। यदि आनुवांशिक बदलावों के चलते वाई गुणसूत्रों में कुछ खामियां उभरती हैं तो ऐसे में पुरुषों में बांझपन हो सकता है।”
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यह अध्ययन भारतीय पुरुषों में बांझपन के उपचार में मददगार हो सकता है। यदि कोई पुरुष शुक्राणु की निम्न गतिशीलता या कम शुक्राणुओं की समस्या से ग्रस्त है तो ऐसे दंपति कृत्रिम प्रजनन तकनीकों की सहायता लेते हैं। लेकिन, ऐसे पुरुषों में यदि सूक्ष्म विलोपन युक्त वाई गुणसूत्र हैं तो कृत्रिम प्रजनन भी विफल हो सकता है। ऐसे पुरुषों में आनुवांशिक परीक्षणों से पता लग सकता है कि कृत्रिम प्रजनन सफल होगा या नहीं। डॉ. थंगराज इस तरह का परीक्षण विकसित करने में लगे हैं।
अध्ययनकर्ताओं में दीपा सेल्वा रानी, कडुपु पावनी, अविनाश ए. रासलकर और कुमारसामी थंगराज (सीसीएमबी), राजिंदर सिंह (केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान, लखनऊ), ज्ञानेश्वर चौबे (बीएचयू), नलिनी जे. गुप्ता तथा बैद्यनाथ चक्रवर्ती (प्रजनन चिकित्सा संस्थान, कोलकाता) और ममता दीनदयाल (इन्फर्टिलिटी इंस्टिट्यूट ऐंड रिसर्च सेंटर, हैदराबाद) शामिल थे।
(इंडिया साइंस वायर)
भाषांतरण- शुभ्रता मिश्रा