Raja Ravi Varma Birth Anniversary: फादर ऑफ मॉडर्न इंडियन आर्ट कहे जाते हैं राजा रवि वर्मा, भारतीय इतिहास को बनाया था रंगीन

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By अनन्या मिश्रा | Apr 29, 2025

Raja Ravi Varma Birth Anniversary: फादर ऑफ मॉडर्न इंडियन आर्ट कहे जाते हैं राजा रवि वर्मा, भारतीय इतिहास को बनाया था रंगीन

आज ही के दिन यानी की 29 अप्रैल को भारतीय कला के इतिहास के सबसे महान चित्रकार और कलाकार राजा रवि वर्मा का जन्म हुआ था। राजा रवि वर्मा अपने समय के महान चित्रकारों में से एक थे। उन्होंने अपने समय के सभी राजाओं के दरबारों को अपनी चित्रकलाओं से सुशोभित किया था। उनके द्वारा बनाई गई भगवान की चित्रकारी हर घऱ और हर मंदिर में पहुंची। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर राजा रवि वर्मा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और परिवार

तिरुवनंतपुरम के किलिमानूर पैलेस में 29 अप्रैल 1848 को राजा रवि वर्मा का जन्म हुआ था। इनके सबसे पहले गुरु उनके चाचा राजराजा वर्मा थे। उस दौरान चित्रकारी सीखने वालों को शुरूआती पाठ के लिए समतल जमीन और चॉक दी जाती थी। इस पर अभ्यास करने के बाद ही उनको कागज और पेंसिल मिलती थी।

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तिरुवनंतपुरम में सीखी चित्रकला

उस दौरान बाजारों में रंग नहीं मिला करते थे, तब चित्रकार पौधों और फूलों से रंग तैयार करते थे। साल 1862 में  बाल कलाकार रवि वर्मा अपने चाचा के साथ पारंपरिक तरीके से चित्रकारी सीखने के लिए तिरुवनंतपुरम आए। यहां पर आयिल्यम तिरुनाल महाराजा से मिले, जिन्होंने उनको वहीं रहकर चित्रकला सीखने की सलाह दी। इस तरह से वह इटालियल पुनर्जागरण शैली में चित्रकला सीखने लगे।


बता दें कि पश्चिमी शैली की चित्रकला और ऑयल पेंटिंग तकनीक रवि वर्मा ने थियोडोर जेंसन से सीखी थी। थियोडोर जेंसन साल 1868 में त्रिवेंद्रम पैलेस आने वाले डच चित्रकार थे। महाराजा और राज परिवार के सदस्यों के चित्र रवि वर्मा ने नई शैली में बनाए और उनकी पेंटिंग 'मुल्लप्पू चूडिया नायर स्त्री' से वह फेमस हुए। वहीं साल 1873 में चेन्नई में आयोजित चित्र प्रदर्शनी में रवि वर्मा को प्रथम पुरस्कार मिला था। वहीं इस चित्रकला को ऑस्ट्रिया के विएना में एक प्रदर्शनी में पुरस्कृत किया गया था। उनकी पेंटिंग 'शकुंतला' को साल 1876 में पुरस्कृत किया गया था।


फादर ऑफ मॉडर्न इंडियन आर्ट

राजा रवि वर्मा को फादर ऑफ मॉडर्न इंडियन आर्ट के नाम से भी जाना जाता था। उनकी एक चित्रकला 130 से अधिक सालों बाद नीलाम हुई थी। उनकी यह पेटिंग 21.61 करोड़ रुपए में बिकी थी। इस उत्कृष्ट पेंटिंग का नाम 'द्रौपदी वस्त्रहरण' था। जिसमें महाभारत में महल में कौरवों और पांडवों से घिरी द्रौपदी की साड़ी उतारने के प्रयास को दिखाया गया है। उनकी कृतियाँ भारतीय सांस्कृतिक तत्वों को पश्चिमी कला के साथ खूबसूरती से मिश्रित करती हैं।


मृत्यु

वहीं 02 अक्तूबर 1906 को राजा रवि वर्मा ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था।

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