Sardar Vallabhbhai Patel Birth Anniversary: सरदार वल्लभभाई पटेल ने राजाओं का अंत किए बिना खत्म कर दिए रजवाड़े, दृढ़ थे उनके इरादे

By अनन्या मिश्रा | Oct 31, 2023

सरदार वल्लभ भाई को हम सभी 'लौहपुरुष' के नाम से भी जानते हैं। वह भारत के पहले गृहमंत्री थे। देश की आजादी के बाद देशी रियासतों का एकीकरण कर अखंड भारत के निर्माण में वल्लभ भाई पटेल ने जो भूमिका निभाई उसको भुलाया नहीं जा सकता है। आज ही के दिन यानी की 31 अक्तूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर सरदार वल्लभ भाई पटेल के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म

गुजरात के नाडियाद में 31 अक्तूबर 1875 को वल्लभभाई पटेल का जन्म हुआ था। वहीं देश की एकता में उनके योगदान के लिए आज ही के दिन यानी की 31 अक्तूबर को 'राष्ट्रीय एकता दिवस' के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने साल 1897 में 22 साल की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी। वहीं उनकी शादी झबेरबा से हुई थी। जब वह 33 साल के थे, तो उनकी पत्नी का निधन हो गया था। 


खेड़ा सत्याग्रह का नेतृत्व

वल्लभभाई पटेल ने इंग्लैंड से वकालत की पढ़ाई की थी। इसके बाद साल 1913 में वह भारत वापस आ गए। फिर उन्होंने अपनी वकालत को यहीं पर जमाया। बता दें कि सरदार पटेल महात्मा गांधी के सत्याग्रह से काफी प्रभावित थे। साल 1918 में सूखे की वजह से गुजरात के खेड़ा में किसान कर देने में असमर्थ हो गए। ऐसे में किसानों पर लगे करों से राहत की मांग की गई। लेकिन अंग्रेज सरकार ने कर से राहत देने से इंकार कर दिया। तब पटेल ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में खेड़ा में सत्याग्रह की अगुवाई की। पटेल के नेतृत्व में किसानों की मांग के आगे अंग्रेज सरकार को भी झुकना पड़ा और अंग्रेज सरकार को करों में राहत देनी पड़ी।

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सरदार पटेल की शादी महज 13 साल की उम्र में हो गई थी। लेकिन जब पटेल 33 साल के थे, तो उनकी पत्नी की कैंसर से मौत हो गई। जब सरदार पटेल को इस बात की सूचना मिली तो वह उस दौरान सरकारी अदालत में कार्यवाही में व्यस्त थे। इसी दौरान किसी ने पटेल को पर्ची पर उनकी पत्नी के निधन की सूचना दी। सरदार पटेल ने वह पर्ची देखकर अपनी जेब में रख लिया और जिरह करने लगे। बाद में पटेल वह मुकदमा जीत गए और अदालत की कार्यवाही समाप्त होने के बाद उन्होंने सभी को पत्नी के निधन की सूचना दी।


जब गृहमंत्री बने पटेल

देश की आजादी के बाद 562 रियासतों में बटे संघ को एकीकृत करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था। हांलाकि देश के गृहमंत्री होने के नाते सरदार पटेल ने यह जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली। सरदार पटेल ने जूनागढ़, कश्मीर और हैदराबाद को छोड़कर सभी रियासतों का भारत में विलय करवा दिया। बाद में जूनागढ़ रियासत को जनमत संग्रह के आधार पर भारत में विलय कराने का कारनामा भी पटेल की वजह से संभव हो पाया। यह इतिहास की पहली ऐसी घटना साबित हुई, जब बिना किसी दंगे या खून की एक बूंद भी बहे बिना सभी रियासतों का भारत में विलय करवा दिया गया। हांलाकि हैदराबाद रियासत का विलय करवाने के लिए पटेल को सेना भेजनी पड़ी थी। जिसके बाद हैदराबाद के निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया था।


लौहपुरुष

सरदार वल्लभभाई पटेल की अद्भुत कूटनीति कौशल और नीतिगत दृढ़ता की वजह से महात्मा गांधी ने उन्हें 'लौहपुरुष' कहा था। सरदार पटेल को 'भारत का बिस्मार्क' भी कहा जाता है। क्योंकि बिस्मार्क ने भी जर्मन साम्राज्य की स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी। इन्ही सब गुणों को देखकर पटेल को 'भारत का बिस्मार्क' कहा गया।


सादगी भरा जीवन

आपको जानकर हैरानी होगी कि सरदार वल्लभ भाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री भी हो सकते थे। लेकिन गांधीजी के निर्देश पर उन्होंने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से अपना नाम वापस ले लिया था। जिसके बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पं नेहरु बने थे। सरदार पटेल अपना जीवन बेहद सादगी से जीते थे। उनके पास खुद का मकान तक नहीं था। वह अहमदाबाद में एक किराए के मकान में रहते थे। 


निधन

15 दिसंबर 1950 को दिल का दौरा पड़ने के कारण सरदार वल्लभ भाई पटेल बेहोश हो गए। करीब 4 घंटे बाद जब वह होश में आए तो उन्होंने थोड़ा सा पानी मांगा। जिसके बाद मणिबेन ने उनको गंगाजल में शहद मिलाकर चम्मच से पिलाया और सरदार पटेल ने सदा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

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