वो लड़का जो दिल्ली की वीआईपी कोठियों में दूध बेचा करता था, वो युवा जिसने अपने करियर की शुरुआत में ही वायुसेना अध्यक्ष बनने का ख्वाब देखा था। वो पायलट जो राजनीतिक समर में उतरने के लिए चुनावी हलफनामा दाखिल करने पहुंचा था, लेकिन उससे पहले उसे एक और हलफनामा नाम बदलवाने का देना पड़ा। वो नेता जो संजय गांधी का भी करीबी रहा और राजीव गांधी का भी। वो सांसद जो 23 जून 1980 को संजय गांधी के साथ उड़ान भरने वाला था, लेकिन किसी वजह से नहीं जा सका। ठीक 20 साल बाद यही नेता एक सड़क दुर्घटना में गुजर जाता है। ये नेता जिनका बेटा आज की तारीख में राजस्थान की राजनीति में कांग्रेस के लिए सत्ता बरकरार रखने के लिए बड़ी चुनौती बन गया। वो नेता जिनका बेटा कभी राहुल गांधी का खास सिपहसालार माना जाता था। हम बात कर रहे हैं सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट की। ये राजेश पायलट के संघर्ष, चुनौती, उपलब्धि, बगावत, अदावत और फिर मौत की कहानी है। राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी जिन्हें पहचान मिली राजेश पायलट के नाम से। वो शख्स जिसने खेलने-कूदने की उम्र में ही कुछ कर गुजरने की ठान ली। राजेश पायलट का पूरा जीवन फर्श से अर्श तक का सफर तय करने की कहानी है।
राजेश पायलट एक जीवनी
राजेश पायलट का जन्म 10 फरवरी 1945 को गाजियाबाद के पास वैदपुरा गांव में एक साधारण किसान परिवार के घर में हुआ। उनका बचपन संघर्ष में बीता। 10 वर्ष की उम्र तक साधारण जीवन जीते राजेश्वर प्रसाद के परिवार पर संकट तब आया जब इनके पिता का आकस्मिक देहांत हो गया। परिवार में माता, विवाह योग्य दो बहनों और एक छोटे भाई का दायित्व इनके ऊपर आ गया। जिससे जिम्मेदारी की भावना बहुत कम उम्र में आ गयी । उस उम्र में पैदल कई किलोमीटर नंगे पैर चलते हुए भी शिक्षा पूरी करने की लगन और कुछ करने की चाहत लिए राजेश्वर प्रसाद को कुछ सालो के बाद गाँव छोड़कर दिल्ली आने का निर्णय लेना पड़ा, जहाँ उनके चचेरे भाई की दूध की डेरी थी ।
स्कूली दिनों दूध बेचा करते थे
राजेश्वर प्रसाद स्कलूी दिनों में दूध बेचा करते थे। राजेश सुबह जल्दी उठते , दूध निकालते और मंत्रियो की कोठी में दूध देने जाते फिर जल्दी आकर स्कूल भी जाते। इसी तरह शाम को भी दूध बाटकर फिर पढ़ने के लिए समय निकालते। दूध बेचने के साथ साथ राजेश्वर प्रसाद मंदिर मार्ग के म्यूनिसिपिल बोर्ड स्कूल में पढ़ाई भी कर रहे थे। ये वो कठिन समय था जब राजेश्वर प्रसाद को संघर्ष में लैंप पोस्ट के नीचे भी पढ़ाई करनी पड़ी । लेकिन ये पीछे नहीं हटे और दोनों बहनों की शादी करने के अलावा छोटे भाई को भी शिक्षा दिलवाई लेकिन दुर्भाग्यवश छोटे भाई की आकस्मिक म्रत्यु ने इनको अंदर से तोड़ दिया ।
वायुसेनाध्यक्ष बनने की ख़्वाहिश
