किसान तो हल चलाता है पर यह आंदोलनकारी तलवार दिखा रहे हैं

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Nov 28, 2020

केन्द्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ ‘दिल्ली चलो’ मार्च के तहत राष्ट्रीय राजधानी की ओर आते हुए आंदोलनकारियों ने सड़कों पर जो उत्पात मचाया वह लोकतांत्रिक तरीका नहीं कहा जा सकता। पुलिस पर पथराव, गाड़ियों में तोड़फोड़ क्या यह अपनी मांगें मनवाने का तरीका है? हवा में तलवार लहराने वाला क्या किसान हो सकता है? किसान तो हल चलाता है तलवार नहीं। किसान देश का अन्नदाता है और हमेशा शांतिप्रिय ढंग से अपनी बात रखता है। किसानों के वेष में जिस तरह राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की ओर से शांति भंग करने का प्रयास किया गया वह एक बड़ी साजिश की ओर इशारा करता है। शरारती तत्वों ने इस आंदोलन के दौरान जिस तरह शांति भंग कर किसानों को बदनाम किया वह सबके सामने है।

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पंजाब में इस तरह के आंदोलन की साजिश रची जा रही थी और कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठे रही। सवाल उठता है कि अमरिंदर सिंह सरकार ने समय रहते क्यों इस तरह की अराजकता रोकने के लिए कदम नहीं उठाये और क्यों अपने पड़ोसी राज्यों को इस बारे में समय पर सूचना नहीं दी। अमरिंदर सिंह की मंशा पर सवाल इसलिए भी उठता है क्योंकि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा है कि वह तीन दिन से पंजाब के मुख्यमंत्री से बात करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन अमरिंदर बात नहीं करना चाह रहे हैं।


दिल्ली चलो मार्च के लिए किसान अपनी ट्रैक्टर-ट्रॉलियों पर राशन और अन्य आवश्यक सामान के साथ एकत्रित हुए। संघर्ष के बाद दिल्ली भी पहुँच गये। कृषि कानूनों से इन आंदोलनकारियों को नुकसान हो या ना हो लेकिन अपनी जिद के चलते इन लोगों ने रेलवे को हजारों करोड़ रुपए का नुकसान करा दिया। कोरोना काल में संघर्ष कर रही अर्थव्यवस्था को उबारने के सरकारी प्रयासों को जिस तरह इन आंदोलनकारियों ने क्षति पहुँचाई है वह देशहित में सही नहीं कही जा सकती।

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अब देखना होगा कि केंद्र सरकार और किसानों के बीच तीन दिसंबर को होने वाली बातचीत का क्या निष्कर्ष निकलता है। केंद्र सरकार ने किसान यूनियनों को मंत्रिस्तरीय बातचीत के लिए आमंत्रित किया है। इससे पहले पंजाब के किसान नेताओं ने सोमवार को अपने ‘रेल रोको’ आंदोलन को वापस लेने की घोषणा करते हुए एक और मंत्रिस्तरीय बैठक की शर्त रखी थी। इसके बाद किसानों ने दो माह के रेल रोको आंदोलन को वापस लेते हुए सिर्फ मालगाड़ियों के लिए रास्ता खोला। बहरहाल, मंत्रिस्तरीय बातचीत का निष्कर्ष जो भी निकले किसानों को और देश के सभी नागरिकों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस वादे पर भरोसा करना ही चाहिए कि एमएसपी कभी समाप्त नहीं होगी ना ही मंडियों को समाप्त किया जा रहा है। इसके अलावा यहां यह भी बात ध्यान देने योग्य है कि कृषि कानूनों का विरोध सिर्फ पंजाब के ही किसानों का एक गुट कर रहा है जबकि देशभर के किसानों ने इन तीनों कृषि कानूनों का स्वागत किया है।

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