By अभिनय आकाश | Apr 12, 2023
"खुद किए तुमने अपनी दीवारों में सुराख, अब कोई झांक रहा है तो शोर कैसा" गुलाम नबी आजाद ने अपनी हालिया ऑटोब्रायोग्राफी आजाद में इस शेर का प्रयोग किया है। डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी के नेता ने अपनी आत्मकथा के जरिए बताया कि जब आप कांग्रेस में होते हैं तो आलाकमान के सामने रीढ़ विहीन होते हैं। उन्होंने क्षेत्रिय प्रभावशाली नेताओं को दरकिनार किए जाने और कमजोर नेताओं का बचाव करने की भी बात कही। इसके साथ ही आजाद ने अपनी किताब में विभिन्न राज्यों में आलाकमान की तरफ से क्षेत्रिय नेताओं को लेकर उछठाए गए कदमों का भी जिक्र किया। जिसकी वजह से पार्टी राज्यों में अस्तित्व विहीन होती चली गई।
उत्तर प्रदेश और बिहार में क्या हुआ?
उत्तर प्रदेश में 1975 के दौर में मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा हो या वीर बहादुर सिंह को राजीव गांधी द्वारा 1988 में बदला जाना। दोनों ही मौकों पर नारायण दत्त तिवारी ने मुख्यमंत्री का पदभार संभाला था। 1975 में हेमवती नंदन बहुगुणा के कद को कम करते हुए कांग्रेस ने अपनी ही बर्बादी की इबारत लिखी। फिर 1988 में वीर बहादुर सिंह को बदला जाना कांग्रेस के लिए ताबूत में आखिरी कील सरीखा ही साबित हुआ। इसी तरह बिहार में जगन्नाथ मिश्रा के रूप में इंदिरा गांधी ने वही किया। जगन्नाथ मिश्रा ने राज्य की विधानसभा में केंद्र की माइनिंग पॉ़लिसी की आलोचना की थी। वो लगातार इस मुद्दे पर मुखरता से अपनी बात रखते आ रहे थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनकी अस्वाभाविक आलोचना को हल्के में नहीं लिया। उन्हें दिल्ली बुलाया गया और तीन सप्ताह में जगन्नाथ मिश्र को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया।
हिमंता प्रकरण का किस्सा आजाद ने बताया
सोनिया गांधी ने 1999 में जेवी पटनायक को ओडिशा के सीएम के पद से हटाया। राहुल गांधी ने सोनिया गांधी के तरुण गोगोई को हिमंत बिस्व सरमा से रिप्लेस करने के फैसले को बदल दिया। 2014 में जब सरमा ने तरुण गोगोई कैबिनेट से इस्तीफा दिया। गुलाम नबी आजाद ने बताया कि जब कांग्रेस में रहने के दौरान हिमंता बिस्व सरमा ने 40-45 विधायकों के साथ बगावत कर दी थी। हिमंता बिस्व सरमा मेरे ज्यादा करीब था। साथ ही तत्कालीन राज्यपाल जेबी पटनायक भी मेरे करीबी थे। ऐसे में हालात संभालने की जिम्मेदारी मुझे दी गई थी। पूर्व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने बताया कि मैंने हिमंता बिस्व सरमा को अपने समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली आने को कहा था। हिमंता बिस्वा सरमा के समर्थन में 40-45 विधायक थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई को भी अपने समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली आने को कहा गया। हालात देखकर पता चला कि हिमंता के पास ज्यादा समर्थन था। गुलाम नबी आजाद बताते हैं कि उन्होंने स्थिति की जानकारी सोनिया गांधी को दी। सोनिया गांधी ने अपनी स्वीकृति भी इस मामले में दे दी। आजाद बताते हैं कि जब वह असम जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उनके पास राहुल गांधी का फोन आया और उन्होंने पूछा कि क्या हम असम मुख्यमंत्री को बदलने के लिए जा रहे हैं? आजाद बताते हैं कि राहुल गांधी ने हमें जाने से मना कर दिया जबकि वह उस समय पार्टी के अध्यक्ष भी नहीं थे। राहुल उस वक्त तरुण गोगोई और उनके बेटे के साथ चाय पीते नजर आए।
राजस्थान में कांग्रेस वही गलती दोहरा रही है?
