काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-13

By विजय कुमार | Jul 28, 2021

जाने से पहले मिला, सबको ये उपदेश

सास-ससुर का मानना, सभी तरह आदेश।

सभी तरह आदेश, काम घर के सब करना

दोनों घर की लाज, सदा माथे पर धरना।

कह ‘प्रशांत’ थी कठिन घड़ी, आंखों में पानी

ओझल हुई बरात, बची बस धूल निशानी।।131।।

-

रस्ते में रुकती हुई, पा स्वागत सत्कार

शुभ मुहूर्त पहुंचे सभी, अवधपुरी के द्वार।

अवधपुरी के द्वार, नगर था ऐसे सज्जित

इन्द्रलोक का वैभव भी हो जैसे लज्जित।

कह ‘प्रशांत’ सब नगर निवासी बाहर आये

चारों नवयुगलों पर इत्र-फूल बरसाये।।132।।

-

राजमहल की क्या कहें, था आनंद विभोर

सभी ओर था मच रहा, बस स्वागत का शोर।

बस स्वागत का शोर, रानियां सुध-बुध खोकर

एक झलक बहुओं की पाने को थीं आतुर।

कह ‘प्रशांत’ सब माताओं ने परछन कीन्हा

और नवल दम्पति को महलों में ले लीन्हा।।133।।

-

याचक थे जो भी वहां, दिया सभी को दान

आदर पा पुलकित हुए, साधु संत-विद्वान।

साधु संत-विद्वान, गुरु वशिष्ठ सत्कारे

विश्वामित्र आदि के भी फिर चरण पखारे।

कह ‘प्रशांत’ कुल रीति-नीति सारी अपनाई

गये शयन के लिए इस तरह चारों भाई।।134।।

-

दशरथजी के आंगना, जब से आये राम

तबसे दुनिया में बने, सबके बिगड़े काम।

सबके बिगड़े काम, ताड़का आदी मारे

हुआ यज्ञ निर्विघ्न, अहल्या को उद्धारे।

कह ‘प्रशांत’ कर धनुष भंग सीता घर लाये

बालकांड जो पढ़े-सुने, मंगल पद पाए।।135।।


-  विजय कुमार

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