लगातार तीन बार लोकसभा चुनावों में हार के बावजूद कांग्रेस का अल्पसंख्यकों के प्रति मोह कम नहीं हुआ है। कांग्रेस ने लोकसभा सहित चार राज्यों के विधानसभा चुनावों मेें तीन में करारी शिकस्त खाने के बावजूद कोई सबक नहीं सीखा है। कांग्रेस बयानों के जरिए यह साबित करने पर तुली हुई कि वह सही मायने अल्पसंख्यकों की खैरख्वाह है। ऐसी राजनीति की कीमत कांग्रेस को चुकानी पड़ी है। दो दशक पहले तक दबे-छिपे तरीके से हिन्दुओं की बात करने वाली भाजपा खुल कर सामने आ गई। इससे देश में हिन्दू-मुस्लिम मतदाताओं का स्पष्ट धु्रवीकरण नजर आता है। अल्पसंख्यकों की हितैषी साबित करने के लिए कांगेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अमरीका में सिक्खों की भारत में सुरक्षा को लेकर बयान देकर संगठन को मुश्किल में डाल दिया। पहले मुसलमानों और अब सिक्खों को लेकर दिए गए बयान से कांग्रेस भाजपा के निशाने पर आ गई। राहुल गांधी के बयान से खालिस्तान की मांग करने वाले पृथक्तावादी संगठन के प्रमुख गुरुपंत सिंह पन्नू को जहर उगलने का मौका मिल गया।
राहुल गांधी ने कहा था कि वो अल्पसंख्यकों को उनका हक़ दिलाने और उनको बैखौफ होकर जीने की आजादी दिलाने के लिए लड़ रहे हैं, उनकी लड़ाई इस बात की है कि भारत में सिखों को पगड़ी बांधने में डर न लगे, कड़ा पहनने से कोई न रोके, वे गुरुद्वारों में बेखौफ होकर जा सकें। इसके बाद खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने राहुल गांधी के बयान को बिल्कुल सही बताया। जो बात राहुल गांधी कह रहे हैं, वो बात पन्नू भी मानता है। राहुल और उसकी लाइन एक है। राहुल गांधी की खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने तारीफ कर दी। पन्नू ने एक बयान जारी करके कहा कि राहुल गांधी ने सिखों के बारे में जो कुछ बोला, उसमें खालिस्तान समर्थक संगठन 'सिख फॉर जस्टिस' की बात का समर्थन है। बड़ी बात ये है कि राहुल गांधी की बात को उस सिख नौजवान भलिंदर सिंह ने भी गलत बताया जिसका नाम पूछ कर वॉशिंगटन में राहुल ने भारत में सिखों की स्थिति के बारे में गलतबयानी की थी। भलिंदर सिंह विरमानी ने खुद सोशल मीडिया पर अपना वीडियो पोस्ट करते हुए कहा कि राहुल गांधी ने उनका नाम पूछकर सिखों को लेकर जो कमेंट किया, वो पूरी तरह गलत था। भलिंदर सिंह ने कहा कि वो खुद भारतीय हैं, कुछ दिनों के लिए अमेरिका आए हैं, उन्होंने भारत में कभी नहीं देखा कि किसी सिख को पगड़ी पहनने या कड़ा पहनने से रोका गया हो या किसी को गुरुद्वारे जाने में कोई दिक्कत हुई हो।
देश में सिक्खों को लेकर प्यू रिसर्च सेंटर की सर्वे रिपोर्ट 2021 में प्रकाशित हुई थी। प्यू रिसर्च सेंटर ने यह सर्वे 2019 से 2020 के बीच कराया था। इस सर्वे में महज 14 फीसदी सिखों ने ही माना था कि भारत में सिखों के साथ भेदभाव होता है। मगर अधिकतर सिखों का मानना था कि उन्हें भारत में कोई भेदभाव नहीं दिखता। इस रपोर्ट के मुताबिक, करीब 95 फीसदी सिख खुद को भारतीय होने पर बहुत गर्व करते हैं। इतना ही नहीं, बहुमत यानी 70 फीसदी सिखों का मानना है कि जो व्यक्ति भारत का अनादर करता है, वो सिख हो ही नहीं सकता।
