रूस यूक्रेन विवाद: जंग हुआ तो कितने देश चपेट में आएंगे, क्या इसे रोका जा सकता है? हर सवाल का जवाब 8 Points में समझिए

By अभिनय आकाश | Jan 27, 2022

19वीं सदी में ब्रिटेन में एक मशहूर लेखक हुए हर्बर्ट जॉर्ज विल्स उन्होंने युद्ध को लेकर कहा था कि If we don't end war, war will end us यानी अगर हमने युद्ध का चलन खत्म नहीं किया तो युद्ध हमें खत्म कर देगा। इन बातों को बड़े गौर से  सुना और पढ़ा गया लेकिन जब इस पर अमल करने की बात आई तो उनकी बातों को सभी मजाक उड़ाकर आगे बढ़ गए। रूस और यूक्रेन को लेकर तनाव लगातार जारी है। दोनों के बीच युद्ध के बढ़ते खतरे को देखते हुए नाटो और पश्चिमी देश हरकत में हैं। अमेरिका सहित कई देशों ने यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई भी शुरू कर दी है। रूस ने भी सीमा पर एंटी एयरक्रॉफ्ट मिसाइलों, टैंक, तोप, ऑर्म्ड व्हीकल सहित एक लाख सैनिकों को तैयार किया हुआ है। तमाम कवायदों के बीच यूक्रेन और रूस के बीच पूर्वी सीमा पर तनाव के बीच एक राहत भरी खबर आई है। पेरिस में आठ घंटे तक चली मीटिंग में सभी पक्षों ने सीजफायर पर सहमति व्यक्त की है। इसके अलावा यूक्रेन और रूस 2019 के बाद पहली बार यूक्रेन फोर्सेस और अलगाववादियों के बीच चल रहे संघर्ष को लेकर फ्रांस और जर्मनी के साथ संयुक्त बयान जारी करने पर सहमत हुए। फ्रांस और जर्मनी ने इस सीजफायर में अहम रोल निभाया है। 

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रूस-यूक्रेन विवाद को लेकर तमाम तरह की बातें, अटकलें, आशंकाएं जताई जा रही हैं। मसलन, क्या रूस अब भी यूक्रेन पर हमला करेगा? 2 पड़ोसियों में कैसे युद्ध की कगार पर पहुंचे? दोनों देशों के बीच जंग हुई तो क्या ये इन्हीं तक सीमित रहेगी या फिर इसका असर समस्त विश्व पर पड़ेगा और सबसे गूढ़ सवाल इसके शांति के क्या उपाय हैं।  

बिना शर्त बनी सहमति

संयुक्त बयान में कहा गया है कि दोनों पक्ष बिना शर्त सीजफायर के लिए सहमत हुए हैं, इसके अलावा दो हफ्ते बाद बर्लिन में इसी मुद्दे पर एक बैठक और होगी। फ्रांस ने इस फैसले का स्वागत किया है। फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के एक सहयोगी ने कहा कि लगातार बढ़ रहे तनाव के बीच आखिरकार एक पॉजिटिव खबर सामने आई है।

दो पड़ोसियों में कैसे हुई रंजिश

यूक्रेन की सीमा पश्चिम में यूरोप और पूर्व में रूस के साथ लगती है। रूस और यूक्रेन में तनाव 2013 से शुरू हुआ जब राजधानी कीव में तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच का विरोध शुरू हुआ। यानुकोविच को रूस का समर्थन था, जबकि अमेरिका-ब्रिटेन प्रदर्शनकारियों का समर्थन कर रहे थे। यानुकोविच तो देश छोड़कर चले गए मगर रूस ने दक्षिणी यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया। साथ ही वहां अलगाववादियों को समर्थन दिया।

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युद्ध की कगार पर कैसे?

दोनों देशों में 2015 में फ्रांस, जर्मनी के दखल से युद्ध विराम हुआ मगर यूक्रेन नाटो के करीब जाने लगा था, जिससे रूस को डर हुआ कि कहीं यूक्रेन नाटो में शामिल न हो जाए। ब्रिटेन, यूएस नाटो के सदस्य हैं। इसमें शामिल होने का मतलब है कि अगर सदस्य देशों में से एक पर भी हमला होता है सब मिलकर उसका साथ देंगे। इसी सब को रोकने के लिए सीमा पर तैनाती बढ़ा दी। 

क्या रूस हमला करेगा?

