By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Oct 31, 2022
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को डिजिटल भुगतान को ‘जीरो-बैलेंस बेसिक बचत खाता जमा’ (बीएसबीडी) पर निकासी पाबंदी के दायरे से बाहर रखना चाहिए। भारती प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे की एक रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, ई-कॉमर्स लेनदेन पर ‘मर्चेंट डिकाउंट दर (एमडीआर)’ के बदले में एकसमान 0.3 फीसदी का शुल्क लगाने की इजाजत भी सरकार को दी जानी चाहिए।
रिपोर्ट कहती है कि ई-कॉमर्स मंचों पर इलेक्ट्रॉनिक तरीकों से होने वाले सभी भुगतान पर 0.3 फीसदी के एकसमान शुल्क के जरिये 5,000 करोड़ रुपये जुटाए जा सकेंगे। इस राशि का उपयोग यूपीआई ढांचे को मजबूत करने और उसकी देखरेख के लिए किया जा सकेगा। बीएसबीडी पर निकासी पाबंदी के बारे में रिपोर्ट कहती है कि डिजिटल भुगतान के मौजूदा चरण में आरबीआई को डिजिटल भुगतान को बचत जमा में निकासी प्रतिबंधों की पुरानी परिसे बाहर रखने के तरीके और साधन तलाशने होंगे।
कुछ बैंकों ने बीएसबीडी खातों से लेनदेन की संख्या पर पाबंदी लगाई हुई है। मसलन, मुंबई के एक बैंक ने बीएसबीडी खाते से हर महीने दस बार निकासी की ही सीमा तय की हुई है। रिपोर्ट में कहा गया कि खाते की भिन्न श्रेणी के लिए सेवा शुल्क भी भिन्न हो सकता है लेकिन बचत खाते के लिए लेनदेन को कहीं पर सीमित करना और कहीं पर न करना भेदभावपूर्ण है और यह समानता के अधिकार का विरोधाभासी है।