युद्ध विराम के प्रयास और चीन की दादागिरी पर अंकुश लगाने की पहल करे क्वॉड

By ललित गर्ग | May 24, 2022

जापान में होने जा रहे क्वॉड शिखर सम्मेलन में एक महानायक एवं करिश्माई व्यक्तित्व के रूप में भाग लेने के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहुँच गये हैं। इस सम्मेलन एवं मोदी पर दुनिया की नजरें टिकी है, क्योंकि यह सम्मेलन ऐसे अवसर पर होने जा रहा है, जब तीन माह से यूक्रेन पर रूस के हमले जारी हैं और उसके प्रमुख सहयोगी चीन के अड़ियल रवैये में कोई कमी आती नहीं दिख रही है। इसी के साथ पर्यावरण, आधुनिक तकनीक, कोरोना वायरस, हिंद-प्रशांत के लिए रणनीति आदि महत्वपूर्ण मुद्दे भी चर्चा में होंगे। भले ही क्वॉड केवल चार देशों- भारत, जापान, अमेरिका और आस्ट्रेलिया की सदस्यता वाला समूह हो, लेकिन वह पूरी दुनिया के राष्ट्रों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। इस बार के सम्मेलन का एक साझा उद्देश्य चीन की साम्राज्यवादी मानसिकता पर लगाम लगाना है ताकि चीन की अकड़ ढीली पड़े। इसके लिये सदस्य देशों को आर्थिक सहयोग के साथ अपने रक्षा संबंधों को सशक्त करने पर अधिक जोर देना होगा।

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क्वॉड शिखर सम्मेलन पर दुनिया की दिलचस्पी होना स्वाभाविक है, क्योंकि इस बार उसके केन्द्र में चीन है, भारत समेत इन सभी देशों के लिए किसी न किसी रूप में चीन चुनौती बन गया है, इसलिए क्वॉड शिखर सम्मेलन की ओर से उसे लेकर कोई कठोर बयान जारी किया जा सकता है। ऐसे किसी बयान मात्र से चीन की सेहत पर असर पड़ने के आसार कम ही हैं, इसलिए क्वॉड को उन उपायों पर ध्यान देना होगा, जिससे चीन की दादागिरी पर अंकुश लगे। विश्व मानस अब अहिंसा की तेजस्विता को देखना चाहता है, वह विकास एवं शांतिपूर्ण समाज व्यवस्था चाहता है, आज सभी तरफ से विकास और प्रगति की आवाज उठ रही है। सुधार और सरलीकरण के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और इसके लिये आज चीन जैसी हिंसक, अराजक ताकतों को रोकने का प्रयास चाहते हैं।


क्वॉड शिखर सम्मेलन अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण एवं निर्णायक होगा। इस सम्मेलन से ऐसी रोशनी प्रस्फुटित हो कि दुनिया महायुद्ध की संभावनाओं से उपरत हो जाये। इसीलिये युद्ध, हिंसा एवं आतंकवाद के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन और बढ़ती ईंधन की चुनौती क्वॉड नेताओं की टोक्यो बैठक के अहम मुद्दे होंगे। क्वॉड की योजना हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ग्रीन-शिपिंग नेटवर्क बनाने की है जिसका कार्बन उत्सर्जन न के बराबर हो। साथ ही हाइड्रोजन के इस्तेमाल को बढ़ाने और उसके लिए सहयोग का ढांचा बनाने पर जोर होगा। क्वॉड देश जलवायु परिवर्तन पर भी सक्रिय सूचना साझेदारी बढ़ाएंगे। क्वॉड इंफ्रास्ट्रक्चर समन्वय समूह के काम की समीक्षा भी इस शिखर बैठक में होगी। इसके तहत हिंद-प्रशांत इलाके की ढांचागत योजनाओं में मदद दी जाती है ताकि देश अव्यावहारिक कर्ज के फंदे में न फंसें। इस कड़ी में प्राकृतिक आपदाओं से मुकाबले और उसके लिए जरूरी ढांचा बनाने पर भी जोर है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि चीन विभिन्न देशों की सुरक्षा के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरा बन गया है। वह अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों को धता बताने के साथ ही छोटे-छोटे देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसाकर उनका जिस तरह शोषण कर रहा है, उससे विश्व व्यवस्था के अस्थिर होने का खतरा पैदा हो गया है।


क्वॉड देशों के बीच तकनीक की साझेदारी भी नेताओं की टोक्यो बैठक का एक अहम मुद्दा होगा। इसके साथ ही उभरती हुई और अहम तकनीकों पर सहयोग को कैसे बढ़ाया जाए और बायो टैक्नोलॉजी से लेकर सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन की मजबूती और सायबर सुरक्षा तंत्र की हिफाजत तक अनेक विषय शामिल होंगे। माना जा रहा है कि मेजबान जापान की तरफ से क्वॉड अंतरिक्ष सहयोग पर भी एक ड्राफ्ट तैयार किया गया है जिसे पेश किया जाएगा। इसमें अंतरिक्ष में एक-दूसरे के उपग्रहों की सुरक्षा के लिए सूचनाएं साझा करने और जरूरी सहयोग देने पर जोर होगा। कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई क्वॉड देशों की साझेदारी का एक अहम पहलू रहा है। इसके तहत कोरोना टीकों के निर्माण और आपूर्ति से लेकर इस महामारी के आर्थिक दुष्प्रभावों से उबरने में मदद तक अनेक पहलू शामिल हैं। साथ ही स्वास्थ्य ढांचा मजबूत करने के लिए स्वास्थ्य सुरक्षा, जीनोमिक्स, निगरानी तंत्र, क्लीनिकल ट्रायल और भविष्य की महामारियों से निपटने की तैयारियों जैसे विषय भी हैं।

