अपने उत्कृष्ट साहित्य के जरिए विदेशों में भी सराहे गए आरके नारायण

By अमृता गोस्वामी | May 14, 2020

80 के दशक में शंकर नाग के निर्देशन में बना टीवी धारावाहिक ‘मालगुडी डेज’ काफी चर्चित धारावाहिक था, इस धारावाहिक को आजभी लोग भूले नहीं हैं। यह धारावाहिक प्रसिद्ध भारतीय साहित्यकार आरके नारायण की 1943 में प्रकाशित छोटी कहानियों के संग्रह ‘द मालगुडी डेज’ पर आधारित था। मालगुडी डेज में आरके नारायण के मन की कल्पना, एक काल्पनिक शहर मालगुडी का इतना सुंदर वर्णन हुआ है कि लोगों को रियल लाइफ में भी इसे देखने की इच्छा होने लगती है। अपनी इस किताब में आरके नारायण ने दैनिक जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं के साथ ही मानवीय सम्बंधों का भी अति प्रशंसनीय नेचुरल वर्णन किया है। उनके इस कहानी संग्रह को देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब ख्याति मिली। आरके नारायण ऐसे भारतीय लेखक थे जिनका नाम अंग्रेजी साहित्य के प्रमुख तीन भारतीय लेखकों की श्रेणी में शामिल है। 

 

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आरके नारायण का जन्म 10 अक्टूबर,1906 को रासीपुरम, चेन्नई में हुआ था। इनके पिता का नाम कृष्ण स्वामी था, जो स्कूल में प्रधानाध्यापक थे। आरके नारायण का पूरा नाम रासीपुरम कृष्णस्वामी अय्यर नारायण स्वामी था वे अपने नौ भाई बहिनों में तीसरे नंबर के थे। परिवार के लोग उन्हें प्यार से कुंजप्पा कहकर बुलाता थे। माता की बीमारी के कारण आरके नारायण चेन्नई में अपनी दादी के पास पले-बढ़े। पढ़ने-लिखने का शौक उन्हें बचपन से ही था, अपने पिता के स्कूल के पुस्तकालय से वे बड़े-बड़े लेखकों की पुस्तकें लेकर पढ़ा करते थे। हाई स्कूल तक की पढ़ाई उन्होंने चेन्नई में की, बाद में वे मैसूर आ गए जहां कालेज की शिक्षा पूरी करके कुछ समय वे अपने पिता के नक्शे कदम पर चलकर शिक्षक भी रहे फिर लेखन में दिलचस्पी के चलते उन्होंने टीचिंग छोड़कर लेखन को ही अपना कॅरियर बनाया। वे अंग्रेजी भाषा के लेखक थे। उन्होंने अपना साहित्य भले ही अंग्रेजी भाषा में लिखा किन्तु उनकी रचनाएं हिन्दी के पाठकों के बीच भी उतनी ही लोकप्रिय रहीं जितनी अंग्रेजी पाठकों के बीच। अपने लेखन की शुरूआत आरके नारायण ने शार्ट स्टोरीज से की। उनकी ये शार्ट स्टोरीज ‘द हिंदू’ में छपा करती थीं। उनका मानना था कि कहानियां छोटी ही लिखी जानी चाहिए।


‘मालगुडी डेज’ तो आरके नारायण की लोकप्रिय चर्चित कृति थी ही जिसने उन्हें घर-घर में लोकप्रिय बना दिया था इसके अलावा साठ के दशक में इनके लिखे उपन्यास ‘द गाइड’ पर एक हिन्दी फिल्म का निर्माण हुआ, जो उस समय की सर्वश्रेष्ठ चर्चित क्लासिक मूवी रही, जिसमें देवानंद वहीदा रहमान जैसे उत्कृष्ठ कलाकारों ने काम किया था। आरके नारायण ने पहला उपन्यास ‘स्वामी एंड फ्रेंड्स’ नाम से लिखा जो स्कूली लड़कों के एक ग्रुप की एक्टिविटीज पर आधारित था। यह उपन्यास जब आरके नारायण के एक दोस्त के जरिए ग्राहम ग्रीन जो अंग्रेजी के एक महान लेखक रहे हैं तक पहुंचा तो उन्हें यह बहुत पसंद आया और इसकी पब्लिशिंग की जिम्मेदारी भी उन्होंने ली, 1935 में यह उपन्यास पब्लिश हुआ। इसके बाद में ग्राहम ग्रीन आरके नारायण के दोस्त बन गए। 1937 में आरके नारायण ने अपने कॉलेज के अनुभव पर ‘द बैचलर ऑफ आर्टस’ नाम से उपन्यास लिखा जिसे भी ग्राहम ग्रीन ने प्रकाशित कराया। 1938 में ‘द डार्क रूम’ नाम से आरके नारायण का तीसरा उपन्यास प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने वैवाहिक जीवन के भावनात्मक पहलू का बहुत ही सटीक विश्लेषण किया था। ये सभी भी आरके लक्ष्मण के प्रसिद्ध उपन्यास रहे। कर्नाटक में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए आरके नारायण ने 1980 में द एमरल्ड रूट पुस्तक लिखी।

 

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आरके नारायण को उनकी कृतियों के लिए कई पुरूस्कारों से सम्मानित किया गया। ‘द गाइड’ उपन्यास के लिए 1958 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरूस्कार दिया गया। 1964 में वे पद्म भूषण से और सन् 2000 में पद्म विभूषण से सम्मानित किए गए। आरके नारायण रॉयल सोसायटी ऑफ लिटरेचर के फेलो और अमेरिकन एकडमी ऑफ आटर्स एंड लैटर्स के मानद सदस्य भी रहे हैं। रॉयल सोसायटी ऑफ लिटरेचर द्वारा 1980 में उन्हें एसी बेन्सन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1989 में वे राज्य सभा के लिए नॉमिनेट हुए जहां रहकर उन्होंने एजुकेशन सिस्टम को बेहतरीन बनाने के लिए प्रशंसनीयकार्य किया।


‘द ग्रेंडमदर्स टेल’ आरके नारायण का अन्तिम उपन्यास था जो 1992 में प्रकाशित हुआ। 13 मई, 2001 को 94 साल की उम्र में आरके नारायण इस दुनिया को अलविदा कह गए। आज भले ही वह हमारे बीच नहीं है पर अपनी प्रसिद्ध कृतियों द इंग्लिश टीचर, वेटिंग फॉर द महात्मा, द गाइड, द मैन ईटर आफ मालगुडी, द वेंडर ऑफ स्वीट्स, अ टाइगर फॉर मालगुडी इत्यादि के जरिए वे आज भी अपने पाठकों और दर्शकों के बीच जीवित हैं। 


अमृता गोस्वामी

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