By दीपक कुमार त्यागी | Oct 11, 2022
भारतीय राजनीति के एक दिग्गज पुरोधा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर देश के रक्षामंत्री तक का सफर अपनी मेहनत के दम पर सफलतापूर्वक तय करने वाले व देश-दुनिया में 'धरतीपुत्र’ के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव का निधन आम जनमानस व राजनीति के क्षेत्र दोनों के लिए ही एक बहुत बड़ी अपूरणीय क्षति है। क्योंकि राजनीति के क्षेत्र में मुलायम सिंह यादव जैसी दूरदृष्टी, बेबाक, सरल, सहज व दूसरों के दुःख दर्द को अपना मान करके उसका निदान करने के लिए हर वक्त तत्पर रहने वाली शानदार शख्सियत विरले ही जन्म लेती है। वह देश के राजनीतिक पटल पर किसानों, गरीबों, नौजवानों व आम जनमानस की एक दमदार बुलंद आवाज थे। मुलायम सिंह यादव का ओरा ऐसा था कि उनके द्वारा बोली गयी छोटी-बड़ी बात को राजनेताओं, शासन-प्रशासन व मीडिया में विशेष तव्वजो दी जाती थी।
मुलायम सिंह यादव ने देश-दुनिया की राजनीति की एक बहुत बड़ी प्रयोगशाला माने जाने वाले उत्तर प्रदेश की राजनीति के दुर्गम रास्ते को चुनकर के अपनी मेहनत से उसको सुगम बनाते हुए दिल्ली की केन्द्र की राजनीति तक का सफर बखूबी तय किया था। देश की राजनीति में मुलायम सिंह यादव को राजनीतिक दावं-पेंचों का एक माहिर बड़ा खिलाड़ी माना जाता था। मुलायम सिंह यादव ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में वह सब कुछ पाया जोकि एक राजनीतिज्ञ अपने जीवन काल में पाना चाहता है। वह 8 बार विधायक 7 बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए, मुलायम सिंह यादव तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर आसीन रहे और केंद्र में संयुक्त मोर्चा की सरकार में उन्होंने बेहद अहम रक्षा मंत्री के दायित्व को भी दमदार ढंग से निभाने का कार्य किया था।
मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवम्बर 1939 को इटावा जनपद के सैफई गांव के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था, उनके पिता सुघर सिंह यादव सामान्य किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे, उनकी माता मूर्ति देवी भी एक आम घरेलू महिला थी। मुलायम सिंह यादव अपने पाँच भाई-बहनों में रतन सिंह यादव से छोटे थे और अभयराम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव, राजपाल सिंह और कमला देवी से बड़े थे। वैसे तो मुलायम सिंह यादव के पिता की इच्छा थी कि वह एक प्रसिद्ध पहलवान बनें, किन्तु समय का पहिया ऐसा घूमा कि क्षेत्र में पहलवानी करते हुए ही मुलायम सिंह यादव का राजनीति में पदार्पण हो गया, उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु चौधरी नत्थूसिंह को मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती-प्रतियोगिता में अपनी कार्यशैली से बेहद प्रभावित किया और इस घटना के बाद ही उनका नत्थूसिंह के परम्परागत विधान सभा क्षेत्र जसवन्त नगर से अचानक ही राजनीतिक सफर शुरू हो गया था। इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक जीवन के पथ में फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, उन्होंने सफलता की नित-नयी कहानी खुद की मेहनत के दम पर लिखने का कार्य किया। राजनीति की शुरुआत में ही मुलायम सिंह यादव ने बहुत मेहनत करनी शुरू कर दी थी। उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में सफलता हासिल करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए पहले आसपास फिर बदलते समय के साथ उत्तर प्रदेश के गांव-गांव व शहर-शहर में पैदल, साइकिल, मोटर साइकिल, घोड़ा गाड़ी, कार, जीप, बस, रेलगाड़ी आदि से दिन रात एक करके घूमना शुरू कर दिया था और अपने बेहद मिलनसार सरल व्यवहार के बलबूते रोजाना नए-नए साथियों से मिलना जारी रखते हुए, वह एक बहुत बड़ा कारवां बनाते चले गये। जिसके परिणाम स्वरूप ही उन्होंने सहकारी बैंक के निदेशक से लेकर के विधायक, मुख्यमंत्री, सांसद व देश के रक्षा मंत्री तक का सफर सफलतापूर्वक तय किया था। आज उनकी पहचान देश व दुनिया में एक बड़े धर्मनिरपेक्ष व समाजवादी विचारधारा को मानने वाले दिग्गज राजनेता के रूप में होती थी।
