Sachin Pilot इस बार कोरे आश्वासन नहीं ठोस समाधान के साथ लौटेंगे जयपुर, Hanuman Beniwal से गठबंधन के भी बढ़ रहे आसार

By गौतम मोरारका | Apr 12, 2023

अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ एक दिन का अनशन करने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट बुधवार सुबह दिल्ली पहुंचे। ऐसी अटकलें हैं कि दिल्ली में पायलट अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा और अन्य वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर सकते हैं। हालांकि, पायलट के करीबी सूत्रों ने कहा कि ऐसी कोई बैठक तय नहीं हुई है। यह भी माना जा रहा है कि सचिन पायलट के राजनीतिक कॅरियर के लिहाज से उनकी यह दिल्ली यात्रा बहुत महत्वपूर्ण है। बताया जा रहा है कि इस बार सचिन पायलट कोरे आश्वासन लेकर नहीं बल्कि अपने मुद्दों का ठोस समाधान लेकर ही वापस जयपुर आएंगे।


सचिन पायलट के दिल्ली दौरे को लेकर कांग्रेस आलाकमान के भीतर कोई उत्सुकता नहीं है क्योंकि कांग्रेस की ओर से सचिन पायलट को कह दिया गया था कि यदि उन्होंने अनशन किया तो उसे पार्टी विरोधी माना जायेगा लेकिन फिर भी उन्होंने अनशन किया था। जयपुर में अनशन स्थल से बाहर निकलते समय पायलट ने संवाददाताओं से कहा था कि राहुल गांधी, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताओं के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। उन्होंने दावा किया था कि उनका अनशन इस आंदोलन को गति देगा। उन्होंने कहा था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ यह संघर्ष जारी रहेगा। उल्लेखनीय है कि सचिन पायलट ने राजस्थान में वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा की पूर्ववर्ती सरकार में हुए कथित भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई की मांग को लेकर जयपुर में एकदिवसीय अनशन किया था।

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राजस्थान के सियासी घटनाक्रम की वजह क्या है?


हम आपको याद दिला दें कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जीत हासिल करने के बाद गहलोत और पायलट, दोनों ही मुख्यमंत्री पद पर काबिज होने के इच्छुक थे। लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत को तीसरी बार शीर्ष पद के लिए चुना था। जुलाई 2020 में सचिन पायलट और कांग्रेस विधायकों के एक वर्ग ने राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की मांग करते हुए अशोक गहलोत के खिलाफ खुले तौर पर विद्रोह कर दिया था। इसके बाद सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया था। हालांकि सचिन पायलट द्वारा उठाए गए मुद्दों पर गौर करने के संबंध में कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व से आश्वासन मिलने के बाद महीने भर जारी रहा यह संकट समाप्त हो गया था। हम आपको यह भी याद दिला दें कि अशोक गहलोत ने बाद में पायलट के लिए ‘गद्दार’, ‘नकारा’ और ‘निकम्मा’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था और उन पर कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार को गिराने की साजिश में भाजपा नेताओं के साथ शामिल होने का आरोप लगाया था। यही नहीं, पिछले सितंबर में अशोक गहलोत खेमे के विधायकों ने कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) की बैठक का बहिष्कार किया था और सचिन पायलट को नया मुख्यमंत्री बनाने की कथित कोशिश को रोकने के लिए एक समानांतर बैठक की था। उस समय गहलोत को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का दावेदार माना जा रहा था लेकिन उन्होंने बड़ी चतुराई से राजस्थान के मुख्यमंत्री का पद बचा लिया था।


क्या हनुमान बेनीवाल के साथ जाएंगे सचिन पायलट?


सचिन पायलट जिस तरह से नाराज चल रहे हैं उसके बारे में माना जा रहा है कि वह इस बार आर या पार की लड़ाई के मूड़ में हैं। हालांकि भाजपा में उनके जाने की संभावनाएं नहीं हैं लेकिन सचिन पायलट को यह भी दिख रहा है कि लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस भी उनके मुद्दे हल नहीं कर पा रही है। इस बीच, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के संयोजक और नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल ने सचिन पायलट को इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए नई पार्टी बनाने और उनकी पार्टी के साथ गठबंधन करने का सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि वह कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ किसी भी दल से गठबंधन के लिए तैयार हैं। हनुमान बेनीवाल ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ‘‘मैंने पहले भी सुझाव दिया है कि अगर सचिन पायलट अपनी पार्टी बनाते हैं, तो आरएलपी चुनाव के लिए उनसे गठबंधन को तैयार है।"


उन्होंने कहा कि ‘‘मैं केवल सुझाव दे सकता हूं। अगर वह पार्टी बनाते हैं तो हम गठबंधन करेंगे। अगर वह अपनी पार्टी नहीं बनाते हैं तो यह उनकी मर्जी है। हमारे दरवाजे कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ किसी भी दल से गठबंधन के लिए खुले हैं।’’ जाट नेता हनुमान बेनीवाल ने कहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में चार करोड़ में से 80 लाख वोट कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ गए थे और यह संख्या दो करोड़ हो सकती है यदि सभी कांग्रेस विरोधी और भाजपा विरोधी दल मिलकर चुनाव लड़ें। हम आपको याद दिला दें कि हनुमान बेनीवाल ने नागौर सीट पर भाजपा के साथ गठबंधन में 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था और सीट जीती थी। दिसंबर 2020 में, उन्होंने नए कृषि कानूनों के खिलाफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से अलग होने की घोषणा की और किसान आंदोलन का समर्थन किया था। हम आपको यह भी बता दें कि 200 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा में उनकी पार्टी के तीन विधायक हैं।

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