Gyan Ganga: रामचरितमानस- जानिये भाग-14 में क्या क्या हुआ

FacebookTwitterWhatsapp

By आरएन तिवारी | Apr 15, 2025

Gyan Ganga: रामचरितमानस- जानिये भाग-14 में क्या क्या हुआ

श्री रामचन्द्राय नम:


पुण्यं पापहरं सदा शिवकरं विज्ञानभक्तिप्रदं

मायामोहमलापहं सुविमलं प्रेमाम्बुपूरं शुभम्।

श्रीमद्रामचरित्रमानसमिदं भक्त्यावगाहन्ति ये

ते संसारपतङ्गघोरकिरणैर्दह्यन्ति नो मानवाः॥


राम नाम की महिमा 

श्रद्धेय श्री तुलसीदासजी कहते हैं---- हे मानव ! यदि तू अपने जीवन को प्रकाशमय बनाना चाहता है, तो रामनाम का सहारा ले।

 

राम सुकंठ बिभीषन दोऊ। राखे सरन जान सबु कोऊ ॥

नाम गरीब अनेक नेवाजे। लोक बेद बर बिरिद बिराजे॥


श्री रामजी ने सुग्रीव और विभीषण दोनों को ही अपनी शरण में रखा, यह सब कोई जानते हैं, परन्तु नाम ने अनेक गरीबों पर कृपा की है। नाम का यह सुंदर विरद लोक और वेद में विशेष रूप से प्रकाशित है॥1॥

 

राम भालु कपि कटुक बटोरा। सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा॥

नामु लेत भवसिन्धु सुखाहीं। करहु बिचारु सुजन मन माहीं॥

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: रामचरितमानस- जानिये भाग-13 में क्या क्या हुआ

श्री रामजी ने तो भालू और बंदरों की सेना बटोरी और समुद्र पर पुल बाँधने के लिए थोड़ा परिश्रम नहीं किया, परन्तु नाम लेते ही संसार रूपी समुद्र सूख जाता है। सज्जनगण! आप मन में विचार कीजिए कि दोनों में कौन बड़ा है?

 

राम सकुल रन रावनु मारा। सीय सहित निज पुर पगु धारा॥

राजा रामु अवध रजधानी। गावत गुन सुर मुनि बर बानी॥

सेवक सुमिरत नामु सप्रीती। बिनु श्रम प्रबल मोह दलु जीती॥

फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें। नाम प्रसाद सोच नहिं सपनें॥


श्री रामचन्द्रजी ने कुटुम्ब सहित रावण को युद्ध में मारा, तब सीता सहित उन्होंने अपने नगर (अयोध्या) में प्रवेश किया। राम राजा हुए, अवध उनकी राजधानी हुई, देवता और मुनि सुंदर वाणी से जिनके गुण गाते हैं, परन्तु सेवक (भक्त) प्रेमपूर्वक नाम के स्मरण मात्र से बिना परिश्रम मोह की प्रबल सेना को जीतकर प्रेम में मग्न हुए अपने ही सुख में विचरते हैं, नाम के प्रसाद से उन्हें सपने में भी कोई चिन्ता नहीं सताती॥

 

ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।

रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि॥


इस प्रकार नाम (निर्गुण) ब्रह्म और (सगुण) राम दोनों से बड़ा है। यह वरदान देने वालों को भी वर देने वाला है। श्री शिवजी ने अपने हृदय में यह जानकर ही सौ करोड़ राम चरित्र में से इस 'राम' नाम को साररूप से चुनकर ग्रहण किया है॥


नाम प्रसाद संभु अबिनासी। साजु अमंगल मंगल रासी॥

सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी। नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी॥


नाम ही के प्रसाद से शिवजी अविनाशी हैं और अमंगल वेष वाले होने पर भी मंगल की राशि हैं। शुकदेवजी और सनकादि सिद्ध, मुनि, योगी गण नाम के ही प्रसाद से ब्रह्मानन्द को भोगते हैं॥

 

नारद जानेउ नाम प्रतापू। जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू॥

नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू। भगत सिरोमनि भे प्रहलादू॥


नारदजी ने नाम के प्रताप को जाना है। हरि सारे संसार को प्यारे हैं, हरि को हर प्यारे हैं और आप (श्री नारदजी) हरि और हर दोनों को प्रिय हैं। नाम के जपने से प्रभु ने कृपा की, जिससे प्रह्लाद, भक्त के शिरोमणि हो गए॥

 

ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ। पायउ अचल अनूपम ठाऊँ॥

सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥


ध्रुवजी ने ग्लानि से विमाता के वचनों से दुःखी होकर सकाम भाव से हरि नाम को जपा और उस नाम के प्रताप से अचल अनुपम स्थान ध्रुवलोक प्राप्त किया। हनुमान्‌जी ने पवित्र नाम का स्मरण करके श्री रामजी को अपने वश में कर रखा है॥

 

अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ। भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ॥

कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई। रामु न सकहिं नाम गुन गाई॥


भावार्थ:-नीच अजामिल, गज और गणिका (वेश्या) भी श्री हरि के नाम के प्रभाव से मुक्त हो गए। मैं नाम की बड़ाई कहाँ तक कहूँ, राम भी नाम के गुणों को नहीं गा सकते॥


नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।

जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु॥


कलियुग में राम का नाम कल्पतरु मन चाहा पदार्थ देने वाला है और कल्याण का निवास तथा मुक्ति का घर है, जिसको स्मरण करने से भाँग के समान निकृष्ट तुलसीदास तुलसी के समान पवित्र हो गया॥ 


चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका। भए नाम जपि जीव बिसोका॥

बेद पुरान संत मत एहू। सकल सुकृत फल राम सनेहू॥


केवल कलियुग की ही बात नहीं है, चारों युगों में, तीनों काल में और तीनों लोकों में नाम को जपकर सभी प्राणी और जीव शोकरहित हुए हैं। वेद, पुराण और संतों का मत यही है कि समस्त पुण्यों का फल श्री रामजी के नाम में ही है।

 

ध्यानु प्रथम जुग मख बिधि दूजें। द्वापर परितोषत प्रभु पूजें॥

कलि केवल मल मूल मलीना। पाप पयोनिधि जन मन मीना॥


पहले (सत्य) युग में ध्यान से, दूसरे (त्रेता) युग में यज्ञ से और द्वापर में पूजन से भगवान प्रसन्न होते हैं, परन्तु कलियुग केवल पाप की जड़ और मलिन है, इसमें मनुष्यों का मन पाप रूपी समुद्र में मछली बना हुआ है अर्थात पाप से कभी अलग होना ही नहीं चाहता, इससे ध्यान, यज्ञ और पूजन सुचारु रूप से नहीं सकता॥

 

नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला॥

राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता॥


ऐसे कराल (कलियुग के) काल में तो नाम ही कल्पवृक्ष है, जो स्मरण करते ही संसार के सब जंजालों को नाश कर देने वाला है। कलियुग में यह राम नाम मनोवांछित फल देने वाला है, परलोक का परम हितैषी और इस लोक का माता-पिता है अर्थात परलोक में भगवान का परमधाम देता है और इस लोक में माता-पिता के समान सब प्रकार से पालन और रक्षण करता है।

 

नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू॥

कालनेमि कलि कपट निधानू। नाम सुमति समरथ हनुमानू॥


कलियुग में न कर्म है, न भक्ति है और न ज्ञान ही है, राम नाम ही एक आधार है। कपट की खान कलियुग रूपी कालनेमि के (मारने के) लिए राम नाम ही बुद्धिमान और समर्थ श्री हनुमान्‌जी हैं॥

 

राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल।

जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल॥


राम नाम श्री नृसिंह भगवान है, कलियुग हिरण्यकशिपु है और जप करने वाले जन प्रह्लाद के समान हैं, यह राम नाम देवताओं के शत्रु (कलियुग रूपी दैत्य) को मारकर जप करने वालों की रक्षा करेगा॥


भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥

सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥


अच्छे भाव प्रेम से, बुरे भाव बैर से, क्रोध से या आलस्य से, किसी तरह से भी नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण होता है। उसी परम कल्याणकारी राम नाम का स्मरण करके और श्री रघुनाथजी को मस्तक नवाकर मैं रामजी के गुणों का वर्णन करता हूँ॥


शेष अगले प्रसंग में ------


राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।

सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥


- आरएन तिवारी

प्रमुख खबरें

बेंगलुरु में रहना है तो हिंदी में बात करो, ऑटो वाले को कहते वायरल हुआ युवक का वीडियो, सोशल मीडिया पर आ रही ऐसी प्रतिक्रिया

Delhi से Bengaluru तक बंद हुई BluSmart कैब की सेवाएं, Ola-Uber को मिलेगा बंपर फायदा

सभी विदेशियों को अपराधी मानने का दे रहा संदेश, अभिषेक मनु सिंघवी ने आव्रजन और विदेशी अधिनियम को लेकर उठाए सवाल

तीर्थयात्रा की Online Booking के नाम पर आपके साथ हो सकता है फ्रॉड, सरकार ने किया अलर्ट