जिस तरह गूगल से बचना मुश्किल हैं ठीक उसी तरह गोल गप्पों से बचना आसान नहीं है। गूगल का स्वाद वर्चुअल है मगर गोल गप्पों के दर्जनों स्वाद एक्चुअल हैं। इनका लुत्फ उठाने के लिए एक अदद ललचाई जीभ चाहिए। शुभ मुहरत में पेट के भीतर स्पष्ट संकेत उभरते ही जीभ उन्हें लपकना चाहती है और खाने वाले मनपसन्द गोलगप्पे वाले के सामने होते हैं। प्रसिद्ध ठिकानों पर मुंह में पानी लिए ग्राहकों के समूह खड़े मिलते हैं ठीक जैसे कई शहरों में समोसे बेचने वालों के सामने टोकन लिए इंतज़ार करते हैं।
इतिहास में स्वादिष्ट शब्दों से लिखा गया मानते हैं कि गोल गप्पे खाने से ज़ुकाम ठीक होता है। हाज़मे के साथ साथ पारिवारिक जीवन के स्वास्थ्य के लिए भी गोलगप्पे बड़ी मुफीद चीज़ मानी गई है। इसके पानी में हींग और खास मसाले होते हैं तभी चटखारे का रंग चोखा चढ़ता है। रिटायरमेंट के बाद हम घर पर ज़्यादा रहते हैं तभी पत्नी रूठने की आशंका और अवसर बढ़ गए हैं। ऐसे में पति की मदद के लिए सस्ते और स्वाद गोलगप्पे बहुत काम आते हैं। हल्की नाराज़गी के मौसम में, पत्नी से गुज़ारिश की, पकौड़े बना लो, जवाब मिर्च फटने जैसा आया, कभी खुद भी कर लिया करो। शाम ढल चुकी थी और पकौड़ों का मुहर्त निकल चुका था। अपना गला खट्टे और फ्राइड के मामले में संवेदनशील है और ऊपर से बरसात का मौसम। कुल मिलाकर अब यही चारा था कि पांच किस्म के पानी वाले गोल गप्पों की दावत दी जाए। गाड़ी निकाली, खिलाने वाले की दुकान पर पहुँचे तो ताला मिला, पड़ोसी ने मुस्कुराते हुए बताया बच्चों की छुट्टियां हैं घर गए हैं।
पत्नी ने समझाया, आएंगे तो इनका नंबर फ़ेवरटेस में रख लेना। पता किया और कौन बढ़िया गोल गप्पे बनाता है। लोगों के धक्के खाते वहां पहुँचे तो हम आखिरी ग्राहक थे। पत्नी के इसरार पर हमने भी एक गोल गप्पा खा लिया। घर पहुँचे तो बूंदा बांदी शुरू हो गई। देर नहीं लगी, गला खराब हो गया और सुबह होते होते बुखार भी पधार गए। पारिवारिक डॉक्टर को फोन किया तो पता लगा शहर से बाहर, बोले किसने कहा एलेर्जिक मौसम में हर कहीं खा लो। हमने कहा, पता किया था गोल गप्पे अच्छे हैं। आजकल विश्वास का ज़माना है? टैस्ट कराकर ही दवाई लेना कहीं वायरल न निकले। उन्होंने डाक्टर का पता देते हुए कहा, वहीं जाना। मुझे ‘दाग अच्छे हैं’ वाला विज्ञापन याद आने लगा।
आठ किलोमीटर दूर विशेषज्ञ डाक्टर, परामर्श फीस सात सौ रुपए के इलावा टेस्ट का भुगतान अलग। डाक्टर बोले, रिस्क नहीं ले सकते, वक्त बदल गया है अब बीमारी कोई भी शेप ले लेती है। इन्फेक्शन का मौसम है। आपको किसने सलाह दी गोलगप्पे यहां वहां खाने की......... आजकल तो ब्रैंडिड व नाइसली पैक्ड भी मिलते हैं। होम डिलीवरी भी है। डाक्टर को लगा ज़रूर इनकी गोलगप्पा प्रेमी पत्नी ने कहा होगा। खैर, घर पहुँचकर दवाई के पहले डोज़ के साथ अपना डोज़ भी देते हुए पत्नी बोली, आपने ही फरमाया था गोल गप्पे खाने चलते हैं। सच बोलूं तो आपने दिल से नहीं खिलाए। मुझे चुप ही रहना चाहिए था, रहा, उधर मन में हिसाब चल रहा था कि एक गोलगप्पा कितने सौ रुपए का पड़ा।
- संतोष उत्सुक