तरह-तरह की नागरिकताएं (व्यंग्य)

By पीयूष पांडे | Dec 26, 2019

हिन्दुस्तान एक नागरिक प्रधान देश है। नागरिक निर्माण के मामले में भारत ने अमेरिका-ब्रिटेन और तमाम विकसित देशों से कई गुना ज्यादा तरक्की की है। हमारे यहां इत्ते नागरिक हैं कि जितने नागिरक ट्रेन में भीतर बैठते हैं, कई बार उससे चार गुना नागरिक ट्रेन के ऊपर बैठकर सफर करते देखे जा सकते हैं। मुंबई लोकल में तो धक्का प्रणाली से नागरिक भीतर-बाहर होते हैं। नागरिकों की प्रचुरता देश को हल्ला प्रधान देश भी बनाती है। देश में कहीं ना कहीं किसी ना किसी बात पर नागरिक प्रदर्शन करते देखे जा सकते हैं। नागरिक प्रधान देशों के नागरिकों का एक गुण यह भी होता है कि यहां एक नागरिक कई बार सिर्फ दूसरे नागरिक का साथ देने के लिए उसके साथ चल देता है। कुछ यही मामला नागरिकता संशोधन बिल को लेकर है।

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ये वो बिल है, जो जीएसटी की तरह अभी तक राजनेताओं को ही कायदे से समझ नहीं आया है, तो नागरिकों की क्या खाक समझ आएगा। नागरिकों को किसी बात को कायदे से समझाने की एक जिम्मेदारी मीडिया की है, लेकिन वो भी नागरिकों की देखा-देखी हल्ला प्रधान गुण इख्तियार कर चुका है। खैर, अपनी चिंता नागरिकता संशोधन बिल को लेकर नहीं है। अपनी चिंता नागरिकों की नागरिकता को लेकर है, क्योंकि कहने को भारत में रहने वाले हर नागरिक की नागरिकता भारतीय है, लेकिन सच यह है कि एक ही व्यक्ति कई तरह की नागरिकताओं के साथ देश में जमा हुआ है।

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आईफोन का लेटेस्ट मॉडल सुबह सुबह पांच बजे लाइन में लगकर खरीदने वाला खुद को अमेरिकी ही मानता है। उसके लिए आईफोन का लेटेस्ट मॉडल जान से महंगा है। वो लड़ जाएगा, भिड़ जाएगा लेकिन आईफोन खरीदकर उसकी फोटू फेसबुक पर डालेगा ही। इसी तरह गूची, वर्साचे, अरमानी जैसी कंपनियों के उत्पाद खरीदने वाले खुद को इटली का ही मानते हैं। उनके लिए मंगल या शनि बाजार से जींस खरीदने वाला नागरिक तो अस्पृश्य टाइप का नागरिक होता है। इसी देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिनके हाथ में हमेशा 100 रुपए का बोतलबंद पानी रहता है। इन नागरिकों का नगर पालिका का पानी पीने पर पेट खराब हो जाता है। देश में भले गर्मियों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस चला जाए लेकिन इनकी कारों-दफ्तरों और घरों का तापमान कभी 20 डिग्री से ऊपर ही नहीं जाता। इनके पास आधार कार्ड भले भारत का रहे लेकिन इनके बच्चे विदेशों के टॉप स्कूल-कॉलेजों में पढ़ते हैं। इनकी भाषा अंग्रेजी होती है। हिन्दुस्तान में रहते हुए इनका अपना अमेरिका-स्विटजरलैंड साथ चलता है।

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हिन्दुस्तान तरह तरह के नागरिकों से पटा पड़ा है। यहां ऐसे भी नागरिक हैं, जो फिल्मी पर्दे पर बतौर हीरो सबसे बड़े भारतीय हैं, लेकिन टैक्स बचाने के लिए खुद की अमेरिकी-ब्रिटिश-कनाड़ाई नागरिकता नहीं छोड़ते। हिन्दुस्तान में दरअसल नागरिकता जेब की गहराई से तय होती है। एक ही व्यक्ति जेब के हिसाब से अमेरिकी, स्विस, जापानी या किसी दूसरे विकसित देश का नागरिक हो सकता है। लेकिन दुर्भाग्य से हिन्दुस्तान के ज्यादातर नागरिक हैती, बुरुडी, कांगो और जिम्बाव्वे देशों के नागरिक ज्यादा लगते हैं, जिनके सामने पहला संकट रोटी का है, रोजगार का है।

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विडंबना यह कि ये नागरिक कभी अपने लिए कोई आंदोलन करते नहीं दिखते। आखिर इन गरीब नागरिकों के जीवनस्तर में सुधार के लिए नागरिकता संशोधन बिल कब लाया जाएगा?

 

-पीयूष पांडे

 

 

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