जैसे परीक्षा आने पर बच्चा बाहर घूमने निकल जाये, वैसे ही चुनाव आने पर राहुल गांधी घूमने निकल गये हैं

By राकेश सैन | Feb 05, 2024

पंजाबी में कहावत है- ‘बुहे आई जन्न, विन्नो कुड़ी दे कन्न’ अर्थात दरवाजे पर बारात आने पर लड़की के कान बींधना साधारण शब्दों में कहें तो असमय कार्य करना। हिन्दी में इसकी समानार्थी कहावत है ‘फेरों के समय जूएं देखना’, कांग्रेस के साथ आजकल यही कुछ होता दिख रहा है, आम चुनाव सिर पर हैं और पार्टी जुटी है न्याय यात्रा में। स्कूली भाषा में बोलें तो फाइनल परीक्षा के समय एजुकेशनल टूअर पर निकलना। देखने में आ रहा है कि इस यात्रा में न केवल कांग्रेस बल्कि वह ‘इण्डी गठजोड़’ भी भटकता और झटके खाता नजर आ रहा है जो अभी भ्रूण अवस्था में भी नहीं आया है।


कांग्रेस नेता राहुल गांधी की दूसरी यात्रा 14 जनवरी को मणिपुर से शुरू हुई और 20 मार्च को मुम्बई में संपन्न होगी। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हो रही यह यात्रा 67 दिन में 6713 किलोमीटर लम्बा सफर तय करने के लिए देश के 15 राज्यों के 110 जिलों और 100 लोकसभा क्षेत्रों से गुजरेगी। यह राहुल गांधी की दूसरी यात्रा है। इससे पहले उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी, जो 7 सितंबर, 2022 को कन्याकुमारी से शुरू हो कर 30 जनवरी, 2023 को कश्मीर में संपन्न हुई। 136 दिन की उस यात्रा में 12 राज्यों और दो केन्द्र शासित प्रदेशों के 75 जिलों और 76 लोकसभा क्षेत्रों से गुजरते हुए चार हजार किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय किया गया था। पहली यात्रा पदयात्रा ही थी, जबकि न्याय यात्रा में हर दिन आठ से दस किलोमीटर पैदल चल कर शेष सफर विशेष वाहनों से तय किया जाएगा। राहुल की इस नई यात्रा का राजनीतिक आकलन तो लोकसभा चुनाव के बाद ही हो पाएगा लेकिन पहली यात्रा को एक नजरिए से देखें तो उसका परिणाम मिलाजुला रहा। कर्नाटक और तेलंगाना विधानसभा चुनावों में कांग्रेस जीत गई तो राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उसे करारी हार झेलनी पड़ी।

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कांग्रेस को विश्वास है कि अबकी बार न्याय यात्रा परिवर्तनकारी साबित होगी। राहुल गांधी की इन दो यात्राओं के बीच एक बड़ी घटना यह हुई है कि दो दर्जन से भी ज्यादा विपक्षी दल मिल कर नया ‘इंडि गठबंधन’ बना चुके हैं। लेकिन इस बार की यात्रा में सबसे बड़ी चूक साबित हो सकती है इसका समय, पहली यात्रा के समय देश के कुछ राज्यों में ही विधानसभा चुनाव होने थे परन्तु अब इस यात्रा के समय आम चुनाव होने हैं जो हर राजनीतिक दल के लिए जीवन-मरन का प्रश्न माने जाते हैं। अभी सबसे बड़ा सवाल न्याय यात्रा के समय को लेकर ही उठ रहा है। मार्च के दूसरे पखवाड़े में जब यह यात्रा संपन्न होगी, तब तक शायद देश में लोकसभा चुनाव के कार्यक्रम घोषित हो चुके होंगे या होने वाले होंगे। ऐसे में फरवरी और मार्च के महीने कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव की तैयारी के हिसाब से महत्वपूर्ण समय है। ऐसे समय पार्टी की पूरी ऊर्जा केवल यात्रा के आयोजन और उससे जुड़े विवादों से जूझने में लग जाए, यह राजनीतिक आत्महत्या करने जैसा होगा।


यात्रा में केवल कांग्रेस ही नहीं भटकी लगता है वह 'इंडि गठजोड़’ भी भटकता और झटके खाता दिख रहा है जो अभी भ्रूण अवस्था में भी नहीं आया। सभी जानते हैं कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एकला चलो का राग अलाप चुकी हैं तो देश की नई-नई परन्तु अति महत्वाकांक्षी आम आदमी पार्टी पंजाब, हरियाणा व दिल्ली में कांग्रेस के साथ समझौते से लगभग इंकार कर चुकी है। 'इंडि गठजोड़’ को सबसे करारा झटका दिया है बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने जो कहां तो कल तक खुद को इस गठजोड़ का संयोजक मान कर चल रहे थे और अब वे भाजपा के पाले में पलटी मार चुके हैं। केवल इतना ही नहीं गठजोड़ के अन्य दलों में भी इसके भविष्य को लेकर संदेह पैदा होने लगा है।


फरवरी का महीना शुरू हो चुका है, 'इंडि गठजोड़’ की सफलता के लिए अभी तक संयोजक का नाम तय और सीटों के बंटवारे पर बातचीत का काम पूरा हो जाना चाहिए था, परन्तु कांग्रेस के लिए ये कार्य अभी बहुत दूर की कौड़ी लगती है। 'इंडि गठजोड़’ के ही अभी तक सहयोगी माने जाने वाले दल तृणमूल कांग्रेस के शासन वाले बंगाल में राहुल गांधी की यात्रा पर हुई कथित पत्थरबाजी बताती है कि इस यात्रा के लिए गठजोड़ के सहयोगी दलों को न तो विश्वास में लिया गया और न ही उनका सहयोग मांगा गया। इतनी दयनीय स्थिति में भी कांग्रेस का अहं अभी गया नहीं लगता, उसे लगता है कि गठजोड़ में केवल वही एकमात्र दल है जिसकी उपस्थिति देशव्यापी है। तभी तो अपने संभावित सहयोगी दलों को यात्रा से दूर रखा गया। एक तरफ अहं जहां गठजोड़ में बाधा बनता दिख रहा है वहीं यात्रा का बेमौसमी आयोजन कांग्रेस को भी भटका रहा है।


कुछ विश्लेषक मानते हैं कि न्याय यात्रा कांग्रेस के लिए शेर की सवारी हो गई है, जिसको न तो जारी रखना और न ही बीच में छोड़ना खतरे से खाली है। पार्टी की सारी शक्तियां अप्रत्यक्ष रूप से राहुल गांधी के हाथों में सीमित हैं तो यात्रा का नेतृत्व भी वही कर रहे हैं। राहुल की अनुमति के बिना न तो पार्टी के अन्य नेता संगठन को लेकर कोई निर्णय कर पा रहे हैं और न ही राहुल गांधी को इसके लिए समय मिल रहा है। यही दुविधा कांग्रेस को भटका रही है और 'इंडि गठजोड़' को झटके दे रही है। चुनाव सिर पर आ चुके हैं, श्रीराम मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा से कमण्डल, पिछड़ा वर्ग के महानायक माने जाने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दे कर मण्डल साधने और ‘'इंडि गठजोड़’ के स्तम्भ नीतिश कुमार को साध कर भाजपा ने बड़ी बढ़त हासिल कर ली है, उससे कांग्रेस के नेतृत्व को इस बारे अवश्य सोचना चाहिए कि यात्रा पार्टी के भले के लिए निकालनी है या भटकने के लिए।


-राकेश सैन

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