उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव तक आंदोलन खींचना चाहते हैं राकेश टिकैत

By अजय कुमार | Feb 05, 2021

मोदी सरकार द्वारा पास नया कृषि कानून वापस लेने की मांग को लेकर चल रहा किसानों का धरना नित्य नये रंग बदल रहा है। कभी इसमें खालिस्तानियों की इंट्री हो जाती है तो कभी टुकड़े-टुकड़े गैंग वाले अपना एजेंडा लेकर आ जाते हैं। मोदो विरोधी नेताओं के लिए तो किसान आंदोलन किसी ‘नियामत’ से कम नहीं है। हर कोई किसानों की पीठ पर चढ़कर मोदी सरकार को चुनौती देने का ‘पराक्रम’ कर रहा है। 26 जनवरी की हिंसा से पूर्व तक जिस किसान आंदोलन की कमान पंजाब और हरियाणा के किसान और जाट नेता संभाले दिखते थे, वह अब हाशिये पर चले गए हैं। उनकी जगह गाजीपुर बॉर्डर पर धरना दे रहे भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के नेता राकेश टिकैत ने ले ली है, जो एक समय (26 जनवरी की घटना के बाद) धरना खत्म करने को तैयार हो गए थे, लेकिन ऐन वक्त पर राकेश टिकैत पलट गए और मीडिया के सामने रोते हुए मोदी सरकार पर किसानों के साथ किए जा रहे कथित अत्याचारों के आरोपों की झड़ी लगा दी। राकेश टिकैत ने रोते हुए घोषणा कर दी कि अब वह तब ही जल ग्रहण करेंगे जब गांव से किसान ट्रैक्टर में जल लेकर आएंगे।

इसे भी पढ़ें: ऐसे रची गई भारत को बदनाम करने की इंटरनेशनल साजिश, 26 जनवरी के तांडव का सीक्रेट डाॅक्यूमेंट लीक 

बस इसके बाद तो राकेश टिकैत की दसों उंगलियां घी में हो गईं। टिकैत के आंसू देखकर पश्चिमी यूपी के किसानों का दिल ऐसा पिघला कि राते के अंधेरे में ही किसानों का जत्था उनके गाँव और आसपास के जिलों से गाजीपुर बॉर्डर की तरफ कूच कर गया। मौके का फायदा उठाते हुए तमाम दलों के नेता भी टिकैत के सामने हाजिरी लगाने पहुंचने लगे। सबसे पहले आम आदमी पार्टी के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पहुंचे इसके बाद तो सभी सियासी दलों में होड़ सी लग गई। किसान आंदोलन की कमान संभाले जिन नेताओं ने अब तक सियासतदारों को अपने मंच से दूर रखा था, वह सियासतदार टिकैत के सहारे मोदी सरकार पर हुक्का-पानी लेकर चढ़ाई करने लगे, टिकैत इन नेताओं के बगलगीर बने हुए थे। मोदी को गालियां दी जा रही थीं। नया कृषि कानून वापस लेने की मांग को लेकर शुरू हुए किसान आंदोलन में अब मोदी विरोध के नाम पर देश का विरोध भी शुरू हो चुका था। कांग्रेस, सपा, बसपा, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता ही नहीं कांग्रेस के नेतृत्व वाली पंजाब, राजस्थान की सरकारें तक भूल गईं कि उनकी पहली वरीयता प्रदेश में अमन-चैन बनाए रखना है। ममता बनर्जी ने तो पश्चिम बंगाल विधान सभा में कृषि कानून के खिलाफ प्रस्ताव पास कर दिया। आश्चर्य यह नहीं कि कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा से लेकर ममता बनर्जी, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव जैसे तमाम नेता किसानों के पक्ष में ताल ठोंक रहे हैं। आश्चर्य की बात यह है कि पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार और वित्त मंत्री रह चुके पी चिदंबरम भी सब कुछ जानते-समझते हुए नये कृषि कानून की मुखालफत कर रहे हैं।


खैर, चिदंबरम के विरोध की वजह तो समझ में आती है, मोदी राज में ही उनको भ्रष्टाचार के चलते जेल जाना पड़ा थी, जिसकी कसक आज भी उनकी बातों में दिखाई देती है, लेकिन शरद पवार क्यों सच्चाई से मुंह मोड़ रहे हैं? यह सियासत के अलावा कुछ नहीं है। शरद पवार को अपनी सियासत बचाए रखने की चिंता ज्यादा है। नये कषि कानून के विरोध के नाम पर मचाए जा रहे हो-हल्ले का ही नतीजा है कि देश के बाहर बैठी शक्तियां भी सक्रिय हो गईं और किसान आंदोलन के समर्थन के नाम पर मोदी सरकार और देश को नीचा दिखाने का षड्यंत्र रच रही हैं। यह सब जानते-बूझते हुए भी राकेश टिकैत चुप्पी साधे बैठे हैं। वह हर उस शख्स के साथ खड़े होने से गुरेज नहीं कर रहे हैं जो उनकी सियासी महत्वाकांक्षाओं को परवान दे रहे हैं।

