समतामूलक समाज का द्योतक है गणतंत्र

By डॉ. शंकर सुवन सिंह | Jan 26, 2022

आधुनिक स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय पर्व है- गणतंत्र दिवस। भारत में गणतंत्र दिवस की भूमिका बहुत अहम् होती है। इसी दिन संविधान की स्थापना हुई। गणतंत्र दिवस भारतीयों की भावनाओ से जुड़ा हुआ विशेष दिन है। गणतंत्र के 72 वर्ष पूरे हो गए हैं। आजादी के बाद देश को चलाने के लिए संविधान लिखा गया, जिसे लिखने में पूरे 2 साल 11 महीने और 18 दिन लगे। 26 जनवरी 1950 ई. को सुबह 10:18 मिनट पर भारत का संविधान लागू किया गया था और इसी उपलक्ष्य में हम 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाने लगे। 26 जनवरी 1950 से पहले भारत संवैधानिक तौर पर गणराज्य नहीं बल्कि राजतंत्र ही था। 26 जनवरी 1950 से पहले गर्वनमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के तहत भारत में शासन चलाया जाता था। दिल्ली में 26 जनवरी,1950 को पहली गणतंत्र दिवस परेड, राजपथ पर न होकर इर्विन स्टेडियम (आज का नेशनल स्टेडियम) में हुई थी। वर्ष 1955 ई. को दिल्ली के राजपथ पर गणतंत्र दिवस की पहली परेड हुई थी। गणतंत्र दिवस के मौके पर राजपथ पर परेड आयोजित की जाती है और इस परेड की सलामी देश के राष्ट्रपति लेते हैं। हर साल 21 तोपों की सलामी दी जाती है। वर्ष 1950 ई. से हम गणतंत्र दिवस को हर वर्ष ढ़ेर सारे हर्ष और खुशी के साथ मनाते हैं। वर्ष 2022 में 73 वां गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है।

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आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर 17 जगुआर लड़ाकू विमान 75 के आकार में राजपथ के उपर आसमान में उड़ान भरेंगे। जिसका नजारा अद्भुत होगा। इसके अलावा 73 वां गणतंत्र दिवस के मौके पर 16 मार्चिंग दल, 17 सैन्य बैंड और विभिन्न राज्यों, विभागों और सशस्त्र बलों की 25 झांकियां प्रदर्शित की जाएंगी। झांकी का मुख्य विषय 'आजादी का अमृत महोत्सव' है, जो आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में है। सबसे खास बात है कि इस बार के परेड में दो परमवीर चक्र और एक अशोक चक्र पुरस्कार विजेता भी भाग ले रहे हैं। समारोह में भारतीय सेना की सिख लाइट इन्फेंट्री, राजपूत रेजिमेंट, जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फेंट्री, असम रेजिमेंट, आर्मी ऑर्डिनेंस कॉर्प्स रेजिमेंट और पैराशूट रेजिमेंट कार्यक्रम में अपने करतब दिखाएंगे। 


गणतंत्र दिवस समारोह में इस बार भी कोई विदेशी मेहमान या राष्ट्राध्यक्ष शामिल नहीं होगा। कोरोना के कारण इस बार भी गणतंत्र दिवस समारोह में किसी विदेशी मेहमानों को आमंत्रित नहीं किया गया। जबकि, गणतंत्र दिवस में विदेशी मेहमान को शामिल करने की शुरू से देश की परंपरा रही है। दो शब्दों से मिलकर बना है गणतंत्र- गण और तंत्र। गण का शाब्दिक अर्थ है दल/समूह/लोक। तंत्र का शाब्दिक अर्थ है डोरा/सूत (रस्सी)। अर्थात ऐसी रस्सी/डोरा,जो लोगों के समूह को जोड़े, लोकतंत्र कहलाता है। अर्थात जनता के द्वारा जनता के लिए। भारत में लोकतंत्र है और राजनेताओं ने लोकतंत्र का आधार, आरक्षण को बना दिया है। भ्रष्ट प्रशासन, शिक्षा से लेकर न्याय तक का राजनैतिककरण होना, लोकतंत्रात्मक प्रणाली का जुगाड़ तंत्रात्मक हो जाना आदि अन्य सामाजिक कुरीतियों ने जन्म ले लिया। 25/08/1949 ई में संविधान सभा में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति आरक्षण को मात्र 10 वर्ष तक सिमित रखने के प्रस्ताव पर एस. नागप्पा व बी. आई. मुनिस्वामी पिल्लई आदि की आपत्तियां आई। डॉक्टर अम्बेडकर ने कहा मैं नहीं समझता कि हमे इस विषय में किसी परिवर्तन की अनुमति देनी चाहिए। यदि 10 वर्ष में अनुसूचित जातियों की स्थिति नहीं सुधरती तो इसी संरक्षण को प्राप्त करने के लिए उपाए ढूढ़ना उनकी बुद्धि शक्ति से परे न होगा। आरक्षण वादी लोग, डॉ अम्बेडकर की राष्ट्र सर्वोपरिता की क़द्र नहीं करता। समाज एक से अधिक लोगों के समुदायों से मिलकर बने एक वृहद समूह को कहते हैं, जिसमें सभी व्यक्ति मानवीय क्रिया-कलाप करते हैं। मानवीय क्रिया-कलाप में आचरण, सामाजिक सुरक्षा और निर्वाह आदि की क्रियाएं सम्मिलित होती हैं।  


