पांच साल में 4 एजेंसियां फिर भी बना है ये सवाल, आखिर बरगाड़ी बेअदबी कांड का दोषी कौन?

By अभिनय आकाश | Feb 06, 2021

कोस कोस पर बदले पानी चार कोष पर वाणी, मील-मील पर बदले सभ्यता चार मील पर संस्कृति। भारत की यही विविधता आज समस्त संसार के लिए आकर्षण का केंद्रबिन्दु बनी हुई है। हर धर्म का अपना उपासना स्थान होता है, जैसे- मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा यह उपासना के स्थान उस धर्म और वर्ग के लोगों के लिए सर्वोच्च होते हैं तथा उनकी धार्मिक आस्थाओं का मुख्य केंद्र होते हैं। धर्म के मामले में विवाद जंगल की आग की तरह फैलता है। इन सभी धर्म के वर्ग के बीच शांति को बनाए रखने का एक ही उपाय है कि सभी धर्मों का आदर किया जाए। पंजाब से निकलकर दिल्ली की ओर बढ़ते हैं तो गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी की खबरें बहुत कम हो जाती हैं। रिजीनल मीडिया में तो ये चमकती हैं लेकिन दिल्ली तक केवल ड्रग जैसे मुद्दे हाइलाइट होंगे। कोई बड़ा क्राइम हो जाए तो उसके मामले ही चर्चित होते हैं। लेकिन ग्रुरुग्रंथ साहिब बेअदबी का मामला इतना ज्यादा हाइलाइट नहीं हो पाया। लेकिन ग्रुरुग्रंथ साहिब बेअदबी मामला फिर से एक बार सुर्खियों में है। जिसकी वजह है सीबीआई ने 2015 के बेअदबी मामलों की फाइल और दस्तावेज पंजाब पुलिस को सौंप दिए है। जिसकी जानकारी राज्य सरकार ने एक बयान जारी करके दी। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने पिछले महीने सीबीआई को निर्देश दिया था कि वह वर्ष 2015 में गुरु ग्रंथसहित धार्मिक चिह्नों की कथित बेअदबी के मामलों से जुड़े दस्तावेज एवं केस डायरी एक महीने के भीतर पंजाब पुलिस को सौंपे। 18 जनवरी 2021 को सीबीआई निदेशक को समस्त रिकॉर्ड राज्य पुलिस को बिना देरी सौंपने को कहा था। यह कदम सीबीआई से बेअदबी का मामला वापस लेने पर उठाया गया जिसके परिणाम में दो नवंबर 2015 को सीबीआई को सौंपे गए मामले में एकत्र सबूत सहित तमाम दस्तावेज वापस मांगे गए। ऐसे में आज बात करेंगे की क्या है ये बरगाड़ी बेअदबी मामला। पांच सालों में चार एजेंसियां भी जिसकी गुत्थी नहीं सुलझा पाई। राजनीति आरोप-प्रत्यारोप के पीछे की वजह की कहानी क्या है।

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एक जून 2015 को बरगाड़ी से सटे गांव बुर्ज जवाहर सिंह वाला के गुरुद्वारा साहिब से पावन ग्रंथ का स्वरूप चोरी हो गया। इसके बाद 24-25 सितंबर 2015 की रात को गांव बुर्ज जवाहर सिंह वाला में ही गुरुद्वारा साहिब के बाहर अश्लील शब्दावली वाला पोस्टर लगाकर पुलिस प्रशासन व सिख संगत को चुनौती दी गई। पावन ग्रंथ की चोरी व पोस्टर लगाने के मामलों का कोई सुराग ढूंढ़ने में पुलिस को सफलता हाथ नहीं लगी। वहीं पोस्ट लगाए जाने के कुछ ही दिनों बाद बरगाड़ी में पावन ग्रंथ की बेअदबी कर दी गई। इसी मामले में सिख संगठनों और संगत ने कोटकपूरा  और बरगाड़ी से सटे गांव बहबल कलां में भी धरना दिया था। इसी धरने के दौरान 14 अक्टूबर 2015 को पुलिस की गोलीबारी में गांव नियामी वाला के किशन भगवान सिंह और गांव सरांवा के गुरजीत सिंह मारे गए थे। वहीं बहिबल कलां से पहले कोटकपूरा के मुख्य चौक में भी चल रहे रोष धरने को पुलिस ने बल प्रयोग करते हुए उठवाया और पुलिस के लाठीचार्ज से करीब 100 लोग घायल हुए। 

