By अनन्या मिश्रा | Nov 13, 2024
कथा
बता दें कि देवर्षि नारद बोले के असुर जालंधर राक्षस को आता देखकर सभी इंद्रादि देवगण भय से कांप उठे और श्रीहरि विष्णु की स्तुति करने लगे। तब देववृंद बोले, हे भगवन् आपने मत्स्य-कूर्मादि कितने की अवतार लेकर अपने भक्तों का हित और कार्य करने के लिए उद्यत रहते आए हैं। हमेशा दुखियों के दुख का नाश करते आए हैं और ब्रह्मा, विष्णु व महेश रूप धारण कर संसार की उत्पत्ति, पालन और संहार करते आए हैं। आप अपने हाथों में शंख, गदा, पद्म और तलवार धारण किए हैं। ऐसे भगवान को नमस्कार है।
आप श्रीलक्ष्मी के पति, गरुड़ पर सवारी करने वाले, दैत्यों का विनाश करने वाले, पीताम्बरधारी और यज्ञादि आदि समस्त क्रियाओं को परिपूर्ण करने और विघ्नों को दूर करने वाले भगवान विष्णु को हम बारम्बार प्रणाम करते हैं। हे भगवान विष्णु आप राक्षसों से पीड़ित देवताओं के दुखरूपी पर्वत के लिए वज्र के समान हैं। आप शेषरूपी शैय्या पर शयन करने वाले हैं और सूर्य चंद्रमा आपके दोनों नेत्र हैं। इस स्वरूपधारी भगवान को हमारा बारम्बार प्रणाम हैं।
देवर्षि नारद ने कहा कि जो भी व्यक्ति को इस संकट को नाश करने वाले स्त्रोत का पाठ करेगा, उसको भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा से कभी दुख नहीं होगा। इस तरह से देवतागण भगवान श्रीहरि विष्णु की स्तुति करने लगे। तब भगवान श्रीहरि को देवताओं की विपत्ति का ज्ञान हुआ और वह फौरन शैय्या से उठ खड़े हुए और उदास होते हुए गरुड़ पर सवार होकर श्रीलक्ष्मी से कहने लगे, तुम्हारे भाई जालंधर ने देवताओं को बहुत कष्ट दिए हैं। देवताओं ने मुझको युद्ध के लिए बुलाया है, इसलिए मैं वहां शीघ्रतापूर्वक जाऊंगा।
तब मां श्रीलक्ष्मी ने कहा, हे नाथ, हे कृपानिधि मैं आपकी पत्नी हूं और मैं हमेशा आपमें भक्ति रहती हूं। तब फिर आप मेरे भाई को युद्ध में कैसे मार सकेंगे। भगवान श्रीहरि ने कहा कि शिवजी के अंश से उत्पन्न होने वाला जालंधर ब्रह्म देव के वरदान के कारण और तुम्हारी प्रीतिवश जालंधर मेरे वध योग्य नहीं है।
इसके बाद श्रीहरि विष्णु गरुड़ पर आसीन होकर शङ्ख, चक्र, गदा और तलवार धारण किए हुए दैत्यों से युद्ध करने के लिए वहां पहुंचते हैं। जहां पर देवतागण उनकी स्तुति कर रहे थे। फिर वायु के वेग से पीड़ित होकर और गरुड़ के पंखों द्वारा प्रताड़ित दैत्यगण आकाश में उड़ने लगे, जिस तरह से वायु से आहत होकर मेघ आकाश में उड़ते हैं। वहीं राक्षसों को पीड़ित देखकर दैत्याधीश जालंधर क्रोधित होता हुआ उछलकर श्रीविष्णु के समीप गया।