By अभिनय आकाश | Feb 22, 2024
दक्षिण चीन सागर करीब 35 लाख किलोमीटर में फैला ऐसा एक विवादित क्षेत्र जिस पर चीन के साथ-साथ फिलपींस, वियतनाम, मलेशिया, ताइवान और ब्रुनोई अपना-अपना दावा करते रहे हैं। भारत के साथ-साथ दक्षिण चीन सागर बहुत सारे देशों के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन क्यों? आखिर दक्षिण चीन सागर में ऐसी क्या खास बात है? सबसे पहली बात तो ये कि इसे नैचुरल रिसोर्स का भंडार कहा जाता है। अमेरिका की रिपोर्ट की माने तो यहां पर करीब 11 अरब बैरल तेल है। 190 खरब क्यूबिक फीट नैचुरल गैस है। दुनिया का 30 फीसदी व्यापार इस रास्ते से होता है। बिजनेस इनसाइडर पत्रिका के मुताबिक दक्षिण चीन कोरिया की दो तिहाई एनर्जी सप्लाई इस रास्ते से होकर जाती है। जापान और ताइवान की 60 फीसदी और चीन और चीन का 80 फीसदी कच्चा तेल इस रास्ते से होकर आता है। तो सोचिए ऐसी जगह पर कौन सा देश अपना दावा नहीं करेगा! इसके आस-पास के देश अपना दावा कर ही रहे हैं। वियतनाम, चीन, फिलिपींस, मलेशिया के अलावा ब्रुनेई और ताइवान भी अपना-अपना अधिकार जमाते हैं। चीन तो 1947 से ही इस क्षेत्र पर अपना दावा कर रहा है। हाल के वर्षों में दक्षिण चीन सागर ने भू-राजनीतिक और रक्षा विशेषज्ञों को खतरे की घंटी बजा दी है। कुछ राजनीतिक पंडित इस बारे में बात कर रहे हैं कि यह एशियाई क्षेत्र के लिए संभावित अस्थिरता का स्रोत कैसे हो सकता है, अन्य ने चेतावनी दी है कि यह वह जगह हो सकती है जहां अगला युद्ध हो सकता है। इसके चीन वहां अपनी उपस्थिति बनाए रखता है जबकि भारत और अमेरिका सहित अन्य देश अशांत जल में ड्रैगन की पहुंच को रोकने की कोशिश करते हैं।
दक्षिण चीन सागर का महत्व
संयुक्त राज्य ऊर्जा सूचना एजेंसी के अनुमान के मुताबिक, दक्षिण चीन सागर के नीचे 11 अरब बैरल तेल और 190 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस जमा है। इसके अलावा, समुद्र एक समृद्ध मछली पकड़ने का मैदान है; बीबीसी ने पहले बताया था कि दुनिया की आधे से अधिक मछली पकड़ने वाली नौकाएँ इन जलक्षेत्रों में संचालित होती हैं। दक्षिण चीन सागर भी एक प्रमुख व्यापार मार्ग है। व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अनुसार, 2016 में वैश्विक व्यापार का 21 प्रतिशत से अधिक, यानी 3.37 ट्रिलियन डॉलर की राशि जल के माध्यम से पारगमन हुई। इसमें चीन की महत्वाकांक्षाएं भी शामिल हैं। जैसा कि ग्लोबल चैलेंजेस में एक निबंध में कहा गया है। दक्षिण चीन सागर के बड़े हिस्से पर चीनी क्षेत्रीय और समुद्री दावे न केवल आर्थिक और सुरक्षा विचारों पर आधारित हैं। राष्ट्रीय पहचान बनाने और चीन की अतीत की भव्यता के नवीनीकरण पर भी आधारित हैं।
साउथ चाइना सी में चीन का खेल
चीन कई सालों से इस इलाके पर अपना अधिकार जमाता रहता है। इस इलाके से आने-जाने वाले मालवाहक जहाजों पर भी चीन प्रतिबंध लगाने की बात करता रहा है। हालांकि गौर करने वाली बात ये है कि समुद्र के इस इलाके पर दुनिया के कई देश दावा करते रहे हैं। लेकिन बीते आठ सालों में चीन ने जितना विकास इस इलाके में किया है और कोई देश नहीं कर पाया। अमेरिका समेत दुनिया भर के देश साउथ चाइना सी को एक मुख्य व्यापार क्षेत्र मानते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए बराक ओबामा के कार्यकाल के दौरान अमेरिका से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से वादा किया था कि चीन इस इलाके में कभी भी सेना को तैनात नहीं करेगा। लेकिन आदत से मजबूर चीन अपने वादे से मुकर गया और यहां कई मिलिट्री बेस बना डाले। चीन लगातार अपनी सैन्य ताकत और दुनिया के कोने कोने में अपनी पहुंच को बढ़ा रहा है। हालांकि चीन लगातार अपनी इस मुहिम में अवैध तरीके से छोटे और कमजोर देशों पर कब्जा कर रहा है। इसी कड़ी में चीन की तरफ से दक्षिण चीन सागर में एक के बाद एक मानव निर्मित टापू बनाकर कई देशों के लिए मुश्किलें खड़़ी कर रहा है। इन टापूयों पर चीन ने न केवल अपनी सेना तैनात की है बल्कि कई आधुनिक रडार सिस्टम भी तैनात कर दिए हैं। हाल के दिनों में भारत चीन की आक्रामकता और बाहुबल को संतुलित करने के तरीके के रूप में जल क्षेत्र में अपनी उपस्थिति स्थापित कर रहा है।
समुद्री सीमा पर क्या है अंतरराष्ट्रीय कानून?
