लो जी, मानसून आ गया। अब इस बारे कोई बहस नहीं होनी चाहिए कि यह मानसून ही है या मानसून से पहले आने वाला मानसून। मस्त बात यह है कि इससे पहले कि प्रशासन संभले, परम्परा के निमित प्रशासन ध्वस्त हो गया है। अभी तो बरसात संभालने के लिए हो सकने वाली सालाना बैठक भी आयोजित नहीं हो पाई है। गरमी इतनी ज़्यादा है कि पानी न मिलने की स्थिति में जगह जगह पानी के टैंकर भेजने का प्रबंध करने में ही सुबह से शाम हो रही है। अब बेचारा प्रशासन गरमी संभाले, बिजली की कमी संभाले, पानी की कमी संभाले या मानसून? बहुत मुश्किल काम है जी।
कितनी बार बैठक करने की सोची लेकिन ऐन समय पर बिजली चले जाने के कारण, अफसर छुट्टी पर होने के कारण या नेता न मिलने के कारण बैठक ध्वस्त करनी पडी। अब कितने ही राज्यों में ज़ोरदार बारिश हो रही है। अभी तो शहर, गांव और मोहल्ला प्रशासन ने नालियां भी साफ़ नहीं की जी। पुराना कचरा भी बिखरा पड़ा है। पिछली बारिश में खिसका मलबा अधूरा छोड़ दिया था, लगता था धीरे धीरे बह जाएगा और ठेकेदार, अफसर और नेताओं का लाभ सलामत रहेगा लेकिन बारिश तो मस्त होती है किसी से पूछकर नहीं आती और जब आती है तो प्रशासन ध्वस्त हो जाता है जी। यह राज़ की बात है कि बारिश आने से प्रशासन के तीन मुख्य अंगों यानी नेता, अफसर और ठेकेदार का बहुत फायदा होता है जी।
जहां कई साल से पानी नहीं बरसा, बरसात का पानी संग्रह करने की तमाम योजनाएं बह चुकी हैं, अतिरिक्त पानी रखने के लिए टैंक नहीं हैं, वहां जब अचानक बारिश होगी तो क्या होगा। प्रशासन ध्वस्त ही होगा जी। यहां तो स्मार्ट शहरों में भी गरमी के मौसम में पॉवर कट लगाने पड़ते हैं, बार बार झूठ बोलना पड़ता है कि बस अभी आधा घंटा में आ जाएगी। बिजली तो आती नहीं, आंधी और बारिश आ जाती है और स्मार्ट प्रशासन भी ध्वस्त हो जाता है।
जब बारिश नहीं होती तो सूखी खेती, उजडती फसलों को बचाने के लिए अपने अपने खास देवताओं को पटाकर बारिश करवाने के लिए हवन यज्ञ करने की रिवायत है। किसी बड़े नेता ने, बड़े आयोजन, उत्सव या उदघाटन में आना हो तो स्थानीय नेता अपने आराध्य से निवेदन करते हैं कि बारिश न करें जी। बारिश की ज़रूरत न हो तो रुकवाने के लिए हवन करते हैं जी। ऐसे में उपरवाला विमूढ़ होकर मस्त बारिश करता है और ध्वस्त प्रशासन होता है जी।
- संतोष उत्सुक