शब्द, निशब्द और प्रारब्ध (व्यंग्य)

By डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त | Mar 16, 2021

सुन सको तो सुनो रक्त धमनियों में बहने वाले रक्त का उपद्रव। सुन सको तो सुनो जंगल में पत्तों का शोर। सुन सको सुनो दोमुँहे लोगों की कानाफूसी। सुन सको तो सुनो चोटिल मौन धड़कनों की निस्तेज आहटें। एक भूखे के सीने पर कान लगाकर, एक बेरोगजगार की नब्ज थामकर, एक जीर्ण-शीर्ण किसान की काया देखकर और अपनी इज्जत को बड़ी मुश्किल से बचाने के चक्कर में थर-थर काँपती अबला की काया को महसूस कर अपने शब्दों को मौन की काल कोठरी से निकालिए और कह दीजिए कि शब्द केवल शब्दकोश की शोभा बढ़ाने या फिर झूठी प्रशंसाओं के लिए नहीं होते। शब्द बरक्स शब्द होते हैं। अब शब्दों को अक्षर, मात्रा से आगे बढ़कर देखने, सुनने, महसूस करने की क्षमता से ओत-प्रोत होना होगा। वास्तविकताओं से दो-चार होने के लिए शब्दों में आर-पार होने की क्षमता प्राप्त करनी होगी।

इसे भी पढ़ें: लालच में अंधा (व्यंग्य)

निशब्दता में शब्द मौन होते हैं। बारिश में भीगी मिट्टी मौन होती है। पंकज पर नेह के रूप में दिखने वाले ओसबिंदु नदी में मिलते समय मौन होते हैं। थर्मामीटर में पारा हिल-डुलकर भी मौन होता है। पीड़ा के चित्रपट को देखने पर हृदय की धड़कनें मौन होती हैं। मुट्ठी बंद करते समय उंगलियों की ध्वनि मौन होती है। बंद मुट्ठी सैंकड़ों अश्वों की शक्ति से ताकतवर होकर भी ऊपर उठते समय मौन होती है। क्वार्ट्ज घड़ी समय बताती है, लेकिन मौन होती है। पहाड़ों के नीचे सांप सी रेंगती नदी मौन होती है। रेती पर बारिश मौन होती है। बीज अंकुरित होते हैं, लेकिन मौन होते हैं। कलियाँ फूल बनकर भी मौन होती हैं। प्रकाशपुंज धरती को चूमता है, लेकिन मौन होता है। निशब्दता में शब्द छिपे होते हैं। निशब्दता का अर्थ स्तब्धता नहीं है। निशब्दता से ही शब्द जन्म लेते हैं। निशब्दता में ही शब्द दैदीप्यमान होते हैं। निशब्दता में ही शब्द क्रांति का बिगुल बजाते हैं। यह मौन आंतरिक कर्णों से सुना जा सकता है।

इसे भी पढ़ें: हमने, तुमने, किसी ने क्या लेना (व्यंग्य)

लंबे समय तक शब्दों की निशब्दता किसी उथल-पुथल की ओर संकेत करती है। निशब्दता किसी के लिए ब्रह्म है तो किसी के लिए भ्रम। किसी के लिए अजर है तो किसी के लिए जर-जर है। किसी के लिए अवसर है तो किसी के लिए बेअसर है। किसी के लिए मान है तो किसी के लिए अपमान है। किसी के लिए अनिवार्य है तो किसी के लिए परहेज है। किसी के लिए सजीव है तो किसी के लिए निर्जीव है। किसी के लिए सौभाग्य है तो किसी के लिए दुर्भाग्य है। लेकिन इन सबके बीच एक बड़ी वास्तविकता छिपी हुई है। कोई शोषक की हाँ में हाँ मिलाकर बदनाम हुआ है तो कोई शोषक के अन्यायों के खिलाफ निशब्द रहकर। मौके-बेमौके चिल्लाने से अच्छा मौके पर मौन रहकर अपनी चतुराई का परिचय देने वाला बुद्धिजीवौ होता है। इसके विपरीत व्यवहार करने वाला नेता होता है। जो दोनों न कर सके वह जनता होती है। शब्दों की बुझी हुई आग में निशब्दता चिंगारी-सी होती है। समय साक्षी है कि जब-जब जिस-जिस ने इसका अपने-अपने ढंग से इस्तेमाल किया है तब-तब दुनिया का प्रारब्द प्रभावित हुआ है।       


-डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त

प्रमुख खबरें

टर्म इंश्योरेंस: डिजिटल युग में इसे खरीदने के लाभ और सही योजना का चयन कैसे करें

Sangeet Ceromany में अपने लुक को दमदार बनाने के लिए इन ट्रेंडी झुमके पहनें

कश्मीर से दुनियाभर में Lotus Stem का निर्यात कर रहे हैं Maqbool Hussain, Mann Ki Baat में भी हुआ था जिक्र

दिल्ली में शीतलहर बढ़ेगी, इस सप्ताह तापमान 5 डिग्री तक गिरने की संभावना