By अनन्या मिश्रा | Sep 11, 2024
भारतीय जनता पार्टी का देश में मजबूत पकड़ बनाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बड़ी भूमिका मानी जाती रही है। साल 2009 से मोहन भागवत ने सरसंघचालक के रूप में संघ की कमान संभाल रखी है। बता दें कि आज यानी की 11 सितंबर को मोहन भागवत अपा 74वां जन्मदिन मना रहे हैं। साल 2009 में 59 साल की उम्र में मोहन भागवत ने इस संगठन की कमान संभाली थी। जिसके बाद उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में संघ का व्यापक रूप में विस्तार किया।
बता दें कि मोहन भागवत का यह सफरनामा काफी दिलचस्प रहा है। पहले उन्होंने बतौर पशु चिकित्सक इस यात्रा को जारी किया था और फिर सरसंघचालक तक की यात्रा तय की है। हालांकि संघ के प्रमुख बनने के बाद भागवत ऐसे बयान देते आए हैं, जिनकी सियासी गलियारों में खूब चर्चा होती रहती है। तो वहीं उनके कुछ बयानों पर विवाद भी पैदा हो चुका है। आइए जानते हैं उनके बर्थडे के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म-शिक्षा और परिवार
महाराष्ट्र के चंद्रपुर नामक एक छोटे से नगर में 11 सितंबर 1950 को मोहन भागवत का जन्म हुआ था। उन्हें संघ का काम विरासत में मिला है। दरअसल, भागवत के पिता मधुकरराव भागवत चंद्रपुर क्षेत्र के प्रमुख थे। इसके अलावा उन्होंने गुजरात के प्रांत प्रचारक के तौर पर भी काम किया था। मोहन भागवत के पिता ने ही बीजेपी के 'पितामह' कहे जाने वाले लाल कृष्ण आडवाणी का परिचय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से कराया था।
चंद्रपुर के ही लोकमान्य तिलक विद्यालय से मोहन भागवत ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। जिसके बाद उन्होंने अकोला से पशु चिकित्सा और पशुपालन में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। फिर साल 1975 में जब देश में आपातकाल लगा, तो मोहन भागवत ने पशु चिकित्सा में अपना स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम अधूरा छोड़ दिया और संघ के पूर्णकालिक स्वयंसेवक बन गये। जिसके बाद उन्हें जीवन में पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी। हालांकि संघ से जुड़ने का बड़ा फायदा साल 2009 में हुआ, जब उनको संघ का प्रमुख बनाया गया।
माता-पिता गए जेल
जब साल 1975 में देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया, तो मोहन भागवत के माता-पिता को जेल यात्रा करनी पड़ी। इस दौरान मोहन भागवत को संघ का प्रचारक बनाया गया। आपातकाल के दौरान वह अज्ञातवास में रहे। फिर साल 1977 के बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ में तेजी से तरक्की की। जिसके बाद साल 1991 में भागवत को अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख का कार्यभार दिया गया है। साल 1999 तक वह इस पद पर बने रहे।
इसी बीच साल 2000 में आरएसएस के तत्कालीन सरसंघचालक रज्जू भैया और सरकार्यवाह वीएन शेषाद्री ने स्वास्थ्य समस्याओं के कारण अपने पद को छोड़ने की घोषणा की। इस पर रज्जू भैया की जगह के.एस. सुदर्शन को संघ का नया सरसंघचालक चुना गया। वहीं मोहन भागवत सरकार्यवाह बने। बता दें कि सरकार्यवाह को ही सरसंघचालक का उत्तराधिकारी माना जाता है।
साल 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब मोहन भागवत को आरएसएस का सरसंघचालक बनाया गया। तो उन्होंने सबसे पहले भारतीय जनता पार्टी का कायाकल्प करना शुरू किया। लगातार दो चुनावों में हार का सामना कर चुकी भाजपा के अध्यक्ष के रूप में नितिन गडकरी की ताजपोशी की गई। वहीं साल 2013 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को भी संघ की तरफ से सहमति मिली। जिसके बाद पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा तेजी से देश में पकड़ मजबूत बनाने में कामयाब रही।
वहीं अखंड भारत को लेकर समय-समय पर मोहन भागवत बयान देते रहते हैं। मोहन भागवत का मानना है कि सनातन धर्म ही हिंदू राष्ट्र है। उनका कहना है कि 20-25 सालों में भारत अखंड भारत होगा।