सुरक्षा ही नहीं सेवा में भी बेजोड़ है भारतीय वायुसेना

By राजेश कश्यप | Oct 08, 2016

विकट व विषम परिस्थितियों के बीच पलक झपकते ही दुश्मन को धूल चटाने में माहिर ‘भारतीय वायुसेना’ यानी ‘इंडियन एयरफोर्स’ का स्थापना दिवस प्रतिवर्ष 8 अक्तूबर को मनाया जाता है। भारतीय वायुसेना विश्व की चौथी सबसे बड़ी वायुसेना मानी जाती है। इसकी स्थापना 8 अक्तूबर, 1932 को की गई थी। उस समय इसे ‘रॉयल इंडियन एयरफोर्स’ के नाम से जाना जाता था। वर्ष 1950 में देश के पूर्ण गणतंत्र राज्य घोषित होने के बाद ‘रॉयल’ शब्द हटाकर इसे सिर्फ ‘इंडियन एयरफोर्स’ कर दिया गया। आजादी से पहले द्वितीय विश्वयुद्ध में और आजादी के बाद भारत-पाकिस्तान व चीन के साथ हुए युद्धों में भारतीय वायुसेना अपना पराक्रम बखूबी दिखा चुकी है। संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन में भी वायुसेना अपनी क्षमता का लोहा मनवा चुकी है। इन सबके साथ-साथ भारतीय वायुसेना देश में आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के दौरान अपने साहस, शौर्य और सूझबूझ का बराबर परिचय देती रही है। थल सेना और नौसेना के साथ वायुसेना देश की सुरक्षा और सेवा में अपना अटूट अनूठा योगदान दे रही है। भारतीय वायुसेना का ध्येय वाक्य संस्कृत में ‘नभस्पर्श दीप्तम्’ और अंग्रेजी में ‘टच दी स्काई विद ग्लोरी’ है, जबकि वायुसेना रक्षा का ध्येय वाक्य संस्कृत में ‘आकाशे शुत्रन् जहि’ और अंग्रेजी में ‘किल दी इनेमी इन दी स्काई’ है। अपने इन ध्येय वाक्यों के उद्घोष के साथ वायसेना के जांबाज दुश्मन पर टूट पड़ते हैं और विजय की नित नई गाथा लिखते हैं। 

भारतीय वायुसेना का इतिहास बेहद गौरवमयी रहा है। इतिहास इसके बेजोड़ प्रदर्शनों की अनंत मिसालों का साक्षी है। अक्तूबर, 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना ने विषम परिस्थितियों एवं विकट चुनौतियों के बीच जो रणकौशल दिखाया, वह हैरान कर देने वाला था। इसके बाद, सितम्बर, 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान वायुसेना ने अपने साहस व शौर्य का प्रदर्शन करते हुए थलसेना को अपने वैंपायर, एफबीएमके-52, मिस्टर, कैनबरा, हंटर, नैट आदि के जरिए मदद पहुंचाई और पाकिस्तान को धूल चटाने में अहम भूमिका निभाई। दिसम्बर, 1971 में पाकिस्तान के साथ दूसरी बार हुए युद्ध में भी भारतीय वायुसेना ने दुश्मन के छक्के छुड़ाने और पूरी पाकिस्तानी फौज को भारतीय सेना के सामने घुटनों के बल पर आत्म-समर्पण करने के लिए विवश कर दिया। इस युद्ध में भारतीय वायुसेना ने अपने आक्रामक व अकाट्य प्रहारों से दुश्मन की संचार प्रणाली को ध्वस्त करते हुए, उसके आयुध भण्डार को खाक करके रख दिया। मई, 1999 में कारगिल-युद्ध के दौरान भी भारतीय वायुसेना के योगदान का कोई सानी नहीं था। विकट व दुर्गम पहाड़ियों पर बैठे दुश्मनों के लिए काल बनने वाली थल सेना को वायुसेना ने प्रभावी एवं चमत्कारिक सहयोग किया। परिणामस्वरूप जल्द ही देश के दुश्मनों के पाँव उखड़ गए और उन्हें पीठ दिखाकर भागने के लिए विवश होना पड़ा। 

 

