Rabindranath Tagore Death Anniversary: साहित्य में नोबेल पुरस्कार पाने वाले वह पहले गैर यूरोपीय थे रबींद्रनाथ टैगोर

By अनन्या मिश्रा | Aug 07, 2024

भारत और बंगाल के बहुमखी प्रतिभासंपन्न विद्वान गुरुदेव रबींद्रनाथ ठाकुर का 07 अगस्त को निधन हो गया था। वह एक लेखक, कवि, संगीतकार, नाटककार, चित्रकार, दार्शनिक, संगीतकार और समाज सुधारक थे। टैगोर ने बंगाल के साथ साथ भारतीय संस्कृति, कला और संस्कृति को नए आयाम देने का काम किया था। रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाओं की ख्याति न सिर्फ देश बल्कि यूरोप तक जा पहुंची थी। बता दें कि साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले वह पहले गैर यूरोपीय बने थे। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर रबींद्रनाथ टैगोर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और शिक्षा

कोलकाता के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में 07 मई 1861 को रबींद्रनाथ ठाकुर का जन्म हुआ था। शुरूआती शिक्षा पूरी करने के बाद वह बैरिस्टर बनने इंग्लैंड गए। वहां पर उन्होंने ब्रिजस्टोन पब्लिक स्कूल के बाद लंदन विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई की। लेकिन फिर वह बिना डिग्री वापस लिए भारत वापस आ गए।

इसे भी पढ़ें: Bal Gangadhar Tilak Death Anniversary: बाल गंगाधर तिलक को कहा जाता है भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का 'जनक'

लेखन और काव्य

बता दें कि महज 8 साल की उम्र से टैगोर ने पहली कविता लिखी थी। वहीं 16 साल की उम्र में उनकी कविता का संकलन छप गया था। फिर उन्होंने छोटे नाटकों और कहानियां का संकलन अपने नाम से छपवाना शुरू कर दिया था। टैगोर की अनेक रचनाओं ने बांग्ला साहित्य को नई ऊंचाइयां प्रदान की। इनमें गोरा, गीतांजली और घरे बाइरे काफी फेमस और प्रसिद्ध रही थीं।


संगीत से जुड़ाव

रबींद्रनाथ टैगोर ने न सिर्फ भारत व बांग्लादेश का राष्ट्रगान लिखा और उसे संगीतबद्ध किया, बल्कि श्रीलंका का राष्ट्रगान भी टैगोर की रचना से प्रेरित है। टैगोर ने लेखन के अलावा खुद लिए 2230 गीतों को संगीतबद्ध करने का काम किया। इनको रबींद्र संगीत के नाम से जाना जाता है। टैगोर के संगीत में हिंदुस्तानी संगीत की ठुमरी का प्रभाव अधिक दिखाई देता है।


आइंस्टीन से लेकर गांधीजी तक

आपको बता दें कि स्वामी विवेकानंद के बाद गुरुदेव रबींद्रनाथ दूसरे ऐसे व्यक्ति रहे हैं, जिन्होंने विश्व धर्म संसद को संबोधित किया। टैगोर ने ऐसा दो बार किया। वहीं टैगोर का अल्बर्ट आइंस्टीन से प्रकृति पर संवाद बहुत फेमस रहा था। उनका महात्मा गांधी से भी गहरा रिश्ता था। महात्मा गांधी ने टैगोर को 'गुरुदेव' की उपाधि दी थी। जब रबींद्रनाथ शांतिनिकेतन के लिए घूम घूम कर नाटकों का मंचन कर पैसा कमा रहे थे, तब गांधी जी ने उनकी मदद की थी। हालांकि गांधी से वैचारिक मतभेदों पर गुरुदेव काफी मुखर थे, लेकिन वह गांधी जी का सम्मान बहुत करते थे।


मृत्यु

जीवन के आखिरी दौर में रबींद्रनाथ टैगोर प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित हो गए थे। बीमारी की जटिलता के कारण 07 अगस्त 1941 में 80 साल की उम्र में रबींद्रनाथ टैगोर का निधन हो गया था।

प्रमुख खबरें

Akshay Navami 2024: अक्षय नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा से मिटेंगे सारे कष्ट, जानिए शुभ योग

Chandrababu Naidu ने विजयवाड़ा से श्रीशैलम तक डेमो समुद्री-विमान उड़ान का शुभारंभ किया

नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों से भारत, आसियान को हो सकता है फायदाः Moodys

Railways ने स्वच्छता अभियान में 2.5 लाख शिकायतें निपटाईं, कबाड़ से 452 करोड़ रुपये जुटाए