नागरिकता पर बवाल, सरकार की नीयत पर उठ रहे हैं सवाल

By अभिनय आकाश | Dec 10, 2019

इस्लाम की रवायत पर राजनीति का तवा एक बार फिर दहकने लगा है। हुकूमत कह रही है बेसहारों के मन से बेघर होने के खौफ को निकालने के लिए ये जरूरी है और मुखालिफत करने वाले कह रहे हैं कि ये दावा दुरूस्त है लेकिन मुस्लिमों से भेदभाव करने की वजह से हमें आपकी नीयत पर शक है। 

 

घुसपैठियों को देश से बाहर करने की बात मोदी सरकार द्वारा समय-समय पर की भी जाती रही है। इस दिशा में सबसे पहले असम में एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस पर काम हुआ। वर्तमान में नागरिकता संशोधन विधेयक को भी इसी कवायद का हिस्सा माना गया। लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पास होने के बाद चर्चा के केंद्र में है। ऐसा कहा जा रहा है कि इस बिल के तहत भारत के कुछ पड़ोसी देशों से आए धार्मिक समूहों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाने का प्रावधान है। इसलिए हमने सोचा की नागरिकता संशोधन विधेयक के पूरे मामले को आसान से तथ्यों के आधार पर आपके सामने रख दें।

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पहले चार लाइनों में समझ लें कि नागरिकता संशोधन विधेयक है क्या?

 

नागरिकता संशोधन विधेयक में नागरिकता कानून, 1955 में संशोधन का प्रस्ताव है। इस संशोधन के मुताबिक पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के 6 धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को नागरिकता मिलेगी जो पलायन करके भारत आए। इनमें हिन्दू, बौद्ध, सिख, जैन, ईसाई और पारसी लोग शामिल हैं। नागरिकता संशोधन बिल किसी एक राज्य नहीं बल्कि पूरे देश में शरणार्थियों पर लागू होगा। इसमें भारत में उनके निवास के समय को 12 वर्ष की बजाय छह वर्ष करने का प्रावधान है। यानी अब ये शरणार्थी 6 साल बाद ही भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।

 

किन बातों को लेकर विवाद है

नागरिकता संशोधन विधेयक जिसके बारे में विवाद ये है कि इसे मुस्लिम विरोधी बताया जा रहा है और कहा जा रहा है कि घुसपैठियों को लेकर धर्म के आधार पर अंतर किया जा रहा है। इस पर सरकार का मानना है कि गैर मुस्लिम धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आए। इन्हें नागरिकता मिलनी चाहिए।

 

देश के पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक का विरोध किया जा रहा है, उनकी चिंता है कि पिछले कुछ दशकों में बांग्लादेश से बड़ी तादाद में आए हिन्दुओं को नागरिकता प्रदान की जा सकती है। विपक्ष का तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, जो समानता के अधिकार की बात करता है।

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जम्मू कश्मीर और तीन तलाक पर सरकार के लिए गए फैसले के बाद से देश की अपेक्षाएं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से और भी बढ़ गई। ऐसे में लोगों के जेहन में यह सवाल था कि तीन तलाक और अनुच्छेद 370 के बाद क्या मोदी सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक को पास करवाने में सफल हो पाएगी। जब देश के कप्तान के पास राजनीति का आलरांउडर खिलाड़ी अमित शाह के रूप में मौजूद हो तो बड़ी से बड़ी जंग में जीत पक्की है। कुछ करने का जज्बा और हौसला जब अमित शाह जैसा हो तो कुछ भी असंभव नहीं। दोपहर 1 बजकर 15 मिनट के आसपास गृह मंत्री अमित शाह ने साफ कर दिया था कि नागरिकता संशोधन विधेयक को इस बार वो कानून में बदलते देखना चाहते हैं। संसद के शोर ने जता दिया था कि संख्या बीजेपी के साथ भले है लेकिन बहस जोरदार होने वाली है। अमित शाह को कहना पड़ा कि उनके भाषण पर हंगामा संसद की गरिमा के खिलाफ है और उन्हें सुनना ही पड़ेगा। इसके बाद तीन देशों के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने वाला बिल पेश कर दिया गया। साढ़े चार बजे जो बहस की शुरूआत हुई तो जो कहा उसका मतलब था कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आने वाले थे उन्हें मजहब के चश्में से देखा जाएगा। 

 

72 साल पहले पाकिस्तान को अपना मुल्क चुनने वाले लोग भारत को अपना मुकद्दर चुनने के बराबर हो जाएंगे। सबको इंतजार था कि असद्दउदीन ओवैसी उठते हैं तो क्या बोलते हैं। और उन्होंने जो बोला उसने पूरी लोकसभा को स्तब्ध कर दिया। 

 

हंगामा मच गया खुद विपक्ष को भी इसका अंदाजा नहीं था। ओवैसी ने बिल के पीछे सरकार की नीयत और वैधानिकता दोनों को कटघरे में खड़ा कर दिया। गृह मंत्री अमित शाह ध्यान से सबकी बातें सुन रहे थे। मीनाक्षी लेखी बोल चुकी थीं। अधीर रंजन चौधरी बोल चुके थे। मनीष तिवारी बोल चुके थे। विपक्ष की तरफ से सवाल ये भी उठा कि क्या असम में एनआरसी में जो गड़बड़ियां हुई हैं। सरकार उसे ढकने के लिए ये बिल लेकर आई है। वहीं अमित शाह ने अपने भाषण में बार-बार पश्चिम बंगाल का जिक्र किया। बीजेपी की ओर से दिलीप घोष बोलने के लिए उठे तो निशाने पर ममता बनर्जी थीं। असम के कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि नागरिकता संशोधन बिल में भारतीयता का माखौल उड़ाया गया है।