भारतीय वायुसेना ने देश के हर सैन्य अभियान में बेजोड़ भूमिका निभाई है। अप्रैल, 1984 में उत्तरी लद्दाख में सियाचिन ग्लेशियर पर नियन्त्रण हासिल करने के मिशन में भारतीय थल सेना का जबरदस्त सहयोग किया। वायुसेना की विश्व के सबसे ऊंचे, विकट एवं विषम ठण्डे युद्ध क्षेत्रों में रसद-सामग्री, टुकड़ियां भेजने व अन्य सभी सहायता सुलभ करवाने जैसे अनूठे व दिलेरी भरे कारनामों की एक लंबी फेहरिस्त है, जिसे पढ़कर हर कोई दांतों तले अंगुलियां दबाने को विवश हो जाता है। वर्ष 1987 में चलाए गए ‘ऑपरेशन पवन’ में भारतीय वायुसेना का योगदान स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हुआ। यह अभियान लगातार 30 माह तक चला। यह उत्तरी व पूर्वी श्रीलंका में भारतीय शांति सेना का अभियान था। इस अभियान के दौरान वायुसेना के परिवहन जहाजों और हैलीकाप्टरों ने 70,000 से अधिक उड़ानें भरीं और अनवरत अटूट हवाई सम्पर्क कायम रखते हुए एक लाख टुकड़ियों व अर्द्धसैनिक बलों की जबरदस्त मदद की। वायुसेना ने रसद, आयुध और अन्य सामग्री मुहैया करवाने के साथ-साथ घायल लोगों को समुचित स्थान पर पहुंचाने जैसे अनेक साहसिक कारनामों को अंजाम दिया। वर्ष 1988 में ‘ऑपरेशन कैक्टस’ के दौरान भारतीय वायुसेना द्वारा दिए गए अनूठे योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। दरअसल, मालदीव पर भाड़े के सैनिकों ने आक्रमण कर दिया था और उस समय मालदीव ने भारत से तत्काल मदद मुहैया करवाने की अपील की थी। इस अपील पर प्रभावी व तात्कालीक कार्यवाही के रूप में इस ‘ऑपरेशन कैक्टस’ को अंजाम दिया गया था। इन सबके अलावा, अक्तूबर, 1993 से दिसम्बर, 1994 तक सोमालिया में शांति बहाली के अभियान में अत्यन्त सराहनीय योगदान दिया। इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में तो भारतीय वायुसेना का लगातार लाजवाब प्रदर्शन रहा है, जिसकी पूरी दुनिया कायल है। देश में आई प्राकृतिक आपदाओं के दौरान वायुसेना ने हमेशा अटूट एवं अनूठा योगदान दिया है। इसके लिए वायुसेना की जितनी सराहना की जाए, उतना कम है।

 

