भारत में ऐसी अनेक पादप प्रजातियां पायी जाती हैं, जो अपने मूल्यवान औषधीय गुणों के कारण जानी जाती हैं। भारतीय शोधकर्ताओं ने पाइपवोर्ट (इरियोकॉलोन) नामक पादप समूह की दो नई प्रजातियों का पता लगाया है। उल्लेखनीय है कि पाइपवोर्ट पादप समूह को उसके औषधीय गुणों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। नई पाइपवोर्ट प्रजातियां महाराष्ट्र एवं कर्नाटक के पश्चिमी घाट के जैव विविधता समृद्ध क्षेत्रों में पायी गई हैं।
इनमें से एक पाइपवोर्ट प्रजाति महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले में पायी गई है। इस प्रजाति के सूक्ष्म पुष्पक्रम आकार के कारण इसका नाम इरियोकॉलोन पर्विसफलम रखा गया है। जबकि, दूसरी पाइपवोर्ट प्रजाति कर्नाटक के कुमता नामक स्थान से पायी गई है। तटीय कर्नाटक क्षेत्र (करावली) के नाम पर इस पर प्रजाति को इरियोकॉलोन करावालेंस नाम दिया गया है।
शोधकर्ताओं के अनुसार इरियोकॉलोन पादप समूह की इरियोकोलोन सिनेरियम नामक एक अन्य प्रजाति को उसके कैंसर-रोधी, दर्द-निवारक, सूजन-रोधी एवं स्तंभक गुणों के लिए जाना जाता है। जबकि, ई. क्विन्क्वंगुलारे का उपयोग यकृत रोगों के उपचार में किया जाता है। इसी तरह, ई. मैडियीपैरेंस केरल में पाया जाने वाला एक जीवाणुरोधी है। हालांकि, शोधकर्ताओं का कहना यह है कि नई खोजी गई इन पाइपवोर्ट प्रजातियों के औषधीय गुणों के बारे में पता लगाया जाना अभी बाकी है।
इन दोनों पाइपवोर्ट प्रजातियों की खोज विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत कार्यरत आघारकर अनुसंधान संस्थान, पुणे के शोधकर्ताओं द्वारा की गई है। भौतिक लक्षणों एवं आणविक स्तर पर किए गए विश्लेषण के आधार पर दोनों नई प्रजातियों की पहचान की गई है। शोधकर्ताओं को इन प्रजातियों के बारे में उस समय पता चला, जब वे इरियोकॉलोन के विकास क्रम के बारे में जानने के उद्देश्य से पश्चिमी घाट की जैव विविधता की छानबीन करने में जुटे हुए थे।
इस अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉ.रीतेश कुमार चौधरी ने बताया कि “अपने संग्रह के गहन विश्लेषण से हमें कुछ ऐसे तथ्यों का पता चलता है, जिसमें पहले से ज्ञात प्रजातियों की अपेक्षा नई प्रजातियों में अलग-अलग पुष्प लक्षण दिखाई देते हैं। इसीलिए, नई प्रजातियों की पुष्टि करने के लिए आकृति विज्ञान और पौधों के डीएनए का अध्ययन किया गया है।”
इरियोकॉलोन पादप समूह मानसून के दौरान एक छोटी अवधि के भीतर अपने जीवन चक्र को पूरा करता है। पश्चिमी घाट के जिन क्षेत्रों से इन दोनों पाइपवोर्ट प्रजातियों की खोज की गई है, उन्हें जैव विविधता के लिहाज से विश्व के प्रमुख केंद्रों में गिना जाता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि पश्चिमी घाट में इन पादप प्रजातियों का पाया जाना इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता को दर्शाता है। इरियोकॉलोन पादप समूह की ज्यादातर प्रजातियां पश्चिमी घाट के अलावा पूर्वी हिमालय क्षेत्र में पायी जाती हैं। इरियोकॉलोन की इन प्रजातियों में लगभग 70% देशज प्रजातियां शामिल हैं।
डॉ. चौधरी ने बताया कि "इरियोकॉलोन से जुड़ी प्रजातियों की पहचान बेहद कठिन है, क्योंकि इसकी सभी प्रजातियां प्रायः एक जैसी दिखाई देती हैं। इसी कारण इस वंश की प्रजातियों को अक्सर 'वर्गीकरण शास्त्रियों (टैक्सोनोमिस्ट) का दुःस्वप्न' कहा जाता है। इसके छोटे फूल और बीज विभिन्न प्रजातियों के बीच अंतर को बेहद पेचीदा बना देते हैं।"
डॉ. चौधरी के शोध छात्र अश्विनी एम. दारशेतकर ने बताया कि “इस तरह के अध्ययन भारत में पादप प्रजातियों के विकास क्रम को स्पष्ट करने में उपयोगी हो सकते हैं। भारतीय प्रजातियों के बीच क्रम-विकास संबंधों की गहन पड़ताल से संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण को प्राथमिकता देने में मदद मिल सकती है। हम डीएनए बारकोड विकसित करने का प्रयास भी कर रहे हैं, जिसकी मदद से पत्ती के सिर्फ एक हिस्से से पादप प्रजातियों की पहचान की जा सकेगी।”
यह अध्ययन दो अलग-अलग शोध पत्रिकाओं ‘फाइटोटैक्सा’ एवं ‘एनलिस बोटनीसी फेनिकी’ में प्रकाशित किया गया है। अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में डॉ.रीतेश कुमार चौधरी और अश्विनी एम. दारशेतकर के अलावा मंदार एन. दातार, जी. रामचंद्र राव, शुभदा ताम्हणकर और कोणिकल एम. प्रभुकुमार शामिल थे।
इंडिया साइंस वायर