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क्वॉड के भविष्य और उसके प्रभावी बने रहने के लिहाज से टोक्यो की इस बैठक को खासा महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसकी बड़ी वजह है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र के अनेक देश जहां आर्थिक और सुरक्षा की चुनौतियों से जूझ रहे हैं। वहीं क्वॉड के वादे जमीन पर उतरने में फिलहाल कमजोर ही नजर आते हैं। ऐसे में अमेरिका-जापान-भारत और ऑस्ट्रेलिया के नेताओं की कोशिश होगी कि ठोस नतीजे देने वाली योजनाओं को तेजी से बढ़ाया जाए। इसके लिये चारों देशों ने व्यापक कार्य-योजना एवं रीति-नीति का निर्धारण किया है। प्रधानमंत्री मोदी चीन पर दबाव बनाने, उसकी कुचेष्टाओं एवं षड्यंत्रों को रोकने के लिये प्रयास करेंगे, चूंकि क्वॉड देशों में भारत अकेला ऐसा देश है, जिसकी सीमाएं चीन से मिलती हैं और वह लद्दाख सीमा पर अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है, इसलिए भारतीय नेतृत्व को कहीं अधिक सक्रियता दिखाने की आवश्यकता है।


भारत को क्वॉड के जरिये ऐसे उपायों पर भी विशेष ध्यान देना होगा, जिससे आर्थिक-व्यापारिक मामलों में चीन पर निर्भरता कम की जा सके। यह ठीक नहीं कि तमाम प्रयासों के बाद भी चीन से आयात में कोई उल्लेखनीय कमी आती नहीं दिख रही है। जब यह स्पष्ट है कि क्वॉड का एक साझा उद्देश्य चीन की साम्राज्यवादी मानसिकता पर लगाम लगाना है, तब फिर सदस्य देशों को आर्थिक सहयोग के साथ अपने रक्षा संबंधों को सशक्त करने पर अधिक जोर देना होगा। इससे ही हिंद प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के लिए चीन की ओर से पैदा किए जा रहे खतरों से पार पाया जा सकता है। यह सही समय है कि क्वॉड के विस्तार को गति दी जाए। जो भी देश स्वतंत्र एवं खुले हिंद प्रशांत क्षेत्र के पक्षधर हैं और चीन की दादागीरी से त्रस्त हैं, उन्हें क्वॉड का हिस्सा बनाने में देर नहीं की जानी चाहिए। परिवर्तन कब किसके रोके रुका है। न पहले रुका, न आगे कभी रुकेगा। चीन जैसे शक्तिशाली राष्ट्र इसकी रफ्तार कम कर सकते हैं। यह भी प्रकृति का नियम है कि जिसे जितना रोका जाएगा, चाहे वह व्यक्ति हो या समाज या कौम या फिर राष्ट्र, वह और त्वरा से आगे बढ़ेगा।


क्वॉड देशों के बीच मजबूत सुरक्षा साझेदारी का संदेश भी टोक्यो की बैठक देगी। खासतौर पर चीन के हौसलों को इस बैठक के बहाने हदें दिखाने की कोशिश होगी। बीते दिनों चीन की तरफ से पैंगोंग झील पर दूसरा पुल बनाए जाने पर भारत ने सख्त ऐतराज दर्ज कराया है। वहीं जापान ने भी पूर्वी चीन सागर में दोनों देशों की मध्यरेखा के करीब नए गैस-फील्ड ढांचे पर अपना विरोध दर्ज कराया है। इतना ही नहीं क्वॉड के सदस्य देश ऑस्ट्रेलिया के करीब सोलोमन आइलैंड के साथ हुए चीन के सुरक्षा करार ने भी चिंताएं बढ़ाई हैं।


टोक्यो में होने वाली बैठक के दौरान रूस और यूक्रेन के बीच चल रही लड़ाई का मुद्दा उठना तय है। इस मसले पर जहां अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान खुलकर रूस का विरोध जता चुके हैं। वहीं भारत लगातार इस बात पर जोर दे रहा है कि संघर्ष विराम कर शांतिपूर्ण बातचीत और कूटनीति के जरिए समाधान निकाला जाना चाहिए। भारत हमेशा से अयुद्ध एवं अहिंसा का हिमायती रहा है, वह किसी भी तरह की जंग के खिलाफ है। हालांकि भारत सभी क्वॉड सदस्य देशों के सामने द्विपक्षीय स्तर पर भी अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुका है। ऐसे में भारत के रुख में किसी बड़े बदलाव के संकेत नहीं है। भारत तो चाहता है कि अब एक दौर अहिंसा, शांतिपूर्ण समाज व्यवस्था और अयुद्ध का चले। उसकी तेजस्विता का चले तो विश्व/इतिहास के अगले पृष्ठ सचमुच में स्वर्णिम होंगे। 


-ललित गर्ग

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