परिवार की जिम्मेदारी संभालते और दूध सप्लाई का काम करते करते ही इन्होने अपनी ग्रेजुएशन पूरी की और सगे भाई से ज्यादा मानने वाले इनके चचेरे भाई नत्थी सिंह ने इनको पूरा सहयोग किया और ये एयर फ़ोर्स में भर्ती हो गये। वायु सेना में प्रशिक्षण के बाद वे लड़ाकू विमान के पायलट बने और फिर पंद्रह वर्षो की अथक मेहनत के बाद प्रमोशन पाकर स्क्वार्डन लीडर बने ! उन्होंने 1971 के भारत पाक युद्ध में भी भाग लिया और बहादुरी के लिए पदक भी मिला। अपने करियर की शुरुआत में वो वायुसेनाध्यक्ष बनने के ख़्वाब देखा करते थे। एक बार वायुसेनाध्यक्ष एयर चीफ़ मार्शल अर्जन सिंह को लोगों के सीने और कंधों पर विंग्स और स्ट्राइप्स लगाते देख राजेश पायलट ने कहा था कि एक दिन मैं इस पद पर पहुंचूंगा और मैं भी इनकी तरह लोगों के विंग्स और स्ट्राइप्स लगाउंगा।
राजेश्वर प्रसाद से पायलट
1980 के लोकसभा चुनाव के दौरान राजेश पायलट ने मन बनाया कि वो वायुसेना छोड़ कर लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। जिसके बाद उन्होंने वायुसेना की नौकरी छोड़ दी।राजेश पायलट की पत्नी रमा पायलट की किताब "राजेश पायलट-अ बायोग्राफ़ी" के अनुसार राजेश सीधे इंदिरा गांधी के पास जा कर बोले कि वो तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के ख़िलाफ़ बागपत से चुनाव लड़ना चाहते हैं। इंदिरा गाँधी ने कहा कि मैं आपको सलाह नहीं दूंगी कि आप राजनीति में आए। कांग्रेस (आई)की शुरू की लिस्ट में राजेश्वर प्रसाद का नाम नदारत था। तभी एक दिन फ़ोन की घंटी बजी। दूसरे छोर पर व्यक्ति ने कहा राजेश्वर प्रसाद हैं? राजेश किसी काम से बाहर गए हुए थे। उनकी पत्नी ने मना कर दिया। तभी सामने से फोन पर कहा गया कि उनसे कहिएगा कि उन्हें संजय गाँधी ने बुलाया है। कांग्रेस दफ़्तर पहुंचे तो संजय गांधी ने बताया कि आपके लिए इंदिराजी का संदेश है कि आपको भरतपुर से चुनाव लड़ना है। जब राजेश्वर प्रसाद भरत पुर पहुंचे तो वहां लोगों ने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि हमें तो कहा गया है कि कोई पायलट पर्चा दाखिल करने आ रहा है। बहुत समझाने की कोशिश की कि वो ही पायलट हैं, लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी। संजय गाँधी का फ़ोन आया। उन्होंने कहा कि सबसे पहले कचहरी जाओ और अपना नाम राजेश्वर प्रसाद से बदलवा कर राजेश पायलट करवाओ। जिसके बाद पायलट ने भरतपुर की सीट से वहां के राजपरिवार की सदस्य महारानी को हराकर पहला चुनाव जीता और इसी के साथ राजनीति की दुनिया में उन्होंने कदम रखा। इसके बाद उन्होंने कई चुनाव जीते और 1991 से 1993 तक टेलिकॉम मिनिस्टर रहे और 1993 से 1995 तक आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहे ।
संजय गांधी प्लेन हादसे से इस तरह बचे पायलट
22 जून 1980 की बात है संजय गांधी कहते हैं राजेश, हम कल सुबह उड़ेंगे। एक नई मशीन आई है पिट्स एस2 ए बहुत हल्की है। रंग भी चमकदार लाल। सुबह मिलते हैं सफदरदंग (एयरस्ट्रिप) पर। जवाब में राजेश पायलट बोलते हैं कल सुबह तो मेरठ से कुछ किसान मिलने आने वाले हैं। मुश्किल होगी। संजय गांधी ने दो टूक कहा वो सब मैं नहीं जानता, तुम्हें सुबह मिलना है। अगली सुबह राजेश पायलट किसानों से मुलाकात निपटा चुके होते हैं। पायलट जल्दी से निकलने के लिए खड़े होते हैं लेकिन ड्राइवर मौके से नदारद होता है। सड़क पर कोई टैक्सी भी नजर नहीं आई। मजबूरन नहीं चाहते हुए भी पायलट संजय गांधी के कहे की अनदेखी कर गए। लेकिन ये अनदेखी कुछ बड़ी अनहोनी का संदेश लेकर आने वाली थी। फोन की घंटी बजी और दूसरी तरफ संजय गांधी के बारे में सूचना थी। उनका प्लेन कुछ ही मिनट पहले क्रैश हो चुका था।
