भारत को 21वीं सदी में विकसित राष्ट्र बनने का एकमात्र आधार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी होगी। वरिष्ठ विज्ञान पत्रकार एवं लेखक पल्लब बागला ने यह बात विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के स्वायत्त संगठन विज्ञान प्रसार के 33वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित अपने विशेष व्याख्यान के दौरान कही है। विज्ञान संचार और लोकप्रियकरण के जरिये समाज में वैज्ञानिक चेतना जागृत करने के उद्देश्य से 11 अक्तूबर 1989 को विज्ञान प्रसार की स्थापनी हुई थी। चार दशकों की अपनी पत्रकारीय यात्रा के दौरान पल्लब बागला ने भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आधारित बदलावों को करीब से देखा है और उन्हें कवर किया है।
पल्लब बागला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वक्तव्य का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कहा है कि “जब हम अपने वैज्ञानिकों की उपलब्धियों का उत्सव मनाते हैं तो विज्ञान हमारे समाज और संस्कृति का हिस्सा बन जाता है। भारतीय वैज्ञानिकों की सभी छोटी और बड़ी उपलब्धियों का उत्सव विज्ञान के प्रति झुकाव पैदा करेगा और 'अमृतकाल' में हमारी मदद करेगा।" वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये अहमदाबाद के गुजरात साइंस सिटी में पहले 'केंद्र-राज्य विज्ञान सम्मेलन' के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री के इस उद्गार को उद्धृत करते हुए श्री बागला ने कहा कि प्रधानमंत्री स्वयं चाहते हैं कि विज्ञान और वैज्ञानिकों की उपलब्धियों का उत्सव होना चाहिए; और इस कार्य को विज्ञान प्रसार बखूबी अंजाम देता रहा है।
विज्ञान पत्रकारों एवं विज्ञान संचारकों को संबोधित करते हुए पल्लब बागला ने कहा कि बदलते समय के साथ संचार और पत्रकारिता के तौर-तरीके बदल गए हैं। उन्होंने कहा कि अब सिर्फ लेखन पर जोर देना पर्याप्त नहीं है। फोटोग्राफी, ऑडियो, वीडियो संबंधी तकनीकें वर्तमान समय की जरूरत बन गई हैं। इसके लिए महँगे उपकरणों की जरूरत हमेशा नहीं होती। इस जरूरत को काफी हद तक अब स्मार्टफोन की मदद से भी पूरा किया जा सकता है। उन्होंने कहा, हमें मीडिया में डेडलाइन के महत्व के साथ-साथ इन जरूरतों को समझना होगा, और उनके अनुरूप स्वयं को ढालना होगा।
बागला ने कहा कि यह धारणा गलत है कि विज्ञान संबंधी खबरों को टीआरपी कम मिलती है। विज्ञान संपादक के रूप में समाचार चैनल में अपने लंबे कार्यानुभव का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि विज्ञान प्रौद्योगिकी आधारित कार्यक्रमों के दौरान चैनल की टीआरपी सबसे अधिक जाती थी। सबसे बड़ी बात यह थी कि देश के अन्य नामचीन समाचार चैनलों से कहीं कोई प्रतिस्पर्धा इस मामले में देखने को नहीं मिल रही थी। यही कारण था कि लोगों को जब भी विज्ञान प्रौद्योगिकी केंद्रित किसी बड़ी घटना कि कवरेज देखनी होती थी, तो वे हमारे चैनल की ओर रुख कर लेते थे।
अंग्रेजी की मशहूर विज्ञान पत्रिका साइंस रिपोर्टर में कार्य कर चुके पल्लब बागला विज्ञान प्रसार के वर्तमान निदेशक डॉ नकुल पाराशर के समकालीन रहे हैं। वह बताते हैं कि डॉ पाराशर भी उन दिनों चर्चित पत्रिका विज्ञान प्रगति में कार्य कर रहे थे। पल्लब बागला बताते हैं कि अपने चार दशक के करियर के लंबे कालखंड में उन्होंने कभी विज्ञान संचार या विज्ञान पत्रकारिता की आवश्यकता को कमतर होते नहीं देखा है। इसकी जरूरत हमेशा बढ़ती रही है, और आगे भी यह जरूरत बनी रहेगी। कोविड-19 के प्रकोप के दौरान विज्ञान प्रसार द्वारा संचालित ओटीटी चैनल इंडिया साइंस के ‘लाइफ इन साइंस’ कार्यक्रम के 75 एपिसोड्स की श्रृंखला इसका उदाहरण है। इस कार्यक्रम में कोविड-19 के प्रकोप से निपटने के लिए विज्ञान और वैज्ञानिकों की भूमिका को गहनता से रेखांकित किया। उस दौरान वैज्ञानिक, पत्रकार, पुलिस और स्वास्थ्यकर्मी तत्परता से काम कर रहे थे। हमारे वैज्ञानिकों की मेहनत ही थी कि हम बेहद कम समय में कोविड-19 की वैक्सीन विकसित कर सके।
विज्ञान और वैज्ञानिकों का योगदान स्वतंत्रता आंदोलन में रहा है, और आजादी के बाद भारत निर्माण में भी उनकी भूमिका रही है। आज हमारे पास भोजन और व्यंजनों के सैकड़ों विकल्प उपलब्ध हैं। लेकिन, आजादी के बाद आरंभिक वर्षों में ऐसा नहीं था। देश खाद्यन्नों की समस्या से जूझ रहा था। हरित क्रांति के दौरान देश के वैज्ञानिकों और किसानों की मेहनत ने परिदृश्य बदलकर रख दिया और भारत को खाद्यन्नों के मामले में आत्मनिर्भर बना दिया। किसान बेहतर किस्मों को अपनाएं, इसमें विज्ञान संचार तथा संचारकों की भूमिका बेहद अहम थी।
वर्ष 1974 में पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया गया तो लगा कि भारत की स्थिति कमजोर हो जाएगी। दर्जनों अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध भारत पर लगाए गए। इस दौर में, भारतीयों ने विज्ञान प्रौद्योगिकी के महत्व और दुनिया से कैसे इस बारे में संवाद किया जाए, इसको गहराई से समझा। इसी की वजह से हम ऐसे प्रतिबंधों से बाहर निकलकर आए।
श्री बागला ने कहा कि आईटी के क्षेत्र में भी भारत की भूमिका अहम रही है। दवा निर्माता के रूप में भी अपनी छाप छोड़ने में भारत कामयाब रहा है। आज दुनिया की फार्मेसी के रूप में हमारे देश को जाना जाता है। वर्ष 1998 में पोखरण-2 के बाद लगे प्रतिबंधों के बाद एक बार फिर कयास लगाए जाने लगे कि भारत कमजोर पड़ जाएगा। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ और भारत पहले से अधिक मजबूत होकर उभरा। कोविड-19 के दौरान हमने अपनी वैज्ञानिक क्षमता का एक बार फिर परिचय दिया है।
कोविड-19 के दौरान विज्ञान प्रसार ने विज्ञान संचार के माध्मय से प्रभावी भूमिका निभायी। पल्लब बागला ने कहा कि अगर हमारी मूलभूत ताकत हमारे साथ नहीं होती तो हम कोविड-19 के प्रकोप के दौरान बिखर गए होते। आने वाले समय में हमारे अपनी चुनौतियां हैं। बदलते समय के साथ हमें इन बदलावों के साथ खुद को ढालने की जरूरत होगी। मुद्रित माध्यमों से लेकर इंटरैक्टिव संचार पद्धतियों में यह यात्रा देखने को मिलती है। विज्ञान प्रसार वह थाली है, जहाँ प्रिंट माध्यमों से लेकर इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों सहित तमाम चीजें मिल जाती हैं।
विज्ञान प्रसार के निदेशक डॉ नकुल पाराशर ने संगठन के वैज्ञानिकों एवं कर्मचारियों को बधाई देते हुए कहा कि “विज्ञान प्रसार ने 4000 लोकप्रिय विज्ञान फिल्मों का निर्माण किया है और यह गिनती बढ़ रही है। भारत का एकमात्र विज्ञान प्रौद्योगिकी ओटीटी चैनल ‘इंडिया साइंस डॉट इन’; भारत का एकमात्र विज्ञान प्रौद्योगिकी समाचार सिंडिकेट ‘इंडिया साइंस वायर’; भारत का सबसे बड़ा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी वेब भंडार – ‘ISTI पोर्टल’; भारत का सबसे बड़ा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नेटवर्क – ‘विपनेट’; 15 भारतीय भाषाओं में मासिक पत्रिकाओं का प्रकाशन, 19 भाषाओं में आकाशवाणी पर लोकप्रिय विज्ञान रेडियो धारावाहिक; 75 स्थानों पर एक साथ विज्ञान सर्वत्र पूज्यते (2022) और आईआईएसएफ (2019) जैसे मेगा साइंस एक्स्पो का आयोजन; और लोकप्रिय विज्ञान पुस्तकों के 300 शीर्षकों सहित विज्ञान प्रसार के कार्यों का आयाम व्यापक है।”
डॉ पाराशर ने कहा – “हमने तमाम बाधाओं और महामारी के बीच भी भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार, लोकप्रियकरण और विस्तार (एससीओपीई) के लिए मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण जारी रखा है।” उन्होंने कहा कि विज्ञान प्रसार की वेबसाइट https://vigyanprasar.gov.in/ पर इस संगठन की दिलचस्प दुनिया के बारे में अधिक जाना जा सकता है।
(इंडिया साइंस वायर)