इसके बाद उन्होंने बताया कि कैसे पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पार्टी छोड़ी। वो भी चुनाव से चार महीने पहले। कांग्रेस ऐसी ही गलती राजस्थान में भी कर रही है। रविवार के दिन सचिन पायलट ने 11 अप्रैल को एक दिन के भूख हड़ताल पर जाने की घोषणा की। पायलट का अनशन पूववर्ती वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच नहीं कराए जाने को लेकर थी। राजस्थान कांग्रेस में गर्मायी सियासत के बीच कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने अशोक गहलोत का समर्थन किया। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि गहलोत ने सीएम के रूप में राजस्थान में कई बड़ी योजनाओं को लागू किया है। कई ऐसी नई पहल भी की गई है। जिनका लोगों को अच्छा लाभ मिला, जिससे लोग प्रभावित हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इन ऐतिहासिक उपलब्धियों और संगठन के सामूहिक प्रयासों से लोगों से नए जनादेश की मांग करेगी।
पंजाब प्रकरण राजस्थान में भी देखने को मिलेगा?
बीजेपी भले ही राज्य में बंटी हुई नजर आ रही हो लेकिन सत्ताधारी पार्टी के बीच जारी इस खींचतान और एंटी इनकमबेंसी का असर चुनाव में देखने को मिल सकता है। वो भी ऐसे प्रदेश जहां हर पांच साल में सरकार बदलने की रवायत रही हो। लेकिन इन सब बातों से इतर कांग्रेस हाई कमान पंजाब वाला एक्सपेरिमेंट यहां भी दोहराना चाह रही है। जहां क्रिकेटर से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह पर जुबानी हमले लगातार जारी रखे थे। बाद में सिंह ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और विधानसभा चुनाव में पार्टी का क्या हुआ इससे आप सभी वाकिफ हैं। लेकिन सिद्धू से इतर सचिन पायलट के प्रति सहानभूति रखने वाले नेताओं की एक लंबी कतार पार्टी के भीतर मौजूद है। जिनका मानना है कि 2018 में जमीनी स्तर पर मेहनत करने के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री का पद नहीं मिला। वहीं ये भी दावा किया जा रहा है कि पार्टी के आतंरिक सर्वे में कांग्रेस को चुनाव में 45-55 सीटें ही मिल सकती है। इसलिए नेतृत्व परिवर्तन की दरकार ज्यादा है। आंतिरक सूत्रों के अनुसार कई धड़ों का मानना है कि पायलट को गहलोत से रिप्लेस किया जाना चाहिए। लेकिन गहलोत ने राजस्थान नहीं छोड़नी बात पहले ही खुलकर कह दी है।
पायलट क्यों करना चाहते हैं?
कर्नाटक चुनाव सिर पर है और अचानक से सचिन पायलट का इतना आक्रमक हो जाना। ये आलाकमान पर कर्नाटक चुनाव के ठीक बाद राजस्थान पर कड़े और बड़े निर्णय लेने के लिए एक तरह का प्रेशर पॉलिटिक्स तो नहीं? ऐसे में अगर मान लें कि 30 मई के बाद आलाकमान की तरफ से गहलोत को हटाकर पायलट को राजस्थान की कमान सौंप दी जाती है तो उनके पास महज 6 महीने का वक्त खुद को साबित करने के लिए होगा। पंजाब के चरणजीत सिंह चन्नी को भी ठीक चुनाव से पहले हटाया गया था और पांच महीने का वक्त उन्हें मिला था। चन्नी बुरी तरह से फेल हुए और वर्तमान में चर्चा में भी नहीं है। क्या पायलट चन्नी की तरह की स्थिति चाहते हैं। जवाब कतई नहीं में ही होगा। अगर मान लीजिए कांग्रेस 2023 के चुनाव में एक बार फिर से सत्ता में आ जाती है। गहलोत गर्वनेंस मॉडल की जीता का जश्न मनाएंगे और पायलट दरकिनार कर दिए जाएंगे। वहीं कांग्रेस चुनाव हार जाती है तो गहलोत बागियों पर इसका दोष मंढ़ देंगे। लेकिन शांत एक युवा नेता के लिए अच्छा आप्शन नहीं है।