जिन्हें यह लगता था कि गली में, दुम हिलाते चुपचाप घूमने वालों की पूछ अब नहीं रही और जो शान ओ शौकत से लदे सलीके से भौंक सकते हों उनकी कीमत बहुत बढ़ गई है, बदलते वक़्त और परिस्थितियों ने उन्हें गलत साबित कर दिया है। आज का सच यह है कि अच्छे व्यवहार की हत्या हो जाने पर भी परेशान न होने वाले शांत रहकर सबका दिल जीत सकते हैं लेकिन, बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा, जैसी रेसिपी पकाने वाले भी तो हमेशा से फिट और फिट हैं ।
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किसी भी किस्म की वफ़ादारी का मंच सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक शोर मचाने की इजाज़त दे देता है। ऊंची या महंगी जगह पर भौंकने से जो शोहरत खरीद ली जाती है उसे कमाने में आम आदमी को पूरी उम्र लग जाती है लेकिन फिर भी वह गरीब ही रह जाता है। सबसे प्रसिद्ध और स्थापित गवाह इतिहासजी के अनुसार, वफ़ादारी की समृद्ध परम्परा को ‘कुत्तों’ द्वारा ही निरंतर स्थापित माना जाता है। लेकिन यह भी कहा जाता रहा है कि उन्हें खिलाए जाने वाले बिस्कुट, यदि इंसान को भी खिलाए जाने लगें तो निश्चय ही उनके वफ़ा उत्तकों में विश्वसनीय बढ़ोतरी हो सकती है। सफलता मिल जाने पर उसकी वफ़ादारी का रिश्ता भी भौंकने के साथ, सही अनुपात में जोड़ा, आंका और घोषित किया जा सकता है।
क्या हम बेवफ़ा लोग, यह गलत समझते हैं कि वफ़ादारी का रंग अब वैसा नहीं चढ़ता जैसा पहले चढ़ता था। अब तो वफ़ादारी की सहेलियों, इंसानियत और नैतिकता के मर जाने पर भी आम तौर पर उदास नहीं हुआ जाता। ज़िन्दगी पर बाज़ार के कब्ज़े के ज़माने में अब वफ़ादारी के रंगीन और खुशबूदार पोस्टर खूब लगाए जाते हैं। वफ़ादारी की परम्परा ईमानदारी से कायम रखने वाले भी, वक़्त की नज़ाकत समझकर संभलते जा रहे हैं। वफ़ादारी ने गलत रास्ते अपना लिए हैं इसलिए भौंकने के रंग और ढंग भी बदल गए हैं और सुनाने के लिए बदतमीज़ आवाज़ें ज़रूरी बताई जाने लगी हैं। इस दौरान समझदार, सामाजिक जानवरों का महत्त्व भी बढ़ रहा है, इसलिए वे ग़म में जी रहे और गुम होते जा रहे नासमझ आम सामाजिक जंतुओं की अनदेखी करते ही हैं।
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ठीक भी है, आम जंतु, विदेशों की तरह अच्छी नस्ल के घरेलु सदस्य तो नहीं होते। वहां खो जाएं तो मोहल्ले भर में रंगीन पोस्टर लगा दिए जाते हैं। यह उनके प्रेम, कृतज्ञता और वफ़ादारी के कारण ही होता है जिसमें दूसरों से अनुरोध किया जाता है कि उनके बच्चे को घर पहुंचा दें। क्या वफ़ादारी एक महंगा जानवर है जिसे पालने बारे हर कोई सोच नहीं सकता। मान लीजिए दोस्तो, जहां भूख अभी भी पसरी हो वहां वफ़ादारी अब एक जानवर है और बाज़ार में डिमांड और सप्लाई के आधार पर उसकी उचित कीमत भी है।
- संतोष उत्सुक