   

दरअसल, किसान आंदोलन की आड़ में राकेश टिकैत पश्चिमी यूपी में अपने विरोधियों को पटखनी देने के साथ-साथ सियासी जड़ें भी मजबूत करना चाहते हैं। राकेश टिकैत बहुत सोची-समझी रणनीति के तहत अपनी सियासी गोटियां बिछा रहे हैं। वह आंदोलन को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव तक खींचना चाहते हैं। टिकैत को यह पता है कि मोदी सरकार पूरी तरह से नया कृषि कानून वापस नहीं लेने वाली है। फिर भी टिकैत कानून वापस लेने की जिद्द करके समय पास कर रहे हैं। टिकैत एक मंझे हुए नेता हैं। उन्हें किसानों के नाम पर आंदोलन चलाने का लम्बा अनुभव है। कई बार वह इसके चलते जेल भी जा चुके हैं। अपने पिता महेन्द्र टिकैत से इतर राकेश टिकैत राजनीति में भी हाथ अजमाने से परहेज नहीं करते हैं। वह कई बार चुनाव भी लड़ चुके हैं, लेकिन सफलता कभी हाथ नहीं लगी। इस बार भी राकेश टिकैत किसान आंदोलन की आड़ में अपनी सियासी गोटियां बैठा रहे हैं। इसी के चलते टिकैत ने घोषणा कर दी है कि अक्टूबर तक उनका धरना-प्रदर्शन जारी रहेगा, इसके बाद भी सरकार ने नया कृषि कानून वापस लेने की मांग  नहीं मानी तो वह देश भर की यात्रा करेंगे। यानी नवंबर से टिकैत देश यात्रा के नाम पर अपनी सियासी जमीन तैयार करके योगी के बहाने मोदी को चुनौती देंगे। टिकैत को पता है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है। मोदी अगर केन्द्र की सत्ता पर काबिज हैं तो इसका श्रेय यूपी को जाता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से भरपूर समर्थन मिला था। राकेश इसी तिलिस्म को तोड़ना चाहते हैं।

इसे भी पढ़ें: अमरिंदर ने शपथ संविधान की ली थी मगर दंगाइयों की कानूनी पैरवी करवा रहे हैं

राकेश टिकैत ने कभी राजनीति से परहेज नहीं रखा। साल 2007 में पहली बार उन्होंने मुजफ्फरनगर की बुढ़ाना विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा जिसमें वह हार गये थे। उसके बाद टिकैत ने 2014 में अमरोहा लोकसभा क्षेत्र से चौधरी चरण सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा, पर वहाँ भी उनकी बुरी हार हुई। राकेश टिकैत को करीब से जानने वाले कहते हैं कि राकेश को यह पता है कि उनकी दो ताकत हैं किसान और खाप नामक सामाजिक संगठन, जिसमें टिकैत परिवार की काफी इज्जत है। अगले वर्ष होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत दिखाने के लिए ताल ठोंकने में लगे टिकैत 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी किसानों की ट्रैक्टर रैली को लेकर दिल्ली गेट तक आ गये थे। उस समय भी किसानों और दिल्ली पुलिस के बीच जबरदस्त टकराव हुआ था। उस समय टिकैत के आलोचकों ने कहा था कि भोले-भाले किसानों को लेकर राकेश टिकैत ने यह स्टंट अपनी राजनीतिक महत्वकाक्षाएं पूरी करने के लिए किया, जिसका किसानों के हित में कोई नतीजा नहीं निकला। राकेश टिकैत जाट समुदाय से आते हैं जिसके बारे में आम धारणा यही है कि यह बिरादरी लामबंद होकर वोटिंग करती है, इसीलिए तमाम दलों के नेता राकेश टिकैत के पीछे लगे हैं। इसीलिए तमाम दलों के नेता उनके यहां दस्तक दे रहे हैं।


-अजय कुमार

प्रमुख खबरें

Jammu-Kashmir के पुंछ जिले में बड़ा हादसा, खाई में गिरी सेना की गाड़ी, 5 जवानों की मौत

हाजिर हों... असदुद्दीन ओवैसी को कोर्ट ने जारी किया नोटिस, सात जनवरी को पेश होने का आदेश, जानें मामला

An Unforgettable Love Story: अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर विशेष

आरक्षण के मुद्दे का समाधान करें, अदालत पर इसे छोड़ना दुर्भाग्यपूर्ण : Mehbooba Mufti