हमेशा दबे-कुचलों की बुलंद आवाज रहे हैं रामनाथ कोविंद

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jun 20, 2017

लखनऊ। दलित-शोषित समाज की आवाज बुलंद करके भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में ऊंचा मुकाम हासिल करने वाले रामनाथ कोविंद को भाजपा-नीत राजग ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर एक 'मास्टर स्ट्रोक' खेला है। ऐसा इसलिये, क्योंकि ज्यादातर विपक्षी दल देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर किसी दलित को बैठाने का विरोध नहीं करना चाहेंगे। अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में शुरू से ही अनुसूचित जातियों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों तथा महिलाओं की लड़ाई लड़ने वाले कोविंद इस वक्त बिहार के राज्यपाल हैं। उन्हें आठ अगस्त 2015 को बिहार का राज्यपाल बनाया गया था।

भाजपा द्वारा साफ-सुथरी छवि और दलित बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना एक तरह से 'मास्टर स्ट्रोक' है। लगभग सभी दलों के सियासी गुणा-भाग में दलितों का अलग महत्व है। ऐसे में देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर दलित बिरादरी के व्यक्ति के चयन का विरोध करना किसी भी दल के लिये सियासी लिहाज से मुनासिब नहीं होगा। भाजपा दलित मोर्चा तथा अखिल भारतीय कोली समाज के अध्यक्ष रह चुके कोविंद भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता के तौर पर भी सेवाएं दे चुके हैं। वाणिज्य से स्नातक कोविंद बेहद कामयाब वकील भी रहे हैं। उन्होंने वर्ष 1977 से 1979 तक दिल्ली उच्च न्यायालय में जबकि 1980 से 1993 तक उच्चतम न्यायालय में वकालत की। सामाजिक जीवन में सक्रियता के मद्देनजर वह अप्रैल 1994 में राज्यसभा के लिये चुने गये और लगातार दो बार मार्च 2006 तक उच्च सदन के सदस्य रहे। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी युग के रामनाथ कोविंद उत्तर प्रदेश में भाजपा के सबसे बड़े दलित चेहरा माने जाते थे। कोविंद अगर राष्ट्रपति चुने जाते हैं तो वह उत्तर प्रदेश से पहले राष्ट्रपति होंगे। 

 

कानपुर देहात के घाटमपुर स्थित परौंख गांव में एक अक्तूबर 1945 को जन्मे कोविंद राज्यसभा सदस्य के रूप में अनेक संसदीय समितियों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। खासकर अनुसचित जाति-जनजाति कल्याण सम्बन्धी समिति, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता तथा कानून एवं न्याय सम्बन्धी संसदीय समितियों में वह सदस्य रहे। कोविंद ने वर्ष 1997 में केन्द्र सरकार द्वारा जारी आदेशों के अनुसूचित जाति-जनजाति के कर्मचारियों के हितों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के खिलाफ आंदोलन में भी हिस्सा लिया और उनके प्रयासों से वे आदेश अमान्य कर दिये गये। एक वकील के रूप में कोविंद ने हमेशा गरीबों और कमजोरों की मदद की। खासकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लोगों, महिलाओं, जरूरतमंदों तथा गरीबों की वह फ्री लीगल एड सोसाइटी के बैनर तले मदद करते थे। कोविंद लखनऊ स्थित भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के प्रबन्धन बोर्ड के सदस्य तथा भारतीय प्रबन्धन संस्थान कोलकाता के बोर्ड आफ गवर्नर्स के सदस्य भी रह चुके हैं। कोविंद ने संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है और अक्तूबर 2002 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा को सम्बोधित किया था।

 

सरल और सौम्य स्वभाव के कोविंद का कानपुर से गहरा रिश्ता है। भले ही वह इस समय वह बिहार के राज्यपाल हों लेकिन कानपुर से लगातार उनका जुड़ाव रहा है। यही कारण है कि वह समय समय पर उत्तर प्रदेश का दौरा करते रहे हैं।

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