By अनन्या मिश्रा | Apr 17, 2024
जब भी देश में महान दार्शनिक की बात आती है, तो इसमें सबसे पहला नाम डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का आता है। आज ही के दिन यानी की 17 अप्रैल को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का निधन हो गया था। उन्होंने ही पूरी दुनिया को दर्शन शास्त्र से परिचित कराया था। वह देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे। वह दर्शनशास्त्र का काफी ज्ञान रखते थे। डॉ सर्वपल्ली ने ही भारतीय दर्शनशास्त्र में पश्चिमी सोच की शुरुआत की थी। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में।
जन्म और शिक्षा
मद्रास प्रेसीडेंसी के चित्तूर जिले के तिरुत्तनी गांव में 5 सितंबर 1888 को डॉ. राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। वह तेलुगु भाषी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा लुथर्न मिशन स्कूल, तिरुपति से पूरी की। इसके बाद उन्होंने वेल्लूर और मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी की। साल 1902 में राधाकृष्णन ने मैट्रिक परीक्षा पास की। फिर उन्होंने साल 1905 में कला संकाय की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। इसके बाद दर्शन शास्त्र में एम.ए करने के बाद राधाकृष्णन को साल 1918 में मैसूर महाविद्यालय में दर्शन शास्त्र का सहायक प्रध्यापक नियुक्त किया गया। बाद में सर्वपल्ली राधाकृष्णन उसी कॉलेज में प्राध्यापक बने।
परिवार
बता दें कि सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे। वह इतने गरीब थे कि उनको और उनके परिवार को केले के पत्ते पर भोजन करना पड़ता था। यहां तक कि एक बार उनके बार केले के पत्ते भी खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, तब उन्होंने जमीन को साफ कर उसी पर भोजन किया था। शुरूआती दिनों पर राधाकृष्णन 17 रुपए महीने कमाते थे और इन्हीं पैसों से वह अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। एक बार पैसों की जरूरत पड़ने पर उन्होंने उधार पैसे लिए थे, लेकिन समय पर ब्याज के साथ पैसे नहीं चुका पाने की स्थिति में राधाकृष्णन को अपने मेडल बेचने पड़े।
राजनीतिक कॅरियर
साल 1947 में देश को आजादी मिलने के बाद जब पंडित जवाहर लाल नेहरु भारत के पहले प्रधानमंत्री बने, तब नेहरु ने राधाकृष्णन से सोवियत संघ में राजदूत के रूप में काम करने का आग्रह किया था। सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पं. नेहरु की बात मानते हुए साल 1947 से 1949 तक संविधान सभा के सदस्य के रूप में काम किया। फिर साल 1952 तक उन्होंने रूस में भारत के राजदूत बनकर कार्य किया। इसके बाद 13 मई 1952 को सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के पहले उपराष्ट्रपति बने थे। वहीं साल 1953 से 1962 तक दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुलपति भी रहे।
मृत्यु
डॉ. राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शनशास्त्र और धर्म पर भी कई किताबें लिखी हैं। इनमें 'धर्म और समाज', 'गौतम बुद्ध: जीवन और दर्शन', और 'भारत और विश्व' प्रमुख है। वहीं 17 अप्रैल 1975 को सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद साल 1975 में अमेरिकी सरकार ने उन्हें टेम्पल्टन पुरस्कार से नवाजा था।