 

कुल 7 घंटे तक बहस चली और वो भी जोरदार तरीके से लेकिन बीती रात को जब आधी दुनिया सो रही थी तो हिन्दुस्तान की संसद एक बिल के कानून बनने की लड़ाई से दो चार हो रहा था। महाराष्ट्र में बीजेपी के मुंह से सरकार छीनने के बाद उत्साह में कांग्रेस को लग रहा था कि वो इसका जमकर विरोध करेगी, वामपंथी दलों को भी लग रहा था, और असद्दुउद्दीन ओवैसी को भी बिल फाड़ने के दौरान लग ही रहा था कि विरोध जताने से अपना काम तो हो गया और अब कुछ नहीं कर सकते। लेकिन होना क्या होता है ये अमित शाह ने करके दिखाया। पहले तो जदयू से अपने पाले में मतदान कराया और फिर विरोधी बन चुकी शिवसेना से भी पक्ष में वोट करवाया। सारी बहस खत्म, सारे ऐतराज ध्वस्त, सारी शंकाएं निर्मूह। शाह ने ऐसा मंत्र मारा कि लोकसभा में विपक्ष की सारी एकता धरी रह गई और नागरिकता पर शाह की शर्तें लागू हो गईं। इस बिल का विरोध करने वाली कांग्रेस समान सोच वाले दलों को भी अपने साथ जोड़ने में बुरी तरह से नाकाम साबित हुई। लोकसभा में इस बिल के पक्ष में 311 वोट पड़े। जबकि, विपक्ष में 80 वोट। अब मोदी सरकार की राज्यसभा में भी राह आसान मानी जा रही है। हालांकि पिछले दो सालों में बीजेपी और एनडीए की ताकत राज्यसभा में बेहतर हुई है। राज्यसभा में कुल सदस्य 245 हैं, लेकिन पांच सीटें रिक्त हैं, जिसके चलते फिलहाल कुल सदस्यों की संख्या 240 है। मतलब ये कि अगर सदन के सभी सदस्य मतदान करें तो बहुमत के लिए 121 वोट की जरूरत पड़ेगी। नागरिकता संशोधन विधेयक पर लोकसभा में जिन दलों ने समर्थन किया है। इस लिहाज से राज्यसभा में आंकड़ों को देखें तो यह संख्या 121 है। इनमें बीजेपी के 83, बीजेडी के 7, एआइएडीएमके के 11, अकाली दल के 3, शिवसेना के 3, जेडीयू के 6, वाईएसआर कांग्रेस के 2, एलजेपी के 1, आरपीआई के 1 और 4 नामित राज्यसभा सदस्य हैं। वहीं अगर विपक्ष के आंकड़ों पर नजर डालें तो राज्यसभा में कांग्रेस के 46, टीएमसी के 13, सपा के 9, वामदल के 6 और डीएमके के 5 और आरजेडी, एनसीपी और बसपा के 4-4 सदस्य हैं। इसके के अलावा टीडीपी के 2, मुस्लिम लीग के 1, पीडीपी के 2, जेडीएस के 1, केरल कांग्रेस के 1 और टीआरएस के 6 सदस्य हैं। इस तरह विपक्ष के पास 100 सदस्य होते हैं। राज्यसभा में इस बिल को बुधवार को पेश किया जाएगा। लेकिन मोदी सरकार इसको लेकर भी पूरी तरह से आश्वस्त है। 

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देश को आजाद हुए 72 साल हो रहे हैं लेकिन अब तक ऐसा जिगर वाला गृह मंत्री नहीं देखा। एक तरफ प्रधानमंत्री झारखंड के चुनावी किले को बचाने के लिए मैदान में डटे थे तो दूसरी तरफ उनके साथी, सहयोगी और सारथी शाह पीएम के सपने को आकार देने में जुटे थे।  जिन विषयों को किसी ने नहीं देखा। जिन विषयों को किसी ने छूने की हिम्मत नहीं दिखाई, जिन मसलों की तरफ राजनीतिक पार्टियां आंखे मूंदें रहीं। उन मसलों की फाइल अमित शाह ने न सिर्फ खोली बल्कि उसे मुकाम तक पहुंचाया। करीब छह महीने के अपने गृह मंत्री के कार्यकाल में अमित शाह ने कई नामुमकिन को मुमकिन बनाया है। उन सपनों को पूरा किया है जो सपने इस देश ने देखे थे। देश की आवाम ने देखे थे, आरएसएस ने देखे थे, जनसंघ ने देखे और नरेंद्र मोदी ने देखे थे। जिसके बाद शाह की कामयाबी पर फूले नहीं समा रहे पीएम आधी रात अपनी खुशी ट्वीटर के माध्यम से व्यक्त करने से नहीं चूके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा कि अमित शाह ने लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 के बारे में विस्तार से बताया। मैं इसके लिए अमित शाह की तारीफ करना चाहूंगा। अमित शाह ने सदन में चर्चा के दौरान सांसदों के उठाए सवालों का विस्तार से जवाब दिया।

 

- अभिनय आकाश

 

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