लखनऊ। उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड ने आज राम जन्मभूमि-बाबरी मामले में विभिन्न अदालतों में उसकी तरफ से ‘फर्जी वकील’ खड़े किए जाने का आरोप लगाते हुए इसकी जांच की मांग की। शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘‘जहां तक यह बात कही जाती है कि शिया वक्फ बोर्ड इतनी देर से क्यों आया, तो बोर्ड को कभी भी किसी तरह की कोई (अदालती) कापी प्राप्त नहीं है। हमारी तरफ से वहां कोई जवाबदावा इसलिये दाखिल नहीं हुआ क्योंकि हमको मालूम ही नहीं था कि वहां हमारे नाम से भी कोई वकील खड़ा है।’’
रिजवी ने दावा किया, ‘‘जब 21 मार्च 2017 को अदालत ने कहा कि आपसी समझौते के लिये बातचीत की जाए, तब हमने सुन्नी वक्फ बोर्ड से भी बात की लेकिन वह इस बातचीत के प्रस्ताव से सहमत नहीं हुए। तब जब हम इसकी पेचीदगी में गये और फाइलों का मुआयना किया तो पाया कि शिया वक्फ बोर्ड मुकदमे में पक्षकार तो है लेकिन उसकी तरफ से जो वकील खड़े हैं उनको बोर्ड की तरफ से कोई वकालतनामा कभी नहीं दिया गया।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह जांच का विषय है कि शिया वक्फ बोर्ड यानी असली दावेदार को छुपाकर लड़ाई लड़ी जा रही थी। मैंने राज्य सरकार और केन्द्र सरकार से दरख्वास्त की है कि इस मुद्दे की जांच जरूर की जाए कि शिया वक्फ बोर्ड की तरफ से फर्जी वकील किसके कहने पर खड़ा किया गया। जब शिया वक्फ बोर्ड ने अपना वकील ना उच्च न्यायालय में खड़ा किया और ना उच्चतम न्यायालय में खड़ा किया तो शिया वक्फ बोर्ड के जो वकील खड़े थे, उनको किसने अधिकृत किया। यह सबसे बड़ा जांच का विषय है।’’
रिजवी ने बताया कि उन्होंने अयोध्या विवाद के हल के लिए शिया वक्फ बोर्ड द्वारा तैयार किया गया समझौता प्रस्ताव गत 18 नवंबर को उच्चतम न्यायालय में दाखिल कर दिया है। उन्होंने दावा किया कि शिया वक्फ बोर्ड की तरफ से जो फार्मूला पेश किया गया है वह दुनिया का सबसे बेहतरीन फार्मूला है।
इस बीच, बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जीलानी ने कहा कि रिजवी फर्जी वकील खड़ा करने का आरोप लगा रहे हैं। वही पता करें कि आखिर वे वकील कौन थे और उन्हें किसने खड़ा किया था। विभिन्न अदालतों में पैरवी के दौरान कम से कम उन्हें तो शिया वक्फ बोर्ड का कोई वकील नहीं दिखायी दिया।
रिजवी ने आरोप लगाया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड चाहता है कि अयोध्या मामले पर फसाद हो। उसे बातचीत के लिये आगे बढ़ना चाहिये था। उच्चतम न्यायालय के बातचीत के सुझाव पर जब वह आगे नहीं बढ़ा तो शिया वक्फ बोर्ड को आगे आना पड़ा। उन्होंने कहा कि शिया वक्फ बोर्ड बाबरी मस्जिद का संरक्षक होने के नाते उस जमीन से अपना अधिकार अपना दावा छोड़ रहा है। बोर्ड की मंशा है कि अयोध्या के बजाय लखनऊ के हुसैनाबाद इलाके में ‘मस्जिद-ए-अमन’ का निर्माण कराया जाए। शिया वक्फ बोर्ड ने इसके लिए सरकार से एक एकड़ जमीन के आवंटन की गुजारिश की है। विवादित स्थल पर उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के दावे को खारिज करते हुए रिजवी ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने सितंबर 2010 में दिए गए फैसले में जो एक तिहाई जमीन दी थी वह सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को नहीं बल्कि मुस्लिम पक्ष को दी थी।
उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय कह चुका है कि 26 फरवरी 1944 को बाबरी मस्जिद के सुन्नी वक्फ सम्पत्ति होने सम्बन्धी अधिसूचना गलत थी और चूंकि वर्ष 1945 तक शिया मुस्लिम को ही बाबरी मस्जिद का मुतवल्ली बनाया गया, लिहाजा यह शिया वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति है। बोर्ड अब इस सम्पत्ति से अपना दावा छोड़कर वहां मंदिर बनवाने पर राजी है।
बहरहाल, जीलानी ने रिजवी के इस दावे पर कहा कि उच्च न्यायालय का फैसला सबके सामने है। उसमें विवादित स्थल का एक हिस्सा निर्माही अखाड़े को, एक तिहाई हिस्सा रामलला को और बाकी एक तिहाई भाग सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड तथा अन्य सम्बन्धित मुस्लिम पक्षों को देने की बात है। उस मुकदमे में शिया वक्फ बोर्ड पक्षकार ही नहीं था। उन्होंने कहा कि जहां तक रिजवी द्वारा बाबरी मस्जिद से सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज किये जाने का सवाल है तो किसी भी अदालत ने बाबरी मस्जिद के सुन्नी वक्फ सम्पत्ति के रूप में पंजीयन को खारिज नहीं किया है। ऐसे में वह सुन्नी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति है और शिया वक्फ बोर्ड का उस पर कोई दावा नहीं है। प्रेस कांफ्रेंस में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण तय है और यह होकर रहेगा। उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि मुस्लिम पक्ष इस मुद्दे पर सौहार्द का माहौल बनाये।