भारतीय वायुसेना विश्व में रणकुशलता, सामरिकता और साहसिकता के लिए प्रमुख सेनाओं के रूप में जानी जाती है। इसकी कुल पाँच कमान हैं, जिनमें पश्चिमी कमान, केन्द्रीय कमान, पूर्वी कमान, दक्षिणी-पश्चिमी कमान और दक्षिणी कमान शामिल हैं। इस समय भारतीय वायुसेना के पास 2000 से अधिक लड़ाकू व अन्य विमानों का विशाल बेड़ा है। सुखोई-30 लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना की शान हैं। ये अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमान हैं। ये दो सीटर, दो इंजन वाला बहुद्देशीय वाला सुपरसोनिक जेट है, जो 2500 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार के साथ उड़ान भरते हैं। ये परमाणु बम वहन करने की जबरदस्त क्षमता रखते हैं और हवा से हवा और हवा से सतह पर मार करने कई अत्याधुनिक एवं खतरनाक मिसाईलों से लैस हैं। ये घातक हथियारों और 8000 किलोग्राम के आयुधों से लैस हैं। बेहद घातक व आक्रमणकारी क्षमता रखने वाले मिग-27 विमानों का तो कहना ही क्या! इनके अन्दर समाहित तकनीक बेतोड़ और बेजोड़ है। कारगिल में ये विमान अपना लोहा बखूबी मनवा चुके हैं और ‘बहादुर’ के नाम से अपनी पहचान स्थापित कर चुके हैं। एक साथ हवा या सतह पर चार-पाँच निशानों पर अचूक हमला करने में माहिर मिराज लड़ाकू विमानों की मार जब पड़ती है तो दुश्मन पानी तक नहीं मांगता है। ‘शमशेर’ के उपनाम से पहचाने जाने वाले जेगुवार लड़ाकू विमानों के जौहर के किस्से पूरी दुनिया में मशहूर हैं। इन सबके अलावा, लिबरेटर, कैनबरा, स्पिट फायर, हरक्यूलिस, बाईसन फाईटर एयरक्राफ्ट, ग्लोबमास्टर, किरण, हॉक, हारवर्ट, टाईगर-मोथ, आईएल-76, एवरो, चेतक, चीता, आईएम-8, आईएआई हार्पी, ऐरिएव-ए 50 ई/आई, एसयू-30, एमकेआई, मिग-21, एमआई-17, एमआई-26, एमआई-25/35, ध्रुव, लक्ष्य आदि अनेक ऐसे लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना को अजेय बनाते हैं। जल्द ही फ्रांस के अत्याधुनिक व कहर ढाने वाले राफेल विमान और रूस के ‘सुपर सुखोई’ विमान भारतीय वायुसेना की शोभा बढ़ाते नजर आएंगे। गत जुलाई, 2016 में स्वदेश निर्मित लड़ाकू विमान ‘तेजस’ भारतीय वायुसेना को समर्पित हो चुके हैं। इनसे वायुसेना की ताकत में अभूतपूर्व इजाफा हुआ है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस समय भारतीय वायुसेना में लगभग 1 लाख 27 हजार वीर जाबांज देश की अटूट सुरक्षा व सेवा कर रहे हैं और 2000 से अधिक लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना की शोभा बने हुए हैं। 

 

भारतीय वायुसेना के जांबाज रणबांकुरों ने अपने शौर्य और पराक्रम के बल पर वीरता पदकों के मामले में भी अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज करवाई है। युद्धकाल के दौरान मिलने वाले सर्वोच्च वीरता पदक ‘परमवीर चक्र’ से वर्ष 1972 में फ्लाईंग ऑफीसर निर्मलजीत सिंह शेखों को नवाजा गया। वे वर्ष 1971 में पाकिस्तान के विरूद्ध वीरता की अनूठी मिसाल पेश करते हुए रणभूमि में शहीद हुए थे। उनके अलावा अब तक वायुसेना के 21 जांबाजों को ‘महावीर चक्र’ से अलंकृत किया जा चुका है और 204 रणबांकुरों को ‘वीर चक्र’ से सुशोभित किया जा चुका है। शांतिकाल के दौरान अनूठी सेवा करने के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च पुरस्कार ‘अशोक चक्र’ से वायुसेना के दो शूरवीरों, फ्लाईट लेफ्टिनेंट सुआस बिस्वास (वर्ष 1953) और स्क्वार्डन लीडर राकेश शर्मा (वर्ष 1985) से नवाजा जा चुका है। इनके साथ ही 34 जाबांजों को ‘कीर्ति चक्र’ और 159 वीरों को ‘शौर्य चक्र’ प्रदान किया गया है। इन सबके अलावा हजारों भारतीय वायुसैनिकों को उनकी अनूठी बहादुरी के लिए ‘वायुसेना मैडल’, ‘एम. इन डी.’, ‘परम विशिष्ट सेवा मैडल’, ‘अति विशिष्ट सेवा मैडल’, ‘विशिष्ट सेवा मैडल’, ‘सर्वोत्तम युद्ध सेवा मैडल’, ‘उत्तम सेवा मैडल’, ‘युद्ध सेवा मैडल’ आदि से अलंकृत किया जा चुका है।

 

कुल मिलाकर, भारतीय वायुसेना विश्व की सर्वोच्च सेनाओं में से एक है और सेवा एवं सुरक्षा में एकदम बेजोड़ है। भारतीय वायुसेना की अद्भुत निड़रता, जाबांजी, तत्पर तैयारी, अति आक्रामकता, शत्रुओं को पलक झपकते ही मार गिराने एवं राष्ट्र के आसमान को सुरक्षित रखने की असाधारण क्षमता और अनूठी सेवा एवं बेजोड़ सुरक्षा के लिए दिल से सलाम और कोटि-कोटी नमन।

 

- राजेश कश्यप

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