यह एक कानूनी सत्य है कि सही मुजरिम पकड़ना हमेशा बाएं हाथ का खेल नहीं होता। पुलिस के हाथ बहुत लम्बे बताए जाते रहे हैं लेकिन देसी घी जैसी पहलवानी बात यह भी है कि मुजरिमों के हाथ भी कम चौड़े नहीं होते जिनका किसी को भी अता पता नहीं होता। पुलिस ने चोर, शातिर और मुजरिम ढूंढने, पकड़ने और सज़ा दिलाने के लिए पुराने नए तरीकों का घोल बना रखा है । इस घोल का असर कई बार गलत व्यक्ति को पकड़वा देता है और सालों जेल में रहने का मौक़ा देता है। सबकी तो व्यक्तिगत, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक या राजनीतिक पहुंच नहीं होती तभी आम आदमी से ज़्यादा खास को सुरक्षा प्रदान करने वालों की बहुत से मामलों में ज़बर्दस्त तारीफ़ होती है।
सुरक्षा एजेंसियां कितने सुरक्षात्मक ढंग से कारवाई करती है इसका अनुकरणीय उदाहरण कुछ समय पहले पैदा किया गया। यह अनूठा प्रयोग ख़ास तौर पर कम सुविधाओं वाली सुरक्षा एजेंसियों के लिए प्रेरक साबित हो सकता है । इंसान, विकासजी व तकनीकजी का इतना दीवाना होने के बावजूद परिस्थितियों से इन्साफ करना सीख रहा है। वहां एक माल गाड़ी के पायलट व सहायक को निलंबित कर दिया क्यूंकि उनकी तथाकथित लापरवाही के कारण एक हथिनी व उसके बच्चे की मौत हुई। उस ख़ास डीज़ल इंजन को ज़ब्त किया गया जिससे कटकर उनकी मौत हुई। उच्च स्तरीय, गहन, कर्मठ, आंतरिक जांच में इंजन को इंसान की आपराधिक लापरवाही का दंड देकर एक तरह से नए न्याय युग की शुरुआत कर दी गई। उदास युग में संभवत न्यायिक हास्य पैदा करने का नवल प्रयास भी किया गया। यह समझ लिया होगा कि कर्मचारी तो व्यवस्था की पटरियां जल्दी बदलकर और संबंधों की मीठी सीटियां ज़ोर से बजाकर जल्दी बहाल हो ही जाएंगे। कमबख्त इंजन पर सालों मुक्कदमा चलाए रख सकते हैं, इंजन और मामला दोनों जंग हो जाएंगे तिस पर एक संतुष्टि रहेगी कि असली अपराधी सीधे जेल भेज दिया गया था और वहीं पर है।
इस घटना से स्पष्ट प्रेरणा मिलती है कि क़ानून से इंसान चाहे बच जाए लोहा नहीं बच सकता। इंसानों के मुक्कदमे मशीनों, वृक्षों या इमारतों पर दायर कर सकते हैं। इतिहास में जो कुछ हुआ उससे सम्बंधित पिस्तौल, सड़क, कार या ट्रक को आज भी सख्त सज़ा दे सकते हैं। ऐसा ही वर्तमान व भविष्य में भी किया जा सकता है। इससे बहुत बेहतर तरीके से पहुंच वाले माननीयों और मानवाधिकारों की रक्षा भी हो जाएगी। ‘चेतन’ को मुजरिम न बनाकर, ‘जड़’ को मुजरिम बनाकर इंसानों के खिलाफ हुए अपराधों की जांच व सुनवाई में संवेदनशील रवैया अपनाने से बच जाएंगे। समय और पैसा भी बचेगा और अदालतों में मुक्क्दमों का जंगल भी नहीं उगेगा। कोई मरे या कटे, प्रशासन द्वारा अपने नजरिए से लोकतांत्रिक मूल्य बचाना बहुत लाजमी है। तमाम किस्म के जुर्म चलाने वाले इंसानी इंजन, खुले आम घूमते रहते हैं और मुक्कदमे जंग लगा लोहा होते रहते हैं। बढ़िया है, जब भी कोई झगड़ा या क्राइम हो, यहां तक कि खून हो जाए, किसी भी निर्जीव ठोस चीज़ को अपराधी मानकर उस पर मामला दायर कर देना सबसे सुरक्षित उपाय है। यह परिस्थिति प्रेरित प्राकृतिक न्याय की शुरुआत मानी जा सकती है।
- संतोष उत्सुक