वंचितों, दलितों, किसानों, आदिवासियों और मजलूमों की एक और बुलंद आवाज 12 सितम्बर को शांत हो गई। वामपंथ के प्रमुख युगद्रष्टा कॉमरेड सीताराम येचुरी के रूप में देश ने एक बेहद संवेदनशील, भावुक, ऊर्जा से भरे दूरदर्शी नेता को खो दिया। जीवन के 72वें वसंत पूरे करके येचुरी ने गुरुवार को दिल्ली स्थित ‘एम्स’ अस्पताल में अंतिम सांस लेकर नश्वर संसार को अलविदा कहकर अपने परमधाम को चले गए। उनका निधन देश की राजनीति खासकर वामपंथी, फासिज्म विरोधी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक की मौजूदा हिचकोले लेती व्यवस्था के लिए गहरे आघात जैसा है। येचुरी वामपंथ सियासत में ही लोकप्रिय नहीं थे, वे भारतीय राजनीति के भी चर्चित चेहरे थे। यूपीए-एक और यूपीए-दो में उनका बोलबाला था। कांग्रेस हुकूमत के दोनों टर्मों में वाम नेता कांग्रेस को समर्थन नहीं देने के पक्ष में नहीं थे। लेकिन येचुरी ने सभी को मनाया और बिना शर्त बाहर से समर्थन देने को अपने साथियों को राजी किया। तभी से राहुल गांधी और सोनिया गांधी के वो चहते बने, राहुल ने कई मर्तबा सार्वजनिक तौर पर स्वीकार भी कि उन्होंने राजनीति की तमाम एबीसीडी सीताराम येचुरी से सीखीं।
सीताराम येचुरी का संपूर्ण जीवन जनसरोकारों के लिए सबसे जुझारू और संघर्षशील व्यक्ति की भूमिका निभाते बीता। इमरजेंसी में उन्हें भी जेल में डाला गया। इंदिया गांधी की हुकूमत को आगे बढ़कर ललकारने वाले वह एक मात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने इंदिया गांधी के आंखों में आंखे डालकर न सिर्फ उनकी आलोचनाएं की थी, बल्कि उनका इस्तीफा भी सरेआम मांगा था। लेकिन वह ऐसा दौर था जब प्रशंसा और आलोचनाओं की कद्र हुआ करती थी। अब आलोचना करने वाले को या तो देशद्रोही कहा जाता है, या फिर उनके पीछे जांच एजेंसियां लगवा दी जाती हैं। सीताराम येचुरी निःसंदेह भारतीय राजनीति में बेहतरीन दौर जीकर गए हैं। वह अपने जीवनकाल के अंत तक राजनीति में एक्टिव रहे। बीते कुछ समय से वह ‘एक्यूट रेस्पिरेटरी टैक्ट इंफेक्शन’ से पीड़ित थे, जिसने उनके शारीरिक के अंगों को धीरे-धीरे कमजोर कर दिया था। पिछले माह 19 अगस्त को उन्हे एम्स में भर्ती करवाया गया था। हालात में कुछ सुधार हुआ भी था, लेकिन 10 सितंबर को स्थित कुछ ज्यादा बिगड़ी तो चिकित्सकों ने उन्हें आईसीयू में रखा। लेकिन शायद उनकी जीवन की यात्रा पूरी हो चुकी थी और उन्हें सभी को अलविदा कहना था।
कॉमरेड येचुरी का निधन उनके चाहने वालों के लिए निजी क्षति जैसा है, इसलिए प्रभु शोकाकुल परिवार और उनके चाहने वालों को ये असीम दुख सहने का संबल दे। क्योंकि ऐसे नेताओं का उदय इस धरती पर कभी कभार ही होता है। भारतीय राजनीति में वह उन राजनीतिज्ञों में गिने जाते थे जिनकी विचारधारा की सीमाओं से परे व्यापक स्वीकार्यता होती थी और जिनका चिंतन मौजूदा समय में सियासत की दिशा को निर्धारित करने का मादा रखता था। येचुरी साहब 12 अगस्त 1952 में एक तमिल ब्राह्मण के घर में जन्में थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कॉलेज से उन्होंने अर्थशास्त्र में बीए किया था। एमए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पूरा किया था। पीएचडी भी कर रहे थे, लेकिन इमरजेंसी में जेल जाने के बाद पढ़ाई बीच में छूट गई। उनका सपना सीए बनने का था। क्योंकि अर्थशास्त उनका प्रिय सब्जेक्ट होता था। लेकिन किस्मत शायद उन्हें सियासत की ओर खींच रही थी।
वर्ष-1975 में वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी के सदस्य बनकर सियासत में विधिवत डेब्यू किया। 1984 में वह सीपीआई एम की केंद्रीय समिति में शामिल हुए। 2005 में वह पार्टी की ओर से पश्चिम बंगाल से राज्यसभा सांसद चुने गए। वहीं, साल 2015 में उन्हें महासचिव बनाया गया। तब से लेकर आजतक वह वामपंथ राजनीति के प्रमुख चेहरों में एक रहे थे। ‘इंडिया गठबंधन’ के भी वह मुख्य सूत्रधार थे। वह लगातार विपक्ष को एकजुट करते थे। केंद्र में चाहे कांग्रेस की हुकूमत रही हो, भाजपा की हो या अन्य गठबंधन दलों की, उन्हें सदैव विपक्षी की भूमिका में रहना पसंद होता था। उनके संबंध सभी दलों के नेताओं से मधुर रहे, विभिन्न राजनीतिक मामलों पर अपनी बात मुखरता से रखते थे, लेकिन उन्होंने कभी किसी नेता पर निजी हमला नहीं किया। ओछी राजनीति से उन्होंने हमेशा परहेज किया। येचुरी की फैमली मूलता: आंध्र के काकीनाडा से वास्ता रखती थी। उन्होंने तमिल महिला से प्रेम विवाह किया था। कोरोना के दौरान जब उनके बड़े पुत्र का निधन हुआ तो वह पूरी तरह से टूट गए थे, शरीर भी तभी से ढलना आरंभ हुआ।
सीताराम येचुरी की अंतिम इच्छा थी कि जब उनका निधन हो, उनके शरीर को अग्नि के बजाए, दान किया जाए। उनकी इच्छानुसार परिवार ने येचुरी के पार्थिव शरीर को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान में मेडिकल के अध्ययनरत छात्रों को रिसर्च के लिए दान करने का निर्णय लिया। येचुरी के निधन पर सभी दलों के प्रमुख नेताओं ने दुख जताया है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी से लेकर तमाम बड़े भाजपा नेताओं ने दुख जाहिर किया। अलविदा कॉमरेड, अगले जन्म में और आस्तिक व सरोकारी होकर लौटना। भावभीनी श्रद्धांजलि
- डॉ. रमेश ठाकुर
सदस्य, राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान (NIPCCD), भारत सरकार!