चीन और भारत समेत दुनिया के 100 से भी अधिक देशों में एक एग्रीमेंट साइन किया गया है। इसे यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी कहा जाता है। इसके अनुसार, किसी भी देश की जमीन से 12 नॉटिकल मील तक उस देश की समुद्री सीमा मानी जाती है। इस कानून के अनुसार 12 नॉटिकल मील की दूरी के बाद का समुद्री क्षेत्र कोई भी देश ट्रेड के लिए इस्तेमाल कर सकता है। इस दूरी के बाद किसी भी देश की समुद्री सीमा लागू नहीं होती। चीन ने साउथ और ईस्ट चाइना सी में अलग-अलग आइलैंड पर कब्जा कर रखा है। चीन इन आइलैंड को अपना बताता है औऱ अपनी समुद्री सीमा का आकलन भई इन्हीं आइलैंड के हिसाब से करता है। इससे समुद्र में चीन का दखल बढ़ता जा रहा है।
दरअसल चीन ने साउथ और ईस्ट चाइना सी में अलग-अलग आइलैंड पर कब्जा कर रखा है। चीन इन आइलैंड को अपना बताता है और अपनी समुद्री सीमा का आकलन भी इन्हीं आइलैंड की दूरी के हिसाब से करता है। इससे समुद्र में चीन का दखल बढ़ता जा रहा है।
दक्षिण चीन सागर में भारत का बढ़ता प्रभाव
संयुक्त राज्य अमेरिका ने कहा है कि जल उसके राष्ट्रीय हित के लिए महत्वपूर्ण है और वह अक्सर सभी पक्षों को एक संदेश में क्षेत्र के माध्यम से नौवहन संचालन (फोनॉप्स) की स्वतंत्रता का संचालन करता है। और जल क्षेत्र में चीन की उपस्थिति को रोकने के प्रयास में, वाशिंगटन ने दक्षिण एशिया में अपनी सैन्य गतिविधि और नौसैनिक उपस्थिति बढ़ा दी है। इसके अलावा, इसने चीन के विरोधियों को हथियार और सहायता भी प्रदान की है। भारत भी दक्षिण चीन सागर में बीजिंग की गतिविधियों को क्षेत्रीय शक्ति संतुलन के लिए खतरे के रूप में देखता है, जो उसे इस क्षेत्र में अपनी नौसैनिक उपस्थिति बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। दरअसल, हाल के वर्षों में नई दिल्ली पानी को लेकर पैदा होने वाले विवादों में तेजी से शामिल हुई है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह नई दिल्ली के रुख में एक बड़ा बदलाव है। इससे पहले, उसने दक्षिण चीन सागर पर न्यायाधिकरण के आदेश पर तटस्थ रुख बरकरार रखा था। 2019 में भारतीय नौसेना ने पहली बार दक्षिण चीन सागर में अमेरिका, जापानी और फिलीपीन नौसेनाओं के साथ संयुक्त अभ्यास किया। फिर 2020 और 2021 में भारत ने वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के साथ नौसैनिक अभ्यास किया। मई 2023 में भारत ने पहली बार दक्षिण चीन सागर में सात आसियान देशों की नौसेनाओं के साथ दो दिवसीय संयुक्त अभ्यास में भाग लेने के लिए युद्धपोत भेजे। भारत ने फिलीपींस और वियतनाम को अपनी सैन्य बिक्री भी बढ़ा दी है। उदाहरण के लिए 2022 में नई दिल्ली ने 100 ब्रह्मोस सुपरसोनिक एंटी-शिप मिसाइलों के लिए फिलीपींस के साथ एक समझौता किया। एक साल बाद, जुलाई 2023 में नई दिल्ली ने घोषणा की कि वह वियतनामी नौसेना को भारतीय मिसाइल कार्वेट आईएनएस किरपान सौंपेगी। उसी वर्ष भारत ने फिलीपींस को कम से कम सात हेलीकॉप्टरों की भी पेशकश की, जिनका उपयोग देश में आपदाओं के दौरान फिलीपीन तट रक्षक (पीसीजी) के बचाव और मानवीय प्रयासों के लिए किया जाएगा।
क्षेत्र में भारत के बढ़ते प्रभाव के पीछे क्या वजह?
इसके कई कारण हैं। सबसे पहले भारत चिंतित है कि इन जल क्षेत्रों में तनाव उसके व्यापार के साथ-साथ क्षेत्र में संतुलन को भी प्रभावित कर सकता है। नई दिल्ली, जैसा कि द डिप्लोमैट ने एक निबंध में लिखा है, तनाव को भारत के पारंपरिक प्रभाव क्षेत्र हिंद महासागर में फैलने से रोकना चाहती है। इसके अलावा, नई दिल्ली दक्षिण चीन सागर को मोदी की एक्ट ईस्ट पॉलिसीको आगे बढ़ाने के रूप में देखती है। इसमें अमेरिकी कारक भी काम कर रहा है। अमेरिका के साथ जुड़कर, भारत वाशिंगटन के साथ अपनी साझेदारी को आगे बढ़ाने में सक्षम है। इससे बीजिंग नाराज हो जाएगा, लेकिन अगर भारत को हिमालय से समुद्री क्षेत्र तक अपने हितों की उचित रक्षा करनी है तो चीन को परेशान करना जरूरी है।