Sarojini Naidu Birth Anniversary: देश की आजादी में सरोजिनी नायडू ने निभाई अहम भूमिका, ऐसे बनीं 'नाइटेंगल ऑफ इंडिया'

By अनन्या मिश्रा | Feb 13, 2024

आज ही के दिन यानी की 13 फरवरी को 'नाइटिंगेल ऑफ इंडिया' यानी सरोजिनी नायडू का जन्म हुआ था। वह एक बेहतरीन कवियत्री और उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल थीं। सरोजिनी नायडू हमेशा महिला अधिकारों के लिए अपनी आवाज को बुलंद करती रहीं। वहीं उनके बर्थडे के मौके पर 'राष्ट्रीय महिला दिवस' भी मनाया जाता है। आपको बता दें कि नायडू के भाषण, सशक्त आवाज और कविता सुनाने के अंदाज से महात्मा गांधी काफी ज्यादा प्रभावित हुए थे। इसी कारण महात्मा गांधी ने सरोजिनी नायडू को 'देश की नाइटिंगेल' का खिताब दिया था। इसके अलावा वह स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय रहीं। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर सरोजिनी नायडू के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और शिक्षा

हैदराबाद में 13 फरवरी 1879 को सरोजिनी नायडू का जन्म हुआ था। वह बचपन में बेहद होशियार और कुशाग्र बुद्धि वाली थीं। पढ़ाई-लिखाई में तेज होने के साथ ही उन्होंने छोटी सी उम्र में कविताएं लिखना शुरूकर दिया था। उन्होंने महज 12 साल की उम्र में 12वीं की परीक्षा बेहद अच्छे नंबरों से पास कर ली थीं। स्कूल-कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वह कविताएं भी लिखती थीं। उनकी पहला कविता संग्रह 'गोल्डन थ्रैशोल्ड' था। 

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देश के लिए महत्वपूर्ण योगदान

आपको बता दें कि सरोजिनी नायडू ने देश के लिए कई महत्वपूर्ण योगदान दिए थे। एक बार उन्होंने देश के प्रति अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि देश की महानता, बलिदान और प्रेम देश के आदर्शों पर पूर्ण रूप से निहित है। सरोजिनी नायडू द्वारा किए गए कार्यो और योगदान को ध्यान में रखने हुए उनके जन्मदिन के मौके पर 'राष्ट्रीय महिला दिवस' मनाया जाता है।  


सरोजिनी नायडू ने महिला सशक्तिकरण से संबंधित मुद्दों की बढ़ चढ़कर वकालत की। देशभर में घूम-घूमकर महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक करने का काम किया। वहीं देश को आजादी दिलाने में वह महिलाओं को आगे आने के लिए प्रोत्साहित करती थीं। सरोजिनी नायडू के मुताबिक 'किसी भी देश की स्थिति वहां रहने वाली महिलाओं की स्थिति को देखकर जाना जा सकता है।'


ऐसे बनीं कैसर-ए-हिंद

साल 1928 में देश में प्लेग महामारी तेजी से फैली थी। इस दौरान सरोजिनी नायडू ने अपने जान की परवाह किए बिना जागरुकता फैलाने के लिए बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और लोगों की सेवा की। उस दौरान उनके समर्पण और जुनून को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उनको 'कैसर-ए-हिंद' की उपाधि दी थी। 


मृत्यु

वहीं दिल का दौरा पड़ने से 2 मार्च 1949 को सरोजिनी नायडू की मृत्यु हो गई।

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