नब्बे के दशक के उस दौर में राजनीति, व्यापार, जासूसी, अंतरराष्ट्रीय संबंध, हथियारों की ख़रीद-फ़रोख़्त आदि गतिविधियों में किसी न किसी तरह से चंद्रास्वामी का नाम आ ही जाता था। दिलचस्प बात ये थी कि ऐसी कोई राजनीतिक पार्टी नहीं थी जिसमें चंद्रास्वामी के दोस्त न हों। उस दौर में बबलू श्रीवास्तव नाम के एक अंडरवर्ल्ड डॉन को केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) नेपाल से पकड़ कर दिल्ली लाई थी। सीबीआई से पूछताछ में बबलू श्रीवास्तव ने चंद्रास्वामी के दाऊद इब्राहिम से संबंध होने की बात कही थी। अगले दिन अख़बार में छपी ख़बर पढ़ते ही गृह राज्यमंत्री राजेश पायलट ने सीबीआई को चंद्रास्वामी की गिरफ़्तारी के आदेश दे दिए। 1995 के दौर में तांत्रिक चंद्रास्वामी जिसके सामने बड़े बड़े मंत्री और अधिकारीगण सर झुकाते थे और जिसे तत्कालीन पीएम पी वी नरसिम्हा राव का करीबी भी माना जाता था उसके खिलाफ जांच बैठाने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी उस वक्त पायलट ने कहा था कि चाहे मुझे जेल जाना पड़े लेकिन ये खेल ख़त्म होगा। पायलट ने उसके खिलाफ जांच बैठाई और उसे जेल भेज दिया।
राजेश पायलट ने कहा था- पार्टी में लोकतंत्र बनाए रखना जरूरी है
कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र के लिए ही उन्होंने 1997 में तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष सीताराम केसरी के खिलाफ चुनाव लड़ा। उनका कहना था कि पार्टी में लोकतंत्र बनाए रखना जरूरी है, इसीलिए मैं चुनाव लड़ रहा हूं। उनके साथ शरद पवार ने भी चुनाव लड़ा था, लेकिन ये दोनों ही चुनाव हार गए थे।
सोनिया गांधी के खिलाफ उतरे उम्मीदवार का दिया था साथ
वर्ष 2000 में जब सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाना था, तब पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए जितेंद्र प्रसाद ने चुनाव लड़ा था। राजेश पायलट उन नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने जितेंद्र प्रसाद का खुलकर साथ दिया और उनके लिए चुनाव प्रचार भी किया था।
पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बनाए रखने के लिए चुनाव होता है तो कोई बुराई नहीं
पायलट का कहना था कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बनाए रखने के लिए चुनाव होता है तो कोई बुराई नहीं है। इससे पार्टी मजबूत ही होगी। राजस्थान में उनके साथ रहे विजय गुप्ता बताते हैं कि पायलट अपनी बात खुलकर कहते थे। राजेश पायलट को भारतीय राजनीति में अभी बहुत कुछ करना था लेकिन मात्र 55 वर्ष की आयु में एक सड़क दुर्घटना में उनका असामयिक निधन हो गया। उस समय वो गाड़ी को खुद ड्राइव कर रहे थे।- अभिनय आकाश