मनुष्य सामाजिक प्राणी है। मनुष्य सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है। अन्य प्राणियों की मानसिक शक्ति की अपेक्षा मनुष्य की मानसिक शक्ति अत्यधिक विकसित है। समाज रूपी मकान जब न्याय रूपी स्तम्भ पर खड़ा होता है तो ऐसा समाज सौम्यता, समानता और शांति का प्रतीक होता है। न्याय, विश्व में शांति कायम करने का एक महत्वपूर्ण अंग है। न्याय (जस्टिस) की बुनियाद सभी मनुष्यों को समान मानने के आग्रह पर आधारित है। न्याय अर्थात समानता का अधिकार। न्याय ही समाज में फैली तमाम तरह की बुराईयों और गैर-सामाजिक तत्वों पर लगाम लगाने उन्हें सजा देने तथा तमाम नागरिकों के नैतिक और मानवाधिकारों की रक्षा करता हैं। 

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समाज में फैली भेदभाव और असमानता के कारण मानवाधिकारों का हनन लगातार होता रहा। भारत में अशिक्षा, ग़रीबी, बेरोजगारी, महंगाई और आर्थिक असमानता ज्यादा है। इन्हीं भेदभावों के कारण न्याय बेहद विचारणीय विषय हो गया है। डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर (15 जनवरी 1929 – 4 अप्रैल 1968) अमेरिका के एक पादरी, आन्दोलनकारी (ऐक्टिविस्ट) एवं अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकारों के संघर्ष के प्रमुख नेता थे। उन्हें अमेरिका का गांधी भी कहा जाता है। मार्टिन लूथर किंग ने कहा था कि "जहां भी अन्याय होता है वहां हमेशा न्याय को खतरा होता है। यह बात केवल वैधानिक न्याय के बारे में ही सही नहीं है क्योंकि एक विवेकपूर्ण समाज से सदैव समावेशी प्रणाली के लिये रंग, नस्ल, वर्ग, जाति जैसी किसी भी प्रकार की सामाजिक बाधा से मुक्त न्याय सुनिश्चित करने की उम्मीद की जाती है ताकि समाज का कोई भी व्यक्ति अपने न्याय के अधिकार से वंचित न हो सके। किसी को भी न्याय से वंचित रखना न केवल सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि संवैधानिक प्रावधानों के भी खिलाफ़ हैं। हिंसा के जरिये जोर जुल्म से बात मनवाना असहिष्णुता है। असहिष्णुता गुंडों के द्वारा की जाती है। असहिष्णुता से दृढ़ संकल्पित रूप से सामना करने की जरुरत है। रक्त से किसकी प्यास बुझती है, क्या आप जानते हैं? पिशाचों व पशुओं की, तुम तो फिर मनुष्य ही हो। असहिष्णुता गुंडाराज को चरितार्थ करती है। बोलने का अधिकार हमारा जन्मजात अधिकार है। यदि बोलना बंद कर दिया गया तो हमारी आवाज़ और हमारे विचार सीमित हो जाएंगे। इसलिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(क) के अंदर हमें बोलने की स्वतंत्रता दी गई है। यह हमारा मौलिक अधिकार है। अतः हम इसे लेकर न्यायालय में भी जा सकते हैं। भारतीय संविधान में स्वतंत्रता का अधिकार मूल अधिकारों में सम्मिलित है। इसकी 19,20,21 तथा 22 क्रमांक की धाराएँ नागरिकों को बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित 6 प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान करतीं हैं। भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारतीय संविधान में धारा 19 द्वारा सम्मिलित 6 स्वतंत्रता के अधिकारों में से एक है। 19(क)वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,19(ख)शांतिपूर्ण और निराययुद्ध सम्मेलन की स्वतंत्रता,19(ग) संगम, संघ या सहकारी समिति बनाने की स्वतंत्रता,19(घ) भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण की स्वतंत्रता,19(ङ)भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र कही भी बस जाने की स्वतंत्रता,19(छ) कोई भी वृत्ति, उप-जीविका,व्यापार या कारोबार की स्वतंत्रता। भारत में जो आपसी सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास करे वह भारतीय कम व आतंकी ज्यादा है। मानवता, सहिष्णुता की जननी है। सच्ची मानवता तब जन्मेगी, जब दुनिया से असहिष्णुता मिटेगी, जब दुनिया में लोगों को जीने की स्वतंत्रता होगी, जब दुनिया से वहशीपन हटेगा, जब उगता सूरज सारे अँधेरे को लील जाएगा, जब शेर की गर्जन से हिरन जान बचाकर नहीं भागेंगे, शेर पर भरोसा होगा तब दुनिया से बुराई का अंधकार छट जाएगा और सही मायने में सहिष्णुता का राज होगा। सहिष्णुता, समता पर आधारित होती है। समता अर्थात जिसमे विषमता का भाव न हो। समता अर्थात जहां शोषण न हो। भेदभाव रहित समाज ही समतामूलक समाज कहलाता है। अतएव हम कह सकते है कि भारतीय गणतंत्र समतामूलक समाज का द्योतक है।    


- डॉ. शंकर सुवन सिंह

वरिष्ठ स्तम्भकार एवं विचारक

असिस्टेंट प्रोफेसर, शुएट्स, नैनी, प्रयागराज (यू.पी)

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