चुनावी रणभूमि में मुलायम सिंह यादव वर्ष 1967 में पहली बार विधायक और मंत्री बने। उसके बाद जीवन में फिर कभी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और वर्ष दर वर्ष राजनीति के क्षेत्र में सफलता हासिल करते चले गये। 5 दिसंबर 1989 को मुलायम सिंह यादव पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 24 जनवरी 1991 तक रहे। मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 1992 में अपनी समाजवादी पार्टी का गठन किया था। समय का पहिया जब आगे बढ़ा तो वह एक बार फिर से 5 दिसम्बर 1993 को वह दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 3 जून 1996 तक रहे। इसके बाद वर्ष 1996 में मुलायम सिंह यादव ग्यारहवीं लोकसभा के लिए मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से चुने गए थे और केन्द्र की संयुक्त मोर्चा सरकार में मुलायम सिंह यादव भी शामिल हुए और देश के रक्षा मंत्री बने थे। हालांकि केंद्र की यह सरकार बहुत लंबे समय तक नहीं चल पायी थी। लेकिन उस समय तक देश की राजनीति में मुलायम सिंह यादव एक बहुत बड़े पुरोधा बनकर उभर चुके थे, उसी के चलते ही मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने तक की भी बात राजनीतिक गलियारों में गंभीरता पूर्वक चलने लगी थी, वह प्रधानमंत्री पद की दौड़ में अन्य प्रतिद्वंद्वियों से बहुत आगे थे, किंतु उस वक्त उनके कुछ सजातीय राजनेताओं ने उनका जरा भी साथ नहीं दिया, जिसके चलते मुलायम सिंह यादव देश के प्रधानमंत्री बनने से अंतिम समय में चूक गये थे। देश के राजनीतिक गलियारों में ऐसा माना जाता है कि उस समय पिछड़ों के दिग्गज राजनेता लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने अपने-अपने राजनीतिक हितों को साधने की खातिर मुलायम सिंह यादव के प्रधानमंत्री बनने के सपने पर पानी फेरने का कार्य किया था। हालांकि इसके बाद जब लोकसभा चुनाव हुए तो मुलायम सिंह यादव ने कन्नौज व संभल से जीतकर पुनः लोकसभा में दमदार ढंग से अपनी वापसी करने का कार्य किया था। बाद में उन्होंने कन्नौज से अपने पुत्र अखिलेश यादव को लोकसभा के चुनाव में जितवाकर के सांसद बनवाकर राजनीतिक शुरुआत करवाने का कार्य किया था। राजनीति में धोबी पछाड़ दांव के जबरदस्त खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव एक बार फिर सभी को अपने धोबी पछाड़ दांव से मात देते हुए 29 अगस्त 2003 को तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 11 मई 2007 तक रहे थे।
मुलायम सिंह यादव आम जनता के बीच नेता जी के नाम से भी बहुत मशहूर हैं। लोगों को उन्हें इस नाम से पुकारते वक्त अपने पन का आभास होता था, लेकिन लोगों का चहेता समाजवाद के यह दिग्गज पुरोधा अब दुनिया में नहीं हैं। अब उनकी विचारधारा को जीवित रखने के लिए उस पर चलते हुए उसको धरातल पर साकार करने की जिम्मेदारी उन सभी लोगों, सपा नेताओं व उनके पुत्र अखिलेश यादव पर है जोकि उन्हें बेहद प्यार करते थे। देश में राजनीति के क्षेत्र का हर व्यक्ति यह बहुत अच्छे से जानता है कि मुलायम सिंह यादव एक राजनेता मात्र नहीं थे, बल्कि वह एक विचारधारा थे। देश में राम मनोहर लोहिया के समाजवाद का यह चमकता सूरज आज हमेशा के लिए अस्त हो गया है, लेकिन अब भी लोगों को उनके जीवन पथ की संघर्ष की विभिन्न गाथाओं से प्रेरणा हमेशा मिलती रहेगी।
देश के राजनीतिक पटल पर मुलायम सिंह यादव की उपलब्धियों का एक बहुत लंबा इतिहास है, जो हमें हमेशा उनकी याद दिलाता रहेगा। मुलायम सिंह यादव देश की राजनीति में किसानों की सशक्त आवाज बनकर के धरती पुत्र कहलाए, तो पिछड़ों-शोषितों गरीबों के हक़ का पहरेदार बनकर देश के गली मोहल्ले में नेता जी की उपाधि से नवाजें गये। देश के राजनीतिक गलियारों में मुलायम सिंह यादव को नाम के अनुरूप मन से मुलायम माने जाने वाला एक ऐसा राजनेता माना जाता है जिसका दृढ़संकल्प व इरादे बेहद सख्त लोहे के थे। मुलायम सिंह यादव की सबसे बड़ी खासियत थी कि वह किसी पार्टी कार्यकर्ता या आम जन से एक बार मिल लें तो लोग उनके मुरीद हो जाते थे और फिर कभी उनको भूल नहीं पाते थे। हालांकि मुलायम सिंह यादव के निधन से भारतीय राजनीति के एक युग का अंत बेशक हो गया है, लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि मुलायम सिंह यादव के संघर्ष और सफलता की दास्तान युगों-युगों तक हम सभी लोगों के जेहन व दिलों में हमेशा जिंदा रहेगी।
-दीपक कुमार त्यागी
(वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार व राजनीतिक विश्लेषक)