सदमार्गों के मोहल्ले में (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Dec 23, 2020

हर युग प्रिय विकासजी की अनेक स्थानीय व राष्ट्रीय योजनाओं के अंतर्गत देश में नभ, जल व थल मार्गों का निर्माण जारी है यह अलग बात है कि इनमें से अनेक उदघाटन के चक्कर में पुराने हो जाते हैं लेकिन  कुछ ऐसे मार्ग भी हैं जिनके बारे आज तक किसी भी बुद्धिजीवी या अबुद्धिजीवी ने संजीदगी से विचार नहीं किया। यह हमारी समृद्ध, सांस्कृतिक परम्परा है कि जीवन की शुरुआत से ही समाज सेवकों, गुरुओं, नेताओं व मंत्रियों के माध्यम से किसी न किसी महापुरुष के पद चिन्हों या मार्ग पर चलने का नैतिक आह्वान किया जाता है। हर किसी को अपने मार्ग पर चलने के लिए मजबूर कर देने वाले, अवसरानुसार अपने भाषणों में भारत वासियों को राम, गांधी, बाबा अंबेडकर, महात्मा बुद्ध व अन्यों के नाम पर चलने की संजीदा सलाह देते हैं। अब उचित समय आ गया है कि नया मोहल्ला बसाकर उसमें अनेक प्रेरक मार्गों का निर्माण कर दिया जाए जैसे बाबा मार्ग, गुरु मार्ग, महागुरु मार्ग। यह मार्ग इतने सशक्त स्वच्छता अभियान के बावजूद समाज में बिखरे पालिथिन, प्लास्टिक व दूसरे कचरे को इक्कठा कर बनाए जा सकते हैं। बिना किसी भेदभाव के कोई भी नागरिक जब चाहे अपने मनपसंद मार्ग पर टहल सकता है, अपनी पत्नी को भी ले जा सकता है, बच्चे कुछ देर के लिए मोबाइल छोड़ दें तो उन्हें भी उस रास्ते पर चलना सिखा सकता है।

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विकास को विकास आकर्षित करता है, इस नई विकसित जगह के पड़ोस में न्यूमार्किट बनने की संभावना अविलम्ब उग सकती है। टहलने और गोल गप्पे खाने के लिए एक नई जगह हो जाएगी, पुरानी भीड़ वाली जगहों पर आजकल वैसे भी कोई जाना नहीं चाहता। भविष्य में यहां किसी बैंक का एटीएम लग सकता है। फिल्हाल यह जगह नैतिक एटीएम सेवा उपलब्ध करवा सकती है। सातों दिन चौबीस घंटे जब चाहे यहां चलकर पुण्य कमा लो। मान लीजिए काम धाम निबटाने के बाद, स्वादिष्ट खाने के बावजूद भी रात को ठीक से नींद नहीं आई तो सुबह अपने उठने के समय को ब्रह्ममुहर्त मानकर, महात्मा बुद्ध मार्ग पर आठ दस मिनट चल लो, फिर साथ ही बने दूसरे गुरु या महागुरु मार्ग को भी निबटा लो। महात्मा गांधी मार्ग पर चलते हुए, लंबी व गहरी सांस लेते हुए महसूस करो कि मैं सही मार्ग पर आगे बढ़ रहा हूँ, मेरे जीवन में सफलता और समृद्धि का प्रवेश हो रहा है। इन सदमार्गों के अंत में संबन्धित महापुरुष, गुरु या महागुरु के पदचिन्ह बनाए जाने चाहिए जो बेहद नर्म व मुलायम रबड़ के हों ताकि इन पर पांव रखते ही लगे कि हमारे पांवों का महापुरुष के चरणों में समावेश हो गया है।

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नई सामाजिक संस्था इस स्थल को संचालित व नियंत्रित कर ही लेगी। एक साथ सभी मार्गों व पदचिन्हों पर चलने के लिए एक के साथ तीस प्रतिशत मुफ्त जैसी आफ़र दी जा सकती है। आम आदमी समय की कमी के कारण अपनी ज़िंदगी का रास्ता भूला रहता है इसलिए एक ही जगह अनेक पदचिन्हों व सदमार्गों की उपलब्धता उसे मनपसंद महापुरुष के रास्ते पर चलाकर अनेक निजी, क्षेत्रीय या राष्ट्रीय समस्याओं का हल खोजने को प्रेरित कर सकती है। हमारे यशस्वी, अनुभवी महानुभाव अपना स्वर्णिम अनुभव कहीं भी की तरह यहां भी प्रयोग कर सकते हैं। हर क्षेत्र में सदमार्गों का मोहल्ला बसा दिया जाए तो निर्माण गतिविधियों को भी नई गति मिलेगी।

 

- संतोष उत्सुक 

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