आयो बजट महाराज (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Feb 03, 2021

बजटजी ऐसे महाराज होते हैं जिनके आने से पहले आम जनता रंगीन ख़्वाब देखती हैं और ख़ास जनता को पहले से पता होता है कि बजट महाराज की योजनाएं उनका खूब ध्यान रखेंगी। आर्थिक विशेषज्ञ अपने अपने आकलन जारी करते हैं ठीक ऐसे जैसे सभी आवश्यक उपाय कर दिए गए हैं निश्चित ही पुत्ररत्न होगा और जब बजट महाराज स्थिति को शायरी या झूठी मुस्कुराहटों से संभालते हुए घोषणाएं करें तो पुत्ररत्न की जगह वायदों और आश्वासन फुदक फुदक कर ज़िंदगी की परेशान गोद में खेलने लगते हैं।

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बजट महाराज और विकास महाराज एक दूसरे के व्यवसायिक, सामाजिक व राजनीतिक शुभचिन्तक होते हैं तभी वे इतनी निपुणता से अधिकांश बातें करते हैं जो आम जनता को जलेबी जैसी लगती हैं और जलेबी भी ऐसी जो दूर से मीठी और स्वादिष्ट लगे और खाओ तो कड़वी और मुशकिल से निगले जाने वाली। उनकी अधिकांश योजनाएं सब की समझ में आने वाली नहीं होती। बजट महाराज के आने के बाद गृहस्थ की मालकिन भी चौकन्नी हो गई है। कल हम दोनों सब्जी खरीदने गए तो दुकानदार से बोली आप कई साल से मिट्टी लगे आलू, जड़ तक डंठल और मुरझाए पत्तों समेत गोभी बेचते हो। वह कुछ क्षण बाद बोला पीछे से ऐसे ही सब्जी आती है और अब तो महंगी भी होने वाली है, मैडमजी। हमने कहा तब तो दो सौ पचास ग्राम मटर खरीदा करेंगे। वह हंसने लगा बोला, हो गया न बजट का असर। 


दो चार मिर्च मुफ्त मांगने की हिम्मत नहीं हुई वह किसी से कह रहा था मिर्च ज्यादा लाल हो चुकी है। यह मानकर कि पति से कोई उलझ रहा है दुकान के पीछे से सब्ज़ीवाली ने आकर बातचीत में सॉलिड एंट्री मारी, हमने भी टप्पू नप्पू को पालना है, चार छ पैसा बचाना भी है। आप उनको समझाइए जो देस को सब्ज़ी समझकर काट रहे हैं खा रहे हैं। सबकी बोलती बंद है आजकल। उनकी बात तो सही थी मगर चुप रहना हर युग में सुरक्षित रहता है। हमारी बनाई चाय पीते हुए पत्नी बोली कोई नई बात नहीं है हर बजट आम लोगों के लिए एक सबक होता है। मटर कम आएगी तो क्या इससे मैं दो सब्जियां बनाया करूंगी। आलू मटर की पारम्परिक सब्ज़ी के साथ मटर के छिलकों को साफ काट धोकर प्याज मिक्स कर सूखी सब्ज़ी। गोभी की सूखी सब्ज़ी बना, मोटे मोटे लंबे डंठलों में से नर्म हिस्सा निकाल, आलू डाल रसेदार सब्ज़ी और मुरझाए हुए पत्तों व बचे सख्त हिस्से को अच्छी तरह से साफ कर उबालकर सूप बना दूंगी। मिडल क्लास लोग तो सपने बुनने और उधेड़ने के लिए ही पैदा होते हैं।

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बजट महाराज की सालाना सवारी आते ही ताली बजाना हमारा कर्तव्य है। हमने दिल से तारीफ़ की तो पत्नी का जवाब था, हम न्यू इंडिया की वूमन पावर हैं सबसे निबटना सीखना ही पड़ेगा। बजट महाराज के आने पर शासकों द्वारा इतराना और विपक्ष का शोर मचाना उनकी लोकतान्त्रिक जिम्मेदारी है। आम जनता का नैतिक कर्तव्य संयम बनाकर जीते रहना है। बजट महाराज ने जलवा दिखाना शुरू कर दिया है, सेहत का ध्यान रखिएगा।


- संतोष उत्सुक

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