उत्तर प्रदेश की जनता ने जिस जानदार−शानदार तरीके से भारतीय जनता पार्टी को विधान सभा चुनाव में बहुमत दिलाया था, उससे बीजेपी और खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ऊपर अपेक्षाओं का बोझ बढ़ गया था। मोदी पर इसलिये क्योंकि उन्हीं (मोदी) के फेस को आगे करके बीजेपी ने चुनाव लड़ा था। मोदी ने चुनाव प्रचार के दोरान प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था और किसानों की बदहाली को बड़ा मुद्दा बनाया था। बीजेपी जब चुनाव जीती तो तेजतर्रार योगी आदित्यनाथ को इस उम्मीद के साथ सीएम की कुर्सी पर बैठाया गया कि वह जनता की कसौटी पर खरे उतरेंगे। तीन माह का समय होने को है, मगर आज यही दो समस्याएं योगी सरकार और बीजेपी आलाकमान के लिये परेशानी का सबब बनी हुई हैं। दिल्ली से लेकर लखनऊ तक में पार्टी नेताओं/प्रवक्ताओं को जनता और मीडिया के तीखे सवालों का जवाब देना पड़ रहा है।
योगी सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में छोटे−मझोले किसानों का कर्ज माफ करने को मंजूरी दे दी गई थी, लेकिन तकनीकी कारणों से ऐसा हो नहीं पाया। योगी सरकार कार्यकाल के तीसरे माह में चल रही है, मगर अभी तक कर्ज माफी के नाम पर किसानों के हाथ कुछ भी नहीं लगा है। इसको लेकर किसानों में तो नाराजगी स्वाभाविक है, विपक्ष भी लगातार किसानों का कर्ज नहीं माफ हो पाने के मुद्दे को खाद−पानी देने का काम कर रहा है। किसान कर्ज माफी को लेकर योगी सरकार के प्रति आशंकित हैं तो बिगड़ी कानून व्यवस्था के चलते आमजन भयभीत हैं। प्रदेश की चरमराई कानून व्यस्था ने विपक्ष को बैठे−बैठाये योगी सरकार पर हमलावर होने का मौका दे दिया है। कल तक बीजेपी वाले जिस अखिलेश सरकार को बिगड़ी कानून व्यवस्था को लेकर घेरा करती थे और इसे चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बना दिया था, आज उसी वजह से योगी सरकार को बार−बार शर्मिंदा होना पड़ रहा है।
बात यहीं तक सीमित नहीं है अब तो योगी सरकार के कई फैसलों पर अदालत भी उंगली उठाने लगी है। खैर, किसी भी सरकार के कामकाज की समीक्षा के लिये तीन माह का समय काफी छोटा होता है, इसलिये योगी सरकार को भी इसका फायदा मिलना चाहिए। भले ही नई सरकार के गठन के बाद भी यूपी में हालात बहुत ज्यादा नहीं बदले हों, लेकिन जनता का योगी सरकार पर विश्वास बना हुआ है। सीएम योगी पूरी ईमानदारी और मेहनत से काम कर रहे हैं और सबको यही उम्मीद है कि देर−सवेर योगी की मेहनत रंग लायेगी। परंतु इसके लिये योगी जी को सरकारी मशीनरी के पेंच और टाइट करने होंगे। अभी तक तो यही नजर आ रहा है कि जिनके हाथों में कानून व्यवस्था दुरूस्त करने की जिम्मेदारी है, वह यूपी में आये बदलाव को देख नहीं पा रहे हैं और पुराने तौर−तरीकों पर ही चल रहे हैं। कुछ पुलिस के अधिकारी तो योगी राज में भी भी अखिलेश के प्रति वफादार नजर आ रहे हैं, जिसकी वजह से भी कानून व्यवस्था में सुधार देखने को नहीं मिल रहा है। बात यहीं तक सीमित नहीं है। चर्चा तो यह भी है कि योगी सरकार को बदनाम करने के लिये विरोधी दलों द्वारा भी पड़यंत्र रचा जा रहा है। कई जगह आपराधिक वारदातों में विरोधी दलों के नेताओं की लिप्ता भी देखी जा रही है।