वॉशिंगटन डीसी में राहुल गांधी ने दुनिया भर में भारत-विरोधी प्रचार करने वाली अमेरिकी सांसद इल्हान उमर से मुलाकात की। इल्हान उमर डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता हैं, वो खुले तौर पर पाकिस्तान की हिमायती हैं, हर मंच पर भारत का विरोध करती हैं। राहुल गांधी अमेरिकी सांसदों के जिस प्रतिनिधिमंडल से मिले, उसमें इल्हान उमर को खासतौर पर बुलाया गया था। इल्हान उमर वही हैं, जिन्होंने 2022 में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जाकर कहा था कि कश्मीर पर भारत का कोई हक़ नहीं है, भारत को कश्मीर छोडऩा ही पड़ेगा। जून 2023 में इल्हान उमर अमेरिका की संसद में भारत के खिलाफ एक प्रस्ताव लेकर आई थीं, जिसमें अमेरिकी विदेश मंत्रालय से अपील की गई थी कि वह भारत को एक ऐसा देश घोषित करे जहां पर धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होता है, जहां मुसलमान सुरक्षित नहीं है। कांग्रेस के नेताओं के पास इस बात का भी जवाब नहीं है कि राहुल गांधी पाकितान समर्थक इल्हान उमर से क्यों मिले? इल्हान तो हमेशा से भारत के खिलाफ रही हैं। कांग्रेस ने हमेशा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग माना है। अनुच्छेद 370 पर राहुल गांधी का ढुलमुल रवैया रहा है। राहुल गांधी जम्मू कश्मीर के दौरे पर पार्टी नेताओं का फीडबैक लेने पहुंचे थे, तब भी वे अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर साइलेंट मोड में दिखे थे। हालांकि कांग्रेस जिस दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही उसका इस मुद्दे पर मत कुछ अलग है। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने घोषणा पत्र में साफ कर दिया है कि अगर हमारी सरकार बनती है तो अनुच्छेद 370 और 35 ए की बहाली की जाएगी। हालांकि नेशनल कान्फ्रेंस किस आधार पर अनुच्छेद 370 की वापसी की बात कर रही है वो समझ से परे है। क्योंकि यह साधारण सी बात है कि केंद्र में सत्ता मिलने पर ही अनुच्छेद 370 की वापसी संभव हो सकती है। जाहिर सी बात है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस को केंद्र में बहुमत नहीं मिलने जा रहा है।
धारा ३७० की तरह सीएए पर भी राहुल गांधी का रुख बदलता रहा है। वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने सिटिजनशिप अमेंटमेंट एक्ट लागू किया। कांग्रेस ने दिसंबर 2019 में सीएए के खिलाफ कांग्रेस बहुत बड़ा प्रदर्शन आयोजित किया। जिसमें सोनिया गांधी, पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और राहुल गांधी सहित सैकड़ों पार्टी समर्थक राजघाट पर सत्याग्रह पर बैठे थे। लेकिन सीएए लागू होने के बाद चुनावों को देखते हुए कांग्रेस और राहुल गांधी इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली थी। लोकसभा चुनावों के दौरान केरल में सीएए एक बहुत बड़ा मुद्दा था। केरल के कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यमंत्री पिनराय विजयन चुनाव अभियान के दौरान लगातार यह साबित करने में लगे रहे कि राहुल गांधी सीएए पर क्यों नहीं बोल रहे हैं।
कांग्रेस और राहुल गांधी ने मौके-बेमौके अल्पसंख्यकों को लेकर गहरी चिंता जताई है, किन्तु कांग्रेसशासित राज्यों में अल्पसंख्यकों के भले के लिए क्या अतिरिक्त प्रयास किए गए, इसका खुलासा कभी नहीं किया गया। तीन तलाक के मुद्दे पर कांग्रेस और राहुल गांधी ने केंद्र की भाजपा सरकार का जमकर विरोध किया। जबकि तीन तलाक के मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इसे लागू करने का निर्णय लिया था। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक माफिया और गैंगस्टरों के मामलों में भी कांग्रेस का रवैया सहानुभूतिपूर्ण रहा है। इंडिया गठबंधन के घटक दल समाजवादी पार्टी ने तो खुलकर इन गैंगस्टर्स का खुलकर समर्थन ही नहीं किया बल्कि सत्ता में रहने के दौरान बहुजन समाज पार्टी और सपा ने मंत्री पद तक के ओहदे से नवाजा था। कांग्रेस को यह समझना होगा कि क्षेत्रीय दलों का जनाधार सीमित है, जबकि कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल होने के साथ राष्ट्रीय पार्टी है। ऐसे में अल्पसंख्यकों को रिझाने की राजनीति से भाजपा को धु्रवीकरण का मौका मिलता रहेगा।
- योगेन्द्र योगी