राहुल गांधी और रातों-रात उड़न छू हो जाने वालों से उनके मीठे सौदे

By अरुण जेटली | Apr 04, 2019

राजनीतिक दल और नेता फंड कहां से लाते हैं? भारतीय राजनीतिक दलों को पहले फंड काले धन के जरिये मिलता था। कई दलों ने कानून में बदलाव होने के कारण टैक्स दिए गए धन को लेना शुरू कर दिया है और वे चेक य़ा फिर इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिये चंदा ले रहे हैं।

 

लेकिन यह उस सवाल का पूरा जवाब नहीं है। कितने राजनीतिज्ञ हैं जो बिना किसी तरह के आय का स्रोत बताए आरामदेह जीवन जी रहे हैं? नेहरू-गांधी परिवार को उसके समर्थक भारत का पहला परिवार मानते हैं। इसलिए यह एक रोल मॉडल भी होना चाहिए। पंडित मोती लाल नेहरू ने वकालत आज से 98 साल पहले छोड़ दी थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू एक बहुत बड़े नेता थे जिन्होंने एक वकील की तरह कभी प्रैक्टिस नहीं किया और न ही उनकी बिटिया श्रीमती इंदिरा गांधी ने किसी तरह की नौकरी की या व्यवसाय किया। स्वर्गीय राजीव गांधी थोड़े समय के लिए इंडियन एयरलाइंस में पायलट थे। उसके बाद वे पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हो गए। अभी तक प्राप्त जानकारी में न तो श्रीमती सोनिया गांधी और न ही श्री राहुल गांधी ने कभी घर चलाने के लिए कोई काम किया।

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इस परिवार की कई पीढ़ियों ने किसी भी तरह के व्यावसायिक कार्य से कोई पैसा कभी नहीं कमाया। राजनीति में ज्यादातर लोग अपने व्यवसायिक कार्यों को त्याग देते हैं और मितव्ययी जीवन जीते हैं। नेहरू-गांधी परिवार के ज्यादातर लोगों ने चार पीढ़ियों तक विदेशों में पढ़ाई की है। इनमें से किसी ने कोई विशिष्ट प्रदर्शन नहीं किया। सिर्फ पंडित जवाहर लाल एक अपवाद थे। सभी ने बेहद आरामदेह जीवन जिया। उन्होंने कई देश और विदेशों के सुंदर स्थानों पर छुट्टियां भी मनाईं।


खुलासा

 

कुछ मीडिया संस्थानों ने खुलासा किया कि इस परिवार के पास दक्षिण दिल्ली में एक फार्म हाउस है जिसका मालिकाना हक वर्तमान पीढ़ी के दोनों भाई-बहन के पास है। जब यूपीए सत्ता में थी तो जिन्हें मदद चाहिए होती थी वे उसे अल्पकाल के लिए किराये पर ले लेते थे। इस तरह से पूंजी बनाने का एक काम शुरू हुआ। मकान मालिक को उपकृत करने के लिए किराये एडवांस में दे दिए जाते थे। यह भी नामुमकिन है कि किरायेदारों ने कभी दिल्ली में रहना चाहा होगा क्योंकि उनका कोई बिज़नेस दिल्ली में नहीं था। उन्होंने न केवल किराये की बड़ी रकम एडवांस में दी बल्कि उन्होंने उन कर्मचारियों को वेतन भी दिया जो उस संपत्ति की देखभाल करते थे। इन किरायेदारों से एडवांस में मिली रकम से पूंजी बनती गई। इस तरह से प्राप्त करोड़ों रुपए की पूंजी का निवेश संदेह से घिरी एक रियल एस्टेट कंपनी में किया गया। इसमें जैसे ही प्रस्तावित खरीदार ने संपत्त्ति खरीदने के लिए एडवांस दिया तो उसे पैसा एक “सुनिश्चित आय कार्यक्रम” के तहत सालाना तौर पर वापस दे दिया गया। इस तरह से उसे अपने निवेश का बड़ा हिस्सा मिल गया और रियल एस्टेट भी।

 

किरायेदारों में एक एफटीएल के जिग्नेश शाह थे और दूसरे रियल एस्टेट डेवलपर मेसर्स यूनिटेक बिल्डर के संजय चन्द्रा हैं। इस तरह के “मीठे सौदे” में उनके सिवा कौन संलिप्त होगा जो रातों-रात उड़न छू हो जाने वाले ऑपरेटर जिन्हें सरकार का संरक्षण चाहिए?

 

ऐसे सवालिया सौदों के जरिये जनता के हितों से समझौता

 

“मीठे सौदों” में भागीदारी करने वाले इसके किरायेदार बने जिससे काफी आशंकाएं पैदा हुईं। लेकिन ऐसे लोगों में जिग्नेश शाह का क्या हुआ? उनके पास दो कंपनियां थीं-एक वह जिसमें बड़े पैमाने पर संपत्ति थी और दूसरी वह जिसने हजारों निवेशकों को ठगा था। उन निवेशकों ने केन्द्र सरकार से आग्रह किया था कि दोनों कंपनियों का विलय किया जाए और उस संपत्ति से ठगे गए निवेशकों को पैसा लौटाया जाए। 2014 तक य़ूपीए सरकार ने किसी तरह की कार्रवाई नहीं की। राजनीतिक इक्विटी में निवेश करने का यहां फायदा मिला। यह नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ही थी जिसने दोनों कंपनियों को मिलाने का आदेश पारित किया जिसे मुंबई हाई कोर्ट ने वैध ठहाराया और अब यह चुनौती दिए जाने के कारण सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अगर सरकार जीत गई तो निवेशकों को उनका पैसा मिल जाएगा। चोर पकड़ने के लिए आपको एक चौकीदार चाहिए। यूनिटेक के बारे में जो कहा जाए वह कम है। 2जी के समय में भी उन्हें फायदा पहुंचाने का काम किया गया, फ्लैट खरीदने की इच्छा रखने वालों को ठगा गया और उनका पैसा गायब कर दिया गया। बैंकों को पैसा नहीं लौटाया गया। उसके प्रमोटर जिनमें से एक ने राहुल गांधी के साथ एग्रीमेंट किया था, अभी जेल में बंद हैं। मीठे सौदे के तहत ज्यादातर किस्तें एश्योर्ड इनकम स्कीम के जरिये लौटा दी गई थीं। मीठे सौदे के जरिये पूंजी का निर्माण राहुल गांधी ने ठीक वैसे ही किया जैसे उनके बहनोई ने किया।

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यहां एक ऐसे व्यक्ति हैं जो बिना किसी के आधार के आरोप लगाते रहते हैं। यह जानना कि वे किससे मेल मिलाप कर रहे हैं, कोई रॉकेट सांइस नहीं है। वे भारत के प्रधान मंत्री बनने की आकांक्षा रखते हैं। ऐसी आकांक्षाएं संदेह से परे होनी चाहिए। दागी हाथों से उन्हें यह याद रखना चाहिए कि जिनके मकान शीशे के होते हैं वे दूसरों के मकानों पर पत्थर नहीं फेंकते। “चौकीदार” ने आखिरकार एक “चोर” पकड़ ही लिया है।

 

-अरुण जेटली

(लेखक केंद्रीय वित्त मंत्री हैं)

 

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