सहारनपुर की हिंसा को इसका प्रत्यक्ष प्रमाण कहा जा सकता है। सहारनपुर में मायावती से लेकर राहुल गांधी तक ने जिस तरह माहौल खराब करने की कोशिश की उसे जनता समझती है। एक और बात विरोधी दल और पूर्ववर्ती सरकारों के वफादार सरकारी कर्मचारी तो योगी की राह में रोड़े फंसा ही रहे हैं, योगी के अपने भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। भगवाधारियों द्वारा आगरा में पुलिस थानों पर हमला, मेरठ में एसएसपी के आवास में घुस कर गुंडागर्दी, लखनऊ में बीजेपी नेता द्वारा एक होमगाई की पिटाई, गोरखपुर में एक आईपीएस महिला पुलिस अधिकारी के साथ बीजेपी विधायक राधा मोहन दास का अभद्र व्यवहार सत्तारूढ़ दल के नेताओं की गुंडागर्दी की बानगी भर है। असल में योगी के लिये विपक्षी ही नहीं उनकी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता भी मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं।
इससे उलट बात अगर योगी के सार्थक प्रयासों और सराहनीय फैसलों की करें तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह से महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर पहल की वह अपने आप में मिसाल बन गई। योगी सरकार के शपथ लेते ही पूरे प्रदेश में लड़कियों से छेड़खानी की घटनाओं पर अंकुश लग गया। बेटियों को लेकर योगी आदित्यनाथ की पहल ने निश्चित तौर पर उत्तर प्रदेश की बच्चियों और महिलाओं की सुरक्षा और उनकी प्रगति के लिए बहुत बड़ी उम्मीद जगा दी। हालांकि प्रदेश में कई ऐसे मामले मी सामने आये जिनमें महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल खड़ा होता रहा। फिर भी घरेलू हिंसा, एसिड अटैक, छेड़खानी और बलात्कार से पीड़ित महिलाओं और किशोरियों को योगी राज में अपनी सुरक्षा की उम्मीद बरकरार है। वैसे, यह जगजाहिर है कि यूपी में महिलाओं के साथ अपराध हमेशा ही चिंता का विषय बना रहा है। नेशनल कमीशन फॉर वीमेन के आंकड़ों के अनुसार, भारत में घरेलू हिंसा के मामले सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में हैं। वर्ष 2015−16 में अकेले उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामलों की संख्या 6,110 थी, जबकि दिल्ली में 1,179, हरियाणा में 504, राजस्थान में 447 और बिहार में 256 मामले दर्ज थे। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार महिलाओं पर अत्याचार के मामलों में उनके घर वाले ही सबसे आगे रहते हैं। पीड़ित महिलाओं द्वारा पति और रिश्तेदारों के खिलाफ सबसे अधिक मामले दर्ज कराना इस बात का संकेत है। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर यूपी में योगी सरकार बनते ही एंटी रोमियो स्क्वॉड एक्शन में आ गया था, जिसके काम की काफी सराहना हुई तो कुछ आलोचनाएं भी इस स्क्वॉड को झेलनी पड़ीं।
वैसे हकीकत यह भी है कि इस तरह का अभियान पहले भी चलाया जा चुका था, लेकिन इतने वृहद स्तर पर नहीं। मायावती सरकार ने इसकी शुरूआत नोएडा में 2011 में की थी। इस अभियान के तहत पुलिस उन जगहों पर जाती थी जहां महिलाओं के साथ छेड़खानी की जाती थी, इस दल का नेतृत्व महिला पुलिस अधिकारी करती थी। पूर्व में 1986−87 में पुलिस ने इस तरह का अभियान शुरू किया था, जिसमें लड़कियों के साथ छेड़खानी करने वालों को मजनू पिंजड़े में रखा जाता था और उन्हें पूरे शहर में घुमाया जाता था।
