पल्लू रस्म (व्यंग्य)

By विजय कुमार | Oct 21, 2020

शर्माजी कल बहुत दिनों बाद मिले। पता लगा कि गांव में उनकी एक दूर की चाची का देहांत हो गया था। उन्हीं की ‘पल्लू रस्म’ में गये थे। मैंने अब तक ‘पगड़ी रस्म’ के बारे में सुना था। किसी बुजुर्ग के जाने के बाद उसके हिस्से के काम उसकी संतानों पर आ जाते हैं। अतः उस बुजुर्ग के बेटे को समाज के सब लोग मिलकर पगड़ी पहनाते थे। पर शर्माजी ने ‘पल्लू रस्म’ की बात कही थी। ये पहली बार सुना था। मैंने पूछा, तो वे बोले, ‘‘पगड़ी रस्म पितृ सत्तात्मक समाज की देन है। लेकिन मेरी चाची मातृ सत्ता की प्रतीक थीं। घर में उनकी ही चलती थी। वे पूरे गांव के लिए भी जान का जंजाल थीं। कहीं चार लोग बात कर रहे हों, तो वे बिना बुलाए बीच में कूद पड़ती थीं। फिर बात कहां से कहां तक पहुंचेगी, कुछ पता नहीं। उनके तर्क और कुतर्क अकाट्य रहते थे।’’

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मैंने बीच में टोका, ‘‘शर्माजी, इन्सान कैसा भी हो; पर जाने के बाद उसकी बुराई नहीं करते। ये जगत की रीत है।’’


इस पर उनका स्वर तेज हो गया, ‘‘मेरी चाची हर रीति-रिवाज से ऊपर थीं। चुगली करने में उनका कोई सानी नहीं था। कई घरों में उन्होंने झगड़े कराए। झगड़े को परिणाम तक पहुंचाए बिना वे नहीं मानती थीं। कितने परिवार उनके कारण टूटे और उजड़ गये। लोग शादी तय करते समय ध्यान रखते थे कि चाची को खबर न हो। कुछ लोग रिश्ते करवाने के विशेषज्ञ होते हैं; पर वे रिश्ते तुड़वाने में माहिर थीं। पता लगते ही वे दूध में खटाई डालने पहुंच जाती थीं।’’


मैंने चुहल की, ‘‘इतनी खूबियां एक महिला में मिलनी मुश्किल हैं शर्माजी।’’


‘‘जी हां। पूरे गांव में शायद ही कोई दुकान हो, जिससे उन्होंने उधार न लिया हो। उसका भुगतान चाचा या फिर भतीजे ही करते थे। चाची ने अपने हाथ से वह उधार कभी नहीं चुकाया। यदि कोई दुकानदार मना करे, तो वे वहीं गाली देने लगती थीं। अफवाहें फैलाने में भी वे उस्ताद थीं। उन तक कोई बात पहुंची, तो समझ लो शाम तक वह पूरे गांव में फैल जाएगी। वे ये जरूर कहती थीं कि बस तुम्हें ही बता रही हूं। तुम किसी को नहीं बताना।’’


‘‘पर शर्माजी, इसका पल्लू रस्म से क्या संबंध है ?’’ मैंने अपनी जिज्ञासा उनके सामने रख दी।


‘‘संबध इतना ही है कि चाची की तीन बहुएं हैं। उनमें से बीच वाली में चाची की सारी खूबियां सवा गुना होकर प्रकट हुई हैं। इसलिए गांव और परिवार वालों ने पगड़ी की बजाय चाची का पल्लू उसके सिर पर रख दिया। अब देखें वह क्या गुल खिलाती है ?’’

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शर्माजी ने जो कहा, उसे यदि अपवाद मान लें, तो भी यह विचारणीय है कि पिता के मरने पर यदि बेटे के सिर पर पगड़ी बांधी जाती है, तो सास के बाद बहू के सिर पर पल्लू क्यों नहीं रखा जाता ? शर्माजी के गांव वालों ने एक रास्ता दिखाया है। इस पर विचार होना चाहिए।


-विजय कुमार

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