रूस ने आक्रमण की संभावना से इनकार किया है। रूसी राष्ट्रपति के प्रवक्ता ने कहा, नाटो की सैन्य गतिविधियां बढ़ी हैं। रूस की सेना इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती। अमेरिका और नाटो का रूस सैन्य ताकत से मुकाबला तो कर लेगा, लेकिन आर्थिक मोर्चे पर उसकी राह मुश्किल हो जाएगी।

किसका पलड़ा भारी पड़ेगा

दोनों के बीच युद्ध के बढ़ते खतरे को देखते हुए नाटो और पश्चिमी देश हरकत में हैं। अमेरिका सहित कई देशों ने यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई भी शुरू कर दी है। रूस ने भी सीमा पर एंटी एयरक्रॉफ्ट मिसाइलों, टैंक, तोप, ऑर्म्ड व्हीकल सहित एक लाख सैनिकों को तैयार किया हुआ है। अब इस बीच सवाल उठ रहा है कि अगर रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध होता है तो आखिर किसका पलड़ा भारी पड़ेगा। सबसे बड़ी बात यूक्रेन के पीछे मजबूती से अमेरिका खड़ा है। साल 2014 से ही रूस और यूक्रेन के बीच तनाव देखा जा रहा है। इसी साल रूस ने आक्रमण कर यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया था। विशेषज्ञों का कहना है कि यूक्रेन की सेना का मनोबल ऊंचा है लेकिन हथियारों की कमी की वजह से उन्हें जीत हासिल नहीं हुई। बस इसी हथियारों की कमी को पूरा करने के लिए नाटो देश दिल खोलकर यूक्रेन की मदद कर रहे हैं। 

जंग हुई तो कितने देश चपेट में आएंगे

पिछले कई साल से अमेरिकी सेना के अधिकारी लगातार यूक्रेन का दौरा कर रहे हैं। कई बार तो अमेरिकी सैनिकों को यूक्रेन और रूस की सीमा पर भी देखा गया है। रूस इसे बहुत बड़े खतरे के रूप में देख रहा है और बार-बार यूक्रेन को तनाव बढ़ाने से रोकने की धमकी दे रहा है।  इसकी आंच बाल्टिक देशों जैसे लताविया, लिथुआनिया और एस्टोनिया तक पहुंच सकती है।

अमेरिका के लिए क्या मायने हैं

यूक्रेन-रूस की तनातनी में यूक्रेन के भविष्य के साथ ही नाटो गठबंधन बल की विश्वसनीयता भी दांव पर है जो कि अमेरिकी रक्षा रणनीति के केंद्र में है। अमेरिकी राष्ट्रपति का मानना है कि यह संकट पूतिन के खिलाफ एकजुट होकर प्रयास करने की उनकी क्षमता का बड़ा परीक्षण है। राष्ट्रपति जो बाइडन ने रूस को चेताया कि अगर उसने यूक्रेन पर हमले की कोशिश की तो उसे गंभीर नतीजे भुगतने पड़ेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि इससे 'दुनिया के हालत भी बदल जाएंगे।' अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, 'मैंने राष्ट्रपति पुतिन को साफ कर दिया था कि रूस अगर यूक्रेन में प्रवेश करने का फैसला लेता है तो उसे गंभीर नतीजे भुगतने पड़ेंगे।"

 शांति के क्या उपाय हैं

एक बात तय है कि पूतिन आसानी से पश्चिम की धमकियों में आने वाले राजनेता नहीं हैं। जरूरत पड़ने पर वह बड़े हथियारों के इस्तेमाल में भी कोताही नहीं बरतते। खाड़ी क्षेत्र में आईएसआईएस के खिलाफ हवाई हमलों की शुरुआत उन्होंने न की होती तो अमेरिका की मेहरबानी से आज शायद इराक और सीरिया पर उसका कब्जा होता। एक महाशक्ति का पड़ोसी होना यूक्रेन के लिए परेशानी का सबब है और एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्वाभिमान के साथ जीना उसका अधिकार है। लेकिन उसके स्वाभिमान का रास्ता अनिवार्य रूप से एक विरोधी सैनिक खेमेबंदी से होकर जाए, इसे विश्व राजनय की विफलता ही माना जाना चाहिए। यूक्रेन के रूसीभाषी नागरिक सीमित स्वायत्तता का उपभोग करें और रूस भी बात-बात पर हथियार भांजने के बजाय एक अच्छा पड़ोसी बनकर उसके साथ रहे, इसके लिए सारे उपाय किए जाने चाहिए। संयुक्त राष्ट्र का गठन ऐसे उपायों के लिए ही किया गया था, लेकिन दुनिया का चौधरी बनने के लिए मरे जा रहे ताकतवर मुल्कों ने उसके लिए कुछ करने की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी।

-अभिनय आकाश

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