By नीरज कुमार दुबे | Apr 22, 2023
सत्यपाल मलिक को जब जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया था तब पहली बार ऐसा हुआ था कि किसी राजनीतिज्ञ को जम्मू-कश्मीर जैसे सीमायी और संवेदनशील राज्य का राज्यपाल बनाया गया था। इससे पहले रक्षा-सुरक्षा से जुड़े क्षेत्रों में सेवाएं दे चुके लोगों को ही जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया जाता था। इसलिए जब सत्यपाल मलिक के रूप में एक राजनीतिज्ञ को जम्मू-कश्मीर भेजा गया तब देश को उम्मीद जगी थी कि वह वहां लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाएंगे और आतंकवाद से निबटने के उपायों को सख्ती से लागू करवाएंगे। लेकिन सत्यपाल मलिक देश की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे जिसके चलते उनका अन्य राज्यों में तबादला होता रहा।
सत्यपाल मलिक का नाम वैसे तो ऐसे नेताओं में शुमार है जो अपनी बात से पलटने के लिए जाने जाते हैं और जिनका दल बदल का इतिहास रहा है। इसीलिए अब वह जो सवाल उठा रहे हैं उसकी टाइमिंग पर तो सवाल खड़े हो ही रहे हैं साथ ही सत्यपाल मलिक खुद भी आरोपों के घेरे में आ रहे हैं। साल 2019 के पुलवामा हमला मामले को लेकर सत्यपाल मलिक मोदी सरकार पर उंगली उठाते समय यह भूल जा रहे हैं कि ऐसा करते समय उनके हाथ की चार उंगलियां खुद उनकी तरफ उठ जा रही हैं। क्योंकि जब सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे तब उनके पास भी खुफिया तथा अन्य जानकारियां होती थीं, ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों उन्होंने सुरक्षा बलों के काफिले के निकलने के दौरान सुरक्षा के और पुख्ता प्रबंध नहीं करवाये थे? सवाल यह भी उठता है कि यदि घटना के तत्काल बाद सत्यपाल मलिक को सरकारी खामियों का पता चल गया था तो क्यों नहीं उन्होंने उसे तत्काल देश के समक्ष रखा था? क्यों वह राज्यपाल पद से चिपके रहे थे? क्या राष्ट्र से बड़ा पद होता है? सत्यपाल मलिक कह रहे हैं कि उन्हें चुप रहने को कहा गया था? यदि यह बात सही है तो क्यों उन्होंने पद बनाये रखने के लिए देशहित से समझौता किया था?
जो लोग सीबीआई की ओर से सत्यपाल मलिक को पूछताछ के लिए बुलाने को लोकतंत्र पर हमला बता रहे हैं उनके ड्रामे के लिए उनको ऑस्कर मिलना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि यदि सत्यपाल मलिक ने जम्मू-कश्मीर में अपने कार्यकाल के दौरान किसी पार्टी के नेता पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये हैं तो उन आरोपों की पड़ताल होनी ही चाहिए। स्वाभाविक है कि यदि आरोप सत्यपाल मलिक ने लगाये हैं तो जांच एजेंसी उन्हीं से ही पूछेगी कि कौन भ्रष्टाचार कर रहा था या किसने रिश्वत का प्रस्ताव दिया था। सत्यपाल मलिक के आरोपों की जांच का तो स्वागत किया जाना चाहिए। जांच एजेंसी यदि सत्यपाल मलिक के आरोपों पर कोई कार्रवाई नहीं करती तब तो आलोचना की जा सकती थी। लेकिन अब जब कार्रवाई हो रही है तो उसे प्रताड़ना बता कर प्रचारित करना गलत है।
बहरहाल, खुद को ईमानदार कह देने भर से कोई ईमानदार नहीं हो जाता उसका इतिहास उसके बारे में निर्णय करता है। सत्यपाल मलिक को मोहरा बना कर कांग्रेस उनका उसी तरह इस्तेमाल कर रही है जैसे कि वह अन्य चुनावों के दौरान अन्य लोगों का करती रही है। सत्यपाल मलिक को समझना होगा कि कांग्रेस का उनके प्रति प्रेम सिर्फ कर्नाटक चुनाव या ज्यादा से ज्यादा अगले लोकसभा चुनावों तक ही रहेगा।
-नीरज कुमार दुबे