वर्ष 2020 का रामनवमी का त्योहार कई मायनों में महत्वपूर्ण है। एक तो उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया है और दूसरा यह कि भगवान रामलला को टैंट से मुक्ति मिल गयी है। भगवान रामलला फाइबर से बने अस्थायी मंदिर में विराजमान हैं और भव्य मंदिर के निर्माण कार्य के पूरा होने तक यहीं स्थापित रहेंगे। भगवान राम की नगरी अयोध्या में इस वर्ष रामनवमी मेले पर भारी भीड़ उमड़ने वाली थी लेकिन कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई के लिए लागू किये गये लॉकडाउन के कारण श्रद्धालु इस बार नहीं पहुँच पा रहे हैं लेकिन राम नाम का जप पूरे भारतवर्ष में चल ही रहा है।
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को पड़ने वाली रामनवमी पूरे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनायी जाती है। देश के मंदिरों में इस दिन श्रीराम जन्मोत्सवों की धूम देखते ही बनती है। इस दिन नवरात्रि का अंतिम दिन होने के कारण मां दुर्गा की भी पूजा की जाती है और जगह जगह हवन, पूजन और कन्या पूजन किये जाते हैं। मान्यता है कि भगवान श्रीराम का जन्म मध्यान्ह काल में हुआ था इसीलिए इस दिन तीसरे प्रहर तक व्रत रखा जाता है और दोपहर में मनाया जाता है राम महोत्सव। इस दिन भगवान श्रीराम को पंचामृत से स्नान कराकर प्रसाद का भोग लगाकर आरती की जाती है। इस दिन व्रत रखकर भगवान श्रीराम और रामचरितमानस की पूजा करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
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मान्यता है कि इस दिन जो श्रद्धालु दिनभर उपवास रखकर भगवान श्रीराम की पूजा करते हैं तथा अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान−पुण्य करते हैं वह अनेक जन्मों के पापों को उतारने में समर्थ होते हैं। इस दिन पुण्य सलिला सरयू नदी में स्नान करके भी लोग पुण्य लाभ कमाते हैं।
भगवान श्रीराम के जन्म स्थान अयोध्या में इस त्यौहार की विशेष धूम रहती है। अयोध्या का रामनवमी पर लगने वाला चैत्र रामनवमी मेला काफी प्रसिद्ध है जिसमें देश भर से लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। इस दिन देश भर के मंदिरों से रथ यात्राएं और भगवान श्रीराम, उनकी पत्नी सीता, भाई लक्ष्मण व भक्त हनुमान की झांकियां भी निकाली जाती हैं। हालांकि इस बार बाहर तो उत्साह नहीं नजर आ रहा है लेकिन श्रद्धालुओं के मन में उत्साह बरकरार है और लोग अपने घरों पर पूरी श्रद्धा के साथ रामनवमी का त्योहार मना रहे हैं।
व्रत विधि
इस दिन व्रत रखने वालों को चाहिए कि वह प्रातः जल्दी उठ कर नित्यकर्म से निवृत्त होकर भगवान श्रीराम की मूर्ति को शुद्ध पवित्र ताजे जल से स्नान कराकर नये वस्त्राभूषणों से सज्जित करें और फिर धूप दीप, आरती, पुष्प, पीला चंदन आदि अर्पित करते हुए भगवान की पूजा करें। रामायण में वर्णित श्रीराम जन्म कथा का श्रद्धा भक्ति पूर्वक पाठ और श्रवण तो इस दिन किया ही जाता है अनेक भक्त रामायण का अखण्ड पाठ भी करते हैं। भगवान श्रीराम को दूध, दही, घी, शहद, चीनी मिलाकर बनाया गया पंचामृत तथा भोग अर्पित किया जाता है। भगवान श्रीराम का भजन, पूजन, कीर्तन आदि करने के बाद प्रसाद को पंचामृत सहित श्रद्धालुओं में वितरित करने के बाद व्रत खोलने का विधान है। रामनवमी के दिन मंदिर में अथवा मकान पर ध्वजा, पताका, तोरण और बंदनवार आदि से सजाने का विशेष विधान है।
व्रत कथा
राम, सीता और लक्ष्मण वन में जा रहे थे। सीता जी और लक्ष्मण को थका हुआ देखकर राम जी ने थोड़ा रुककर आराम करने का विचार किया और एक बुढ़िया के घर गए। बुढिया सूत कात रही थी। बुढ़िया ने उनकी आवभगत की और बैठाया, स्नान-ध्यान करवाकर भोजन करवाया। राम जी ने कहा- बुढिया माई, "पहले मेरा हंस मोती चुगाओ, तो मैं भी करूं।" बुढ़िया बेचारी के पास मोती कहां से आतो जोकि सूत कात कर गुजारा करती थी। अतिथि को ना कहना भी वह ठीक नहीं समझती थीं। दुविधा में पड़ गईं। अत: दिल को मजबूत कर राजा के पास पहुंच गईं और अंजली मोती देने के लिये विनती करने लगीं। राजा अचम्भे में पड़ा कि इसके पास खाने को दाने नहीं हैं और मोती उधार मांग रही है। इस स्थिति में बुढ़िया से मोती वापस प्राप्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता। आखिर राजा ने अपने नौकरों से कहकर बुढ़िया को मोती दिला दिये।
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बुढ़िया मोती लेकर घर आई, हंस को मोती चुगाए और मेहमानों की आवभगत की। रात को आराम कर सवेरे राम जी, सीता जी और लक्ष्मण जी जाने लगे। राम जी ने जाते हुए उसके पानी रखने की जगह पर मोतियों का एक पेड़ लगा दिया। दिन बीतते गये और पेड़ बड़ा हुआ, पेड़ बढ़ने लगा, पर बुढ़िया को कु़छ पता नहीं चला। मोती के पेड़ से पास-पड़ोस के लोग चुग-चुगकर मोती ले जाने लगे। एक दिन जब बुढ़िया उसके नीचे बैठी सूत कात रही थी। तो उसकी गोद में एक मोती आकर गिरा। बुढ़िया को तब ज्ञात हुआ। उसने जल्दी से मोती बांधे और अपने कपड़े में बांधकर वह किले की ओर ले चली़। उसने मोती की पोटली राजा के सामने रख दी। इतने सारे मोती देख राजा अचम्भे में पड़ गया। उसके पूछने पर बुढ़िया ने राजा को सारी बात बता दी। राजा के मन में लालच आ गया। वह बुढ़िया से मोती का पेड़ मांगने लगा। बुढ़िया ने कहा कि आस-पास के सभी लोग ले जाते हैं। आप भी चाहे तो ले लें। मुझे क्या करना है। राजा ने तुरन्त पेड़ मंगवाया और अपने दरबार में लगवा दिया। पर रामजी की मर्जी, मोतियों की जगह कांटे हो गये और लोगों के कपड़े उन कांटों से खराब होने लगे। एक दिन रानी की ऐड़ी में एक कांटा चुभ गया और पीड़ा करने लगा। राजा ने पेड़ उठवाकर बुढ़िया के घर वापस भिजवा दिया। पेड़ पर पहले की तरह से मोती लगने लगे। बुढ़िया आराम से रहती और खूब मोती बांटती।
- शुभा दुबे