इन घटनाओं की पहले चरण की जांच का काम पंजाब पुलिस ने संभाला और बहिबल कलां गोलीकांड की घटना सामने आने पर उस वक्त के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने केस की जांच के लिए पंजाब पुलिस के डायरेक्टर ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन इकबालप्रीत सिंह सहोता की अध्यक्षता में एसआईटी बनाने और पूरे प्रकरण की न्यायिक जांच के लिए जस्टिस जोरा सिंह की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग का गठन करवाया। जांच के दौरान बरगाड़ी कांड में डेरा प्रेमियों के शामिल होने की बात सामने आई। जिसके बाद पुलिस ने कोटकपूरा के अलग इलकों में छापेमारी भी की और वहां डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के शिष्यों को अपने साथ भी ले गई थी। उस वक्त गिरफ्तार किए गए डेरा अनुयायियों ने पुलिस के सामने खुलासा किया था कि उन्होंने पावन ग्रंथ के अंग खंडित कर कोटकपूरा के ड्रेन में फेंके थे। बरगाड़ी कांड में सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा से हथियार मुहैया कराए गए थे।

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लेकिन पंजाब पुलिस की तरह ही एसआई को भी इस केस में नाकामी ही हासिल हुई। नवंबर 2015 में सीबीआई के हवाले कर दिया। इन घटनाओं की जांच सीबीआई के पास थी इसलिए एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट सीबीआई को दे दी । डेरा अनुयायियों से जेल में पूछताछ हुई लेकिन सीबीआई की तरफ से कोई चार्जशीट दाखिल नहीं की गई जिसके चलते मोहाली की सीबीआई कोर्ट से सितबंर 2018 को इन्हें जमानत मिल गई। सीबीआई को भी इस केस में कोई खास सफलता हासिल नहीं हुई। वहीं जस्टिस जोरा सिंह आयोग ने भी पड़ताल के बाद 30 जून 2016 को अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी। राज्य में सियासी समीकरण बदल चुके थे और कांग्रेस के नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह बतौर मुख्यमंत्री के तौर पर सूबे की कमान संभाल चुके थे। विधानसभा चुनाव के वक्त किए गए वादे के अनुसार अमरिंदर सिंह ने 14 अप्रैल 2017 को हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस रणजीत सिंह की अध्यक्षता में बेअदबी मामलों की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया। जिसके बाद बरगाड़ी बेअदबी मामले से संबंधित घटना की जांच के बाद 16 अगस्त 2018 को अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी। विधानसभा में इस रिपोर्ट को पेश किया गया। सदन में बड़ा बवाल हुआ। सदन में रिपोर्ट पर चर्चा भी हुई। सदन में रिपोर्ट पर एचएस फुल्का ने सवाल उठाते हुए कहा था कि रिपोर्ट में छोटी मछलियों को तो पकड़ा गया लेकिन बड़ी मछलियों को छोड़ दिया गया। 4 जुलाई 2019 को सीबीआई ने केस की क्लोजर रिपोर्ट पेश की। वहीं राज्य की कैप्टन सरकार ने जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट आने के बाद 28 अगस्त 2018 को पंजाब विधानसभा में प्रस्ताव पारित करके बेअदबी मामले की जांच सीबीआई से वापस लेने की घोषणा कर दी। 

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अब सीबीआई द्वारा पंजाब पुलिस को इस मामले से जुड़े फाइल और दस्तावेज सौंप दिए। जिसके  बाद इसको लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा, ‘‘यह शिरोमणि अकाली दल (पूर्व में राजग की सहयोगी) की मामले का खुलासा करने की प्रक्रिया को बाधित करने के प्रयास का पर्दाफाश करता है।’’ अमरिंदर सिंह ने इसे राज्य सरकार और उसके उस रुख की जीत करार दिया। इसके साथ ही आरोप लगाया कि सीबीआई गत महीनों में पंजाब पुलिस की एसआईटी की जांच को राजग सरकार का हिस्सा रही अकाली दल की ओर से बाधित करने का प्रयास किया जा रहा था। उन्होंने अब स्पष्ट है कि केंद्रीय मंत्री के तौर पर हरसिमरत कौर केंद्रीय एजेंसी पर दबाव बना रही थी कि वह मामले से जुड़ी फाइल नहीं सौंप कर एसआईटी की जांच को बाधित करे क्योंकि वह जानती थी कि उनकी पार्टी की इस मामले में संलिप्तता का खुलासा हो जाएगा अगर पुलिस की जांच निर्णायक मोड़ पर पहुंची। वहीं अकाली दल के नेता कि ओर से भी कैप्टन के बयान का जवाब देते हुए अमरिंदर सिंह पर जानबूझकर न्यायिक हस्तक्षेप को अलग मोड़ देने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। बहरहाल, राजनीति से इतर पांच साल पुराना मामला आज भी कई एजेसिंयों के रास्ते से होता हुआ न्याय पाने के इंतजार में यह सवाल कर रहा है कि आखिर गरबाड़ी बेअदबी कांड का दोषी कौन है? - अभिनय आकाश

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