By अजय कुमार | Jun 09, 2022
उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से चुनावी बयार बहने लगी है। राज्यसभा से लेकर विधान परिषद की रिक्त सीटों के लिए तो चुनाव हो ही रहा है। इसके अलावा आजम खान और अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद रिक्त हुई रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा पर भी चुनाव होना है। यह दोनों सीटें आजम और अखिलेश के हाल ही में सम्पन्न विधान सभा चुनाव में विधायक चुने के बाद खाली हुई हैं। विधान सभा का चुनाव जीतने के बाद दोनों नेताओं ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। दोनों सीटों पर होने वाले उप-चुनाव के नतीजों से केन्द्र की सियासत पर तो कोई बदलाव नजर नहीं आएगा, लेकिन जो भी दल यह चुनाव जीतेगा, उसके लिए यह जीत 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए बूस्टर डोज का काम करेगी। इसीलिए भाजपा और सपा ने दोनों ही सीटों पर पूरा दमखम लगा रखा है।
वहीं बात बसपा और कांग्रेस की कि जाए तो बसपा ने आजम खान के करीबी प्रत्याशी के समर्थन में रामपुर से अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है, जबकि कांग्रेस चुनाव लड़ ही नहीं रही है। जो चुनावी तस्वीर उभरती नजर आ रही है उसके अनुसार आजमगढ़ में बसपा, भाजपा और सपा प्रत्याशियों के बीच टक्कर है। वहीं रामपुर में भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच सीधी टक्कर होगी। कहने को तो यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से सिर्फ दो सीटों पर ही चुनाव हो रहे हैं, लेकिन इन चुनावों ने भी एक बार फिर तमाम सियासी दलों के नेताओं और राजनैतिक पंडितों के दिलों की धड़कनें तेज कर दी हैं। खास बात यह है कि आजमगढ़ और रामपुर दोनों ही मुस्लिम बाहुल्य सीटें हैं, जिसका अक्सर फायदा समाजवादी पार्टी को ही मिलता है। लेकिन मायावती ने आजमगढ़ में मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा करके चुनावी बिसात पर अपनी चाल चल दी है।
आजमगढ़ लोकसभा सीट एक बार फिर मुलायम परिवार के खाते में ही आई है। यहां से अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को सपा ने अपना प्रत्याशी बनाया है। वहीं रामपुर के लिए सपा प्रत्याशी तय करने में आजम खान की ही चली। ये और बात है कि आजम अपनी पत्नी को टिकट नहीं दिला पाए। उनकी जगह उनके करीबी आसिम राजा को प्रत्याशी बनाया गया है। राजा के नाम की घोषणा स्वयं आजम खान ने की। आसिम राजा के खिलाफ भाजपा ने रामपुर सीट पर दलित नेता घनश्याम लोधी को अपना उम्मीदवार बनाया है, जो हाल ही में सपा छोड़कर भाजपा में आए थे। रामपुर में भाजपा ने कांटे से कांटा निकालने का प्रयास किया है। भाजपा ने यहां से जिन घनश्याम लोधी को प्रत्याशी बनाया है, वह इसी वर्ष जनवरी में समाजवादी पार्टी को छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। घनश्याम लोधी कभी समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खां के करीबी हुआ करते थे। वर्ष 2016 में आजम की वजह से ही समाजवादी पार्टी ने उन्हें एमएलसी चुनाव लड़ाया था। इसी वर्ष विधान सभा चुनाव से कुछ माह पूर्व जनवरी में घनश्याम लोधी को समाजवादी पार्टी ने पार्टी विरोधी गतिविधियों की वजह से पार्टी से निष्कासित कर दिया था। इसके बाद घनश्याम लोधी भाजपा में शामिल हो गए थे। कांग्रेस और बसपा ने यहां अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है। यहां भाजपा और सपा के बीच सीधा मुकाबला होगा।
बात आजमगढ़ की जाए तो आजमगढ़ में मुकाबला त्रिकोणीय होगा। आजमगढ़ लोकसभा सीट पर भाजपा ने भोजपुरी स्टार और पूर्व लोकसभा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ को फिर से अपना उम्मीदवार बनाया है। निरहुआ 2019 में भी अखिलेश के खिलाफ बीजेपी के प्रत्याशी थे, लेकिन वह चुनाव हार गए थे। परंतु उन्होंने अखिलेश को टक्कर जमकर दी थी। निरहुआ अपने को आजमगढ़ का बेटा बताकर धर्मेंद्र यादव को बाहरी बता कर उनका विरोध कर रहे हैं। आजमगढ़ में बीएसपी ने मुस्लिम प्रत्याशी पर दांव लगाया है। बसपा ने यहां से शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को मैदान में उतारा है। उप-चुनावों में सबसे अधिक परेशान समाजवादी पार्टी नजर आ रही है। जिन दो लोकसभा सीटों पर चुनाव होना है, वह दोनों ही सीटें 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने जीती थीं। आजमगढ़ से अखिलेश यादव तो रामपुर से आजम के सिर जीत का सेहरा बंधा था।
बहरहाल, आजमगढ़ और रामपुर दो ऐसी मुस्लिम बाहुल्य लोकसभा सीटें हैं, जहां भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन हमेशा ही निराशाजनक रहा है। लेकिन अब इन दोनों लोकसभा सीट पर हालात काफी बदल गए हैं। भाजपा, सपा के खिलाफ यहां पूरे दमखम के साथ ताल ठोंक रही है। यहां हिंदू-मुस्लिम वोटों के बीच जबर्दस्त ध्रुवीकरण हो सकता है। आजमगढ़ हो या रामपुर दोनों ही सीटों से अखिलेश यादव और आजम खान की प्रतिष्ठा जुड़ी है। दोनों लोकसभा सीटों पर किसी भी दल का कोई भी प्रत्याशी हो, लेकिन चुनाव के नतीजे तमाम दलों के शीर्ष नेतृत्व का ही ‘कद’ तय करेगा। इसमें योगी से लेकर अखिलेश और मायावती भी शामिल हैं। आजम खान के लिए भी यह चुनाव उनकी प्रतिष्ठा से जुड़े हैं।
- अजय कुमार