बात कानून व्यवस्था से इत्तर की जाये तो योगी सरकार लगातार साहसिक फैसले लेती जा रही है। किसानों को चीनी मिल मालिकों से बकाया दिलाया। किसानों की फसल खरीद हो रही है। किसानों का कर्ज माफी का प्रयास लगातार जारी है। भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की नीति अपनाते हुए पूर्ववर्ती सरकारों के भ्रष्टाचार की जांच की जा रही है तो ऐसे कदम भी उठाये जा रहे हैं जिससे भ्रष्टाचार पर अकुंश लगे। ई−टेंडरिंग के द्वारा सरकारी ठेके दिये जा रहे हैं। सड़कों को गड्ढा मुक्त किये जाने का आदेश दे दिया गया है, जिस पर काम भी हो रहा है। योगी सरकार की करीब तीन माह पुरानी सरकार कई अहम फैसले ले चुकी है, जिनका प्रदेश की जनता से सीधा संरोकार हैं। कुछ फैसलों पर योगी सरकार की वाहवाही हुई, तो कुछ को लेकर विवादों ने जन्म लिया। चाहे वह कानून−व्यवस्था, अवैध बूचड़खाने बंद करना, खनन माफियाओं पर लगाम या किसानों की कर्जमाफी हो। योगी सरकार के इन निर्णयों के साथ विवाद भी जुड़ता गया।
सीएम योगी ने पहले पहल महत्वपूर्ण पदों पर बैठे अखिलेश राज के अधिकारियों से ही काम चलाने का प्रयास किया था, लेकिन इन अधिकारियों की वफादारी नहीं बदली तो प्रदेश की कानून व्यवस्था पर नकेल कसने के लिए बड़े पैमाने पर आईएएस और आईपीएस अफसरों का तबादला किया गया। यह और बात है कि अभी जमीनी हकीकत में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिख रहा है। इसी प्रकार योगी सरकार ने अखिलेश सरकार की महत्वाकांक्षी समाजवादी पेंशन योजना बंद करने में कोई गुरेज नहीं की। इस योजना के तहत पेंशन में 6 हजार सालाना की रकम मिलती थी। सपा ने इसके खिलाफ आन्दोलन का भी ऐलान किया। योगी ने इस योजना को मुख्यमंत्री पेंशन योजना का नया नाम देकर लागू कर दिया। योगी सरकार ने राज्य में नई खनन नीति लाने की योजना की घोषणा की। सरकार के इस निर्णय के कारण प्रदेश में खनन पूरी तरह से ठप हो गया था। खनन बंद होने से बालू, मौरंग आदि के दाम अचानक कई गुना बढ़ गए, लेकिन अब हालात धीरे−धीरे बदल रहे हैं। योगी सरकार का सबसे विवादित फैसला रहा अवैध बूचड़खानों पर रोक लगाना। इस कदम का हिन्दूवादी संगठनों ने तो स्वागत किया लेकिन मुसलमान इससे खुश नहीं दिखे। जबकि हकीकत में बूचड़खाने बंद करने का फैसला एनजीटी का था। एनजीटी लम्बे समय से अवैध बूचड़खाने बंद करने की सिफारिश कर रही थी, लेकिन अखिलेश सरकार वोट बैंक के चलते कान में उंगली डाले बैठी रही थी। अखिलेश के ड्रीम प्रोजेक्ट रीवर फ्रंट और माया राज के समय बने पार्कों की जांच भी योगी सरकार ने शुरू कर दी है, जिसमें पहले से ही बड़े घोटाले की बू आ रही थी।
लब्बोलुआब यह है कि योगी सरकार को दोधारी तलवार पर चलते हुए यूपी को पटरी में लाने के लिये लम्बी मशक्कत करनी होगी। एक तरफ प्रदेश का विकास करना होगा दूसरी तरफ विरोधियों के मंसूबों पर भी पानी फेरना होगा, जो योगी सरकार को बदनाम करने और अपने हित साधने के लिये किसी भी हद तक जाने को तैयार नजर आ रहे हैं। 2019 तक यूपी के हालात नहीं बदले तो लोकसभा चुनाव पर इसका प्रभाव पड़ सकता है।
- अजय कुमार