By रेनू तिवारी | Mar 15, 2022
बेहद सरल स्वाभाव रखने वाले भाजपा के आइडल नेता साहिब सिंह वर्मा ने अपने नेक कार्यों के कारण कम उम्र में बहुत लोकप्रियता हासिल की। साहिब सिंह वर्मा के व्यक्तित्व के कारण है आम नागरिक अपने आप को उनके नजदीक महसूस करते थे और उनपर विश्वास करते थे। कठिन से कठिन कार्यों और परिस्थितियों को साहिब बिना शोर-शराबे के आसानी से निपटा देते थे। उनके इस अंजाब के काफी लोग प्रभावित थे। बहुत की कम समय में उन्होंने लोगों के दिलों में अपनी मजबूत जगह बना ली थी। उनकी बढ़ती लोकप्रियता के कारण पार्टी में कई कद्दावर नेता अपने भविष्य को लेकर असुरक्षित महसूस करने लगे थे। साहिब सिंह वर्मा ने कुछ समय बतौर दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर काम किया था। उस दौरान बड़े-बड़े दाव पेंच उनको सीएम की कुर्सी से नहीं हटा सकते लेकिन प्याज के बढ़ते दामों ने साहिब से उनकी सीएम की कुर्सी छीन ली। इसके बाद उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और बस स्पॉट से डीटीसी बस पकड़कर अपने घर मुंडका चले गये थे। इसके बाद उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ गयी थी।
साहिब सिंह वर्मा कौन थे?
साहिब सिंह वर्मा एक भारतीय राजनीतिज्ञ और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष थे। उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री (1996-1998) के रूप में कार्य किया और 13वीं लोकसभा में बतौर सासंद चुककर भारत की संसद पहुंचे। 1999 का लोकसभा चुनाव उन्होंने बाहरी दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से दो लाख से अधिक मतों के अन्तर से जीता। अटल बिहारी बाजपयी की सरकार के दौरान उन्होंने भारत के केंद्रीय श्रम मंत्री के रूप में कार्य किया। साहिब सिंह का जन्म 15 मार्च 1943 को दिल्ली के मुंडका गांव में एक किसान परिवार में हुआ था उनकी मां का नाम भरपाई देवी और पिता का नाम मीर सिंह था। साहिब के चाचा ने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी थी, उस दौरान वह आजाद हिंद फौज का हिस्सा हुआ करते थे। अपने चाचा और आर्य समाज से प्रेरित होकर ही उन्होंने अपने सामाजिक कार्यों को करना शुरू किया। चाचा के कार्यों ने युवा साहिब सिंह पर अमिट छाप छोड़ी। सिंह ने पुस्तकालय विज्ञान में पीएचडी की डिग्री थी जिसके बाद उन्होंने दिल्ली में लाइब्रेरियन के रूप में काम करना शुरू किया। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से कला (एम.ए.) और पुस्तकालय विज्ञान में भी मास्टर डिग्री हासिल की। 11 साल की उम्र में साहिब सिंह वर्मा की शादी (1954) साहिब कौर से हुई। उनके दो बेटे और तीन बेटियां हैं।
अच्छे सामाजिक कार्यों के कारण लोकप्रिय हुए साहिब सिंह वर्मा
साहिब सिंह वर्मा ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में एक स्वयंसेवक के रूप में अपनी सामाजिक-राजनीतिक यात्रा शुरू की और बाद में राजनीति में एक बड़ा नाम बन गये। इस दौरान उन्होंने सामाजिक गतिविधियों में रुचि ली। उन्होंने ग्रामीण स्वाभिमान और राष्ट्रीय स्वाभिमान नामक दो गैर सरकारी संगठन (NGO) शुरू किए। उन्होंने दिल्ली के विभिन्न गांवों में सौ से अधिक स्वाभिमान केंद्र स्थापित किए। इन केंद्रों में समाज के वंचित वर्गों के युवाओं के लिए पुस्तकालय और व्यावसायिक प्रशिक्षण की सुविधा थी। उन्होंने कारगिल युद्ध के शहीदों के परिवारों के लिए आईजी इंडोर स्टेडियम में एक सम्मान समारोह का आयोजन किया और ढाई सौ से अधिक शहीदों के परिवारों को एक-एक लाख रुपये का भुगतान किया।
गुजरात भूकंप के बाद उन्होंने दिल्ली के लोगों की मदद से दो गांवों का पुनर्निर्माण करवाया। दुधई नामक गाँवों में कंक्रीट के घरों का निर्माण करवा कर केवल सौ दिनों के भीतर आठ सौ से अधिक लोगों को छत दी। उस गांव का नाम बदलकर इंद्रप्रस्थ कर दिया गया। इसी तरह जब उड़ीसा में चक्रवात आया तो उन्होंने वहां जाकर कई गांवों के पुनर्निर्माण में मदद की। उन्होंने इसके अध्यक्ष के रूप में वर्ल्ड जाट आर्यन फाउंडेशन की भी सेवा की थी।
1977 में वे दिल्ली नगर निगम के लिए चुने गए और गुरु राधा किशन के हाथों एक पार्षद के रूप में शपथ ली। शुरुआत में जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीते, उन्हें भाजपा के टिकट पर फिर से चुना गया। वह 1993 में दिल्ली सरकार में शिक्षा और विकास मंत्री बने। दिल्ली के शिक्षा मंत्री के रूप में उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय के तहत कई नए कॉलेज और बड़ी संख्या में स्कूल स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। दिल्ली के विकास मंत्री के रूप में उन्होंने गांवों के विकास में बहुत रुचि ली।
1996 में दिल्ली के मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना भ्रष्टाचार के आरोपों में फंस गये थे उस कारण उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था, इसके बाद साहिब सिंह दिल्ली के मुख्यमंत्री बनें। दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने लोगों के कल्याण के लिए काम किया। उन दिनों अनाधिकृत कॉलोनियों में विकास कार्यों पर रोक लगी हुई थी। दिल्ली में अनधिकृत कॉलोनियों के निवासियों के लिए राहत पाने के लिए वह व्यक्तिगत रूप से उच्च न्यायालय में उपस्थित हुए। मदन लाल खुराना से बढ़ती प्रतिद्वंद्विता का सामना करते हुए सिंह ने ढाई साल तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। 1998 में लगातार प्याज की कीमतें बढ़ती जा रही थी जिसके कारण उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। बाद में उनकी जगह सुषमा स्वराज ने ले ली। हालाँकि भाजपा ने उनके मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान दिल्ली में तीन चुनाव जीते, फिर भी उन्हें 1998 के चुनावों से ठीक पहले हटा दिया गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने मेट्रो की शुरुआत की, इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय की स्थापना की और कई अन्य ऐतिहासिक निर्णय लिए।
इसके बाद, उन्होंने लोकसभा चुनाव, 1999 में बाहरी दिल्ली से दो लाख से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की। 2002 में वे वाजपेयी सरकार में श्रम मंत्री बने, और भविष्य निधि ब्याज दर को कम करने के खिलाफ नौकरशाहों के खिलाफ खड़े होने के लिए "चीन की दुकान में बैल" के रूप में जाने जाते थे। वे असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना के सूत्रधार थे। हालांकि 2004 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। 2007 में राजस्थान में एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।
- रेनू तिवारी