शराब राज्यों के लिए गले की फांस बनता जा रहा है। शराब सभी राज्य सरकारों के लिए राजस्व का सबसे बड़ा जरिया है, इसलिए राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट के आदेश का तोड़ निकालने में लगी हुई हैं। भिन्न-भिन्न राज्य सरकारें अपने-अपने तरीके से सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बचने के रास्ते तलाश रही हैं वहीं एक नई मुसीबत आ खड़ी हुई है और वह है शराबबंदी के खिलाफ उभरता जन आंदोलन, जिसका नेतृत्व महिलाएं कर रही हैं जो इससे सर्वाधिक त्रस्त हैं। ग्रामीण इलाकों में तो शराब की खपत तेजी से बढ़ रही है, जिसका खमियाजा ग्रामीण महिलाएं एवं उनके बच्चे भुगत रहे हैं। यही कारण है कि शराबबंदी को लेकर देशभर के ज्यादातर इलाकों में यह आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा है और कुछ मौकापरस्त राजनैतिक दल इस मुद्दे के हवा देकर माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। कई जगहों से ठेकों की लूटपाट और आगजनी की खबरें आ रहीं हैं। शराबबंदी को लेकर उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा हिंसा की खबरें आयी हैं। मामले की गंभीरता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को स्वयं सामने आकर महिलाओं से कानून अपने हाथों में न लेने की गुज़ारिश करनी पड़ी। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मध्य प्रदेश आदि में इस आंदोलन की गूंज सुनाई पड़ रही है। महिलाएं शराब के खिलाफ एकजुट होकर आंदोलित हो गई हैं। शराब विरोधी संदेश लिखी तख्तियां लेकर सड़कों पर उतर चुकी हैं। लंबी-लंबी कतारों में दूर-दूर तक पैदल चलकर जुलूस निकाल रही हैं और शराब की बिक्री के विरोध में शासन-प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी कर रही हैं। उनका तर्क है कि वे शराब से बर्बाद हो रहे समाज को बचाने के लिए घर से निकली हैं।
शराब राज्य सरकारों के लिए राजस्व प्राप्ति का सबसे बड़ा जरिया है इसलिए राज्य सरकारें हर वर्ष इस मद से राजस्व बढ़ाने का जरिया खोजती रहती हैं। यही कारण है कि हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली समेत अनेक राज्यों ने नई-नई चालें चलते हुए कहीं राज्य राजमार्गों को जिला या तहसील रोड़ बना दिया है तो कहीं राजमार्गों से लगते होटलों एवं ठेकों को बचाने के लिए उन तक पहुंचने के लिए घुमावदार रास्ते बनाकर दिखाने के लिए उनकी दूरी 500 मीटर कर दी है ताकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाया जा सके। कई राज्य सरकारों ने केन्द्र के पास प्रस्ताव भेजकर कहा है कि राष्ट्रीय राजमार्गों की सीमा शहर से अढ़ाई किलोमीटर पहले समाप्त हो जानी चाहिए एवं अढ़ाई किलोमीटर बाद शुरू होनी चाहिए ताकि शहरों में स्थित ठेके एवं होटल प्रभावित न हों। राज्य सरकारों को बदले में उतनी सड़क का रखरखाव करना है जो पहले केन्द्र सरकार करती थी।
यही कारण है कि राजमार्गों से लगते होटलों के जो बार एवं ठेके 01 अप्रैल से बंद हो चुके थे वे अब गुलज़ार नजर आने लगे हैं। लेकिन क्या राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्गों पर शराब की बिक्री धड़ल्ले से जारी रखने के लिए इस प्रकार कानून को तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आखिर गुण-दोष के आधार पर फैसला किया है। सरकारों के इस प्रकार के निर्णयों से जहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश की मूल भावना से छेड़छाड़ की गई है वहीं राज्य की सड़कों का दर्जा बदल जाने से उनका रखरखाव मुश्किल हो जाएगा। राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्गों का दर्जा बदलने से जहां केन्द्रीय बजट में कटौती होगी, वहीं इन सड़कों का रखरखाव राजमार्गों की सड़कों जैसा नहीं रहेगा। यह सड़कें भी स्थानीय लिंक रोड़ जैसी हो जाएगी। केंद्र सरकार राज्य में सड़कों की दशा सुधारने के लिए कई महत्वाकांक्षी योजनाओं पर करोड़ों रुपये खर्च करती है लेकिन राज्य सरकारों के निर्णय से इन सड़कों का दर्जा कम होने से सड़कों के रखरखाव और निर्माण के लिए केंद्र से मिलने वाली सहायता बंद हो जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप सड़कों की हालत निश्चित रूप से खराब होगी।
करीब पांच वर्ष पूर्व चंडीगढ़ निवासी हरमन ने सुप्रीम कोर्ट में यह कहते हुए जनहित याचिका दायर की थी कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर बने ठेके बंद किये जाने चाहिए ताकि सड़क दुर्घटनाएं रोकी जा सकें। 15 दिसम्बर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि राजमार्गों के 500 मीटर के दायरे में आने वाले सभी ठेके बंद किये जाएं और इसे लागू करने की तारीख 01 अप्रैल 2017 निर्धारित की। इस आदेश के खिलाफ कई कारण बताते हुए करीब 70 याचिकाएं दायर की गईं। जिन पर सुनवाई के बाद संशोधन करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते हुए 20,000 से कम आबादी वाले शहरों में यह दूरी घटाकर 220 मीटर कर दी। कोई भी राज्य सरकार खुले मन से इसे अपनाने को तैयार नहीं है। सबसे ज्यादा रोना तो राज्य सरकारें राजस्व घाटे का रो रही हैं और अब जब सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय आ चुका है तब सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकारों की यह कवायद सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना नहीं है? क्या कोई राज्य सरकार अपनी शक्तियों का दुरूपयोग करते हुए केवल एक अधिसूचना से सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को निरस्त कर सकती है? यदि इस प्रकार का चलन शुरू हो गया तो कोई भी राज्य सरकार किसी भी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को निरस्त कर देगी। ऐसा करना सरासर कोर्ट की अवहेलना है।
लेकिन अब शराब को लेकर राज्य सरकारों के सामने दोहरी मुसीबत आ चुकी है। शराबमुक्त समाज के लिए महिलाओं ने देश के कई राज्यों में शराब के खिलाफ अभियान छेड़ रखा है। बनारस में महिलाओं ने शराब की दुकान को आग लगा दी और देहरादून में ठेके पर ताले जड़ दिये। इसी प्रकार पीलीभीत में ठेके के कर्मचारियों की पिटाई कर दी। जयपुर में शराब की पेटियों पर रोलर चलवा दिया। कुछ इसी तरह की खबरें देशभर के बड़े हिस्से से आ रही हैं। दरअसल यह महिलाएं पूरे देश में शराबबंदी की मांग कर रही हैं। कुछ संगठन उनकी इस मुहिम में शामिल हो गए हैं और उनको एकजुट करके आंदोलन को आगे बढ़ाने में मदद कर रहे हैं।
सड़क पर ज्यादातर दुर्घटनाएं शराब पीकर वाहन चलाने वालों की वजह से होती हैं और केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2014-15 में देशभर में कुल 5 लाख सड़क दुर्घटनाओं में 1 लाख 46 हजार लोगों की मौत हुई और दिनों-दिन यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। शराब ठेकों की बढ़ती संख्या एवं सरकार की गलत आबकारी नीतियों के कारण ऐसा हो रहा है। अकेले उत्तर प्रदेश में अंग्रेजी शराब की 5471, देशी शराब की 14021, बीयर की करीब 5000 और भांग की 2440 दुकानें हैं जिनसे सरकार को करीब 20 हजार करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होता है।
दरअसल महिलाओं को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बहुत भरोसा है और इसलिए महिला संगठन इस आंदोलन को देशभर में फैला रहे हैं। हालांकि शराब की खरीद-बिक्री राज्य सरकारों का विषय है लेकिन नरेन्द्र मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए जिस प्रकार राज्य में पूर्ण शराबबंदी को अमलीजामा पहनाया था वैसा केन्द्रीय कानून बनाकर कर सकते हैं। अत: इसी भरोसे महिलाएं शराबबंदी की मांग कर रही हैं। उत्तर प्रदेश में भी यह आंदोलन तेजी से फैल रहा है और इसका बड़ा कारण वहां सरकारी दुकानों पर शराब की मनमानी कीमतें तथा यूपी में कच्ची शराब की उपलब्धता है जिसके कारण कई मौतें हो चुकी हैं।
दरअसल शराबबंदी को लेकर समय-समय पर आंदोलन चलते रहते हैं लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट के राष्ट्रीय राजमार्गों के समीप चल रहे सभी ठेकों को बंद करने के आदेश ने महिलाओं को शराबबंदी के पक्ष आंदोलन चलाने का हथियार दे दिया है और रही-सही कसर राज्य सरकारों की शराब बिक्री बढ़ाने की तिकड़मों ने पूरी कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी राष्ट्रीय और राजकीय राजमार्गों के किनारे शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाकर देशहित में काम किया है और गुण-दोष के आधार पर 69 याचिकाओं का निपटारा करते हुए आदेश दिया है लेकिन राज्य सरकारों का रवैया निराशाजनक है जो महिलाओं के आक्रोश को बढ़ा रहा है। 2013 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक भारत में शराब से प्रतिदिन 15 लोगों की मौत होती है, जिसकी संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। भारत में प्रति व्यक्ति शराब की खपत में लगभग 42 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट में कहा गया है कि 13 प्रतिशत से अधिक भारतीय शराब का सेवन करते